05-Jun-2019 05:42 AM
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भावांतर भुगतान योजना में सोयाबीन बेचे किसानों को लंबा अरसा बीत चुका है। लेकिन अभी तक किसानों के खाते में भावांतर की राशि नहीं आई है। वैसे तो मक्का और सोयाबीन दोनों का भांवातर एक साथ शुरू हुआ था। लेकिन आश्चर्य की बात है कि मक्का के किसानों को राशि मिल गई। लेकिन सोयाबीन के किसान आज भी इंतजार में बैठे हैं। वहीं अब गेहूं बेचने वाले किसानों को भी बोनस का इंतजार है।
भावांतर भुगतान के तहत किसानों ने सोयाबीन बेची थी, योजना के तहत 500 रुपए प्रति क्ंिवटल फ्लेट रेट के रूप में किसानों को लाभ दिया जाना था। प्रदेश में 20 अक्टूबर से 19 जनवरी तक किसानों द्वारा सोयाबीन बेची गई। इस योजना के तहत सोयाबीन बेचे किसानों को चार से पांच माह बीत चुके हैं। लेकिन आज तक किसी भी अन्नदाता के खाते में एक भी रुपया नहीं आया है। वहीं दूसरी और समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी भी बंद हो चुकी है। ऐसे में सोयाबीन के साथ अब गेहूं के किसान भी बोनस की राशि के इंतजार में है। क्योंकि उन्हें भी प्रति क्ंिवटल 160 रुपए के मान से बोनस दिया जाना है।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अनुसार, खरीदी की अंतिम तिथि 25 मई तक इस वर्ष प्रदेश में रिकॉर्ड 9 लाख 65 हजार किसानों से 73 लाख 60 हजार मीट्रिक टन खरीदी की गई, जो एक रिकॉर्ड है। इसके एवज में कुल 13 हजार 43 करोड़ की राशि का भुगतान किसानों को किया जाना है। इस बार जहां किसानों को 1840 रुपए गेहूं का दाम तो मिलना ही था, वहीं 160 रुपए क्ंिवटल बोनस के रूप में भी मिलना है। चूंकि यह बोनस उन किसानों को भी मिलेगा, जिन किसानों ने अपना गेहूं पंजीयन कराने के बाद समर्थन मूल्य खरीदी केंद्र की अपेक्षा मंडी में बेच दिया है। ऐसे में निश्चित दस लाख से अधिक किसानों को गेहूं के बोनस का इंतजार है।
खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि रबी उपार्जन 2019 के तहत प्रदेश के किसानों को 13 हजार 43 करोड़ की राशि का भुगतान किया जा चुका है। रबी उपार्जन की समीक्षा के दौरान अधिकारियों को बैंकों में लंबित राशि शीघ्रता से किसानों के खाते में जमा कराने के निर्देश दिये हैं। तोमर ने बताया कि इस वर्ष रबी फसलों के उपार्जन के विशेष प्रबंध किए गए थे। राज्य सरकार द्वारा खरीदी केंद्रों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ, इलेक्ट्रॉनिक तौल कांटों से खरीदी करने, खरीदी की पूर्व सूचना किसानों को देने और फसल राशि किसानों के खाते में ऑनलाइन अंतरित करने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। सभी खरीदी केंद्रों पर किसानों के लिए शीतल पेयजल और बैठक की विशेष व्यवस्था भी की गई थी।
कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि बोनस में हो रही देरी के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। भावांतर योजना में केन्द्र और राज्य दोनों की हिस्सेदारी होती है, इसलिए मध्यप्रदेश सरकार प्रयास कर रही है कि भारत सरकार सोयाबीन भावांतर की रोकी हुई लगभग 1000 करोड़ की राशि मध्यप्रदेश सरकार को दे दे, जिससे प्रदेश सरकार अपने हिस्से की राशि जोड़कर किसानों को तत्काल भुगतान कर सके। सरकारी सूत्रों का कहना है कि यदि भारत सरकार ने यह राशि नहीं दी, तब भी प्रदेश सरकार किसानों को भावांतर राशि का पूरा भुगतान करेगी। मध्यप्रदेश में पिछली भाजपा सरकार ने मक्का के संबंध में भी भावांतर की घोषणा कर दी थी, जिसे भारत सरकार ने अभी तक स्वीकृति नहीं दी है। भारत सरकार के किसान विरोधी रवैये के कारण हमारे प्रदेश के किसानों को पूरा-पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सोयाबीन के संबंध में अभी तक कोई निर्णय शासन स्तर से नहीं आया है। गेहूं के बोनस के संबंध में भी कोई दिशा निर्देश नहीं आए है। चूंकि गेहूं की खरीदी तो अभी पूर्ण ही हुई है। ऐसे में जैसे भी निर्देश आएंगे, डिमांड बनाकर भेज दी जाएगी।
-श्याम सिंह सिकरवार