04-Jun-2019 09:30 AM
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15 साल बाद मप्र की सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 22 सीटें जीतने का टारगेट लेकर चली थी, लेकिन वह 2 सीट भी नहीं जीत पाई। पांच माह पहले मप्र जीतने वाली कांग्रेस 2014 से भी खराब प्रदर्शन करेगी इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। इस हार की वजह कुछ भी हो लेकिन इसे कांग्रेस की जीत की हार माना जा रहा है। यानी 15 साल बाद मिली जीत को पार्टी पांच माह भी संभाल नहीं पाई है। आलम यह रहा कि कांग्रेस के 20 मंत्रियों सहित 96 विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। जबकि केवल 19 विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस को बढ़त मिली है। वहीं मध्य प्रदेश में कुल 29 में से 28 लोकसभा सीटों को जीत कर भाजपा ने कांग्रेस को संकट में डाल दिया है। दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार से पार्टी की जड़े तक हिल गई हैं।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कम से कम 22 सीटों को जीतने के दावे के साथ चुनाव अभियान शुरू किया था। लेकिन पार्टी 2014 में जीती अपनी दो सीटों में से केवल छिंदवाड़ा सीट ही बचा सकी। गुना संसदीय सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी करारी हार का मुंह देखना पड़ा। सिंधिया की हार को न तो कांग्रेस आलाकमान और न ही कार्यकर्ता पचा पा रहे हैं।
22 मंत्रियों के क्षेत्र में हार
मोदी की सुनामी में कांग्रेस के 22 मंत्रियों के इलाकों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। सबसे बुरी हार प्रदेश के वित्त मंत्री तरुण भानोट के विधानसभा क्षेत्र पश्चिम जबलपुर में हुई। प्रदेश में सिर्फ 6 मंत्री ही कांग्रेस की लाज बचा सके। जबलपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में जहां से प्रदेश के वित्त मंत्री तरुण भानोत आते हैं, वहां कांग्रेस 84252 मत से हारी। दूसरी बड़ी हार राउ विधानसभा से विधायक और कैबिनेट मंत्री जीतू पटवारी के इलाके से हुई। वहां कांग्रेस 79931 वोट से हारी। तीसरी बड़ी हार सांची विधायक और मंत्री प्रभुराम चौधरी के इलाके से हुई जहां कांग्रेस 69751 मत से हारी। चौथी बड़ी हार सांवेर विधानसभा से आने वाले मंत्री तुलसी सिलावट के इलाके से हुई। वहां कांग्रेस 67646 मतों से हारी। पांचवी बड़ी हार खिलचीपुर विधानसभा क्षेत्र से आने वाले मंत्री प्रियवत सिंह के इलाके से हुई। कांग्रेस को 54962 वोट से हार का सामना करना पड़ा। राजगढ़ लोकसभा सीट में मंत्री जयवर्धन सिंह का विधानसभा क्षेत्र राघौगढ़ आता है। राघौगढ़ दिग्विजय का गृह नगर भी है और जयवर्धन की यह विधानसभा सीट है। यहां से कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में लगभग 47 हजार मतों के अंतर से जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में 43 हजार से ज्यादा के वोट का अंतर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में रहा। इसी तरह मुलताई के सुखदेव पांसे के जीत के आंकड़े 17 हजार 250 पर भाजपा प्रत्याशी ने 52 हजार वोट से भी ज्यादा की बढ़त ली। भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट से मंत्री पीसी शर्मा की 6587 वोट की जीत को भाजपा प्रत्याशी ने करीब 46 हजार की बढ़त में बदल लिया है। इनके अलावा मंत्री विजयलक्षमी साधौ, सज्जन सिंह वर्मा, हुकुम सिंह कराड़ा, डॉ. गोविंद सिंह, बाला बच्चन, बृजेन्द्र सिंह राठौर, प्रदीप जायसवाल, गोविंद सिंह राजपूत, हर्ष यादव, कमलेश्लर पटेल, लखन घनघोरिया, महेन्द्र सिंह सिसौदिया, प्रदुम्न सिंह तोमर, सचिन यादव के विधानसभा क्षेत्रों में भी कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई।
आधा दर्जन मंत्रियों ने बचाई लाज
इस बार प्रदेश में मोदी लहर इस कदर हावी रही कि करीब आधा दर्जन मंत्री ही अपने क्षेत्र में पार्टी की लाज बचा सके। आरिफ अकील अपने भोपाल उत्तर विस क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त दिलाने में सफल रहे। हालांकि उनकी जीत का आंकड़ा 34 हजार 857 लोकसभा की लीड के रूप में करीब 25 हजार पर सिमट गया। मंडला की डिंडौरी सीट से ओमकार सिंह मरकाम के क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी पिछड़े हैं। हालांकि मरकाम जिस तरह 32 हजार वोटों से विधानसभा चुनाव में जीते थे, वह आंकड़ा करीब 18 हजार पर सिमट गया। धार के दो मंत्रियों ने भी कांग्रेस की लाज बचाई। इस सीट पर गंधवानी के मंत्री उमंग सिंघार की 2018 की जीत का आंकड़ा 38 हजार 831 था, जिसे भाजपा प्रत्याशी ने कम कर दिया। मगर सिंघार के यहां से कांग्रेस प्रत्याशी 11 हजार 216 की बढ़त लेने में जरूर सफल रहे। इसी तरह कुक्षी के विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल हनी की 62 हजार 936 की जीत लोकसभा चुनाव में करीब आधी रह गई। कांग्रेस प्रत्याशी को धार लोकसभा में कुक्षी से करीब 35 हजार वोट के अंतर से बढ़त दिलाई है।
19 विधायकों के क्षेत्र में बढ़त
114 विधानसभा सीट जीतने वाली कांग्रेस को लोकसभा में भारी नुकसान हुआ है। अगर लोकसभा के चुनाव नतीजों को विधानसभा वार देखा जाए तो 211 सीटों पर कांग्रेस भाजपा से पिछड़ गई। कांग्रेस के मौजूदा 19 विधायक ही अपनी विधानसभा को जीत सके बाकी 96 विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस की हार हुई है। कांग्रेस के जिन विधायकों ने पार्टी को बढ़त दिलाई है उनमें भितरवार से लाखन सिंह यादव, डबरा से इमरती देवी, पिछोर से केपी सिंह, पुष्पराजगढ़ से फुंदेलाल मार्कों, शाहपुरा से भूपेन्द्र मरावी, डिंडोरी से ओमकार सिंह मरकाम, बिछिया से नारायण पट्टा, निवास से अशोक मर्सकोले, लखनादौन से योगेन्द्र सिंह, बैहर से संजय उइके, जुन्नारदेव से सुनील उइके, अमरवाड़ा से कमलेश शाह, छिंदवाड़ा से दीपक सक्सेना, भोपाल उत्तर से आरिफ अकील, भोपाल मध्य से आरिफ मसूद, जोबट से कलावती भूरिया, सैलाना से हर्ष गेहलोत, गंधवानी से उमंग सिंघार और कुक्षी से सुरेंद्र सिंह बघेल।
वहीं, वोट प्रतिशत की बात की जाए तो विधानसभा में 41.6 फीसदी वोट पाने वाली भाजपा का लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत करीब 57 फीसदी रहा वहीं, कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव में 41.5 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर करीब 33 फीसदी हो गया है।
20 लोकसभा सीटों पर करारी हार
मध्यप्रदेश की 29 में से 20 लोकसभा सीटों के विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया है। यह सीट रीवा, जबलपुर, भिंड, होशंगाबाद, विदिशा, मुरैना, सीधी, राजगढ़, सागर, सतना, देवास, टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, बैतूल, उज्जैन, मंदसौर, इंदौर, खंडवा और खरगोन हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह थी योजनाओं को लोगों तक पहुंचना। वहीं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर, पीएम आवास स्कीम और उज्जवला गैस योजना का फायदा भाजपा को हुआ है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के अलावा 7 सीटें अन्य के पास हैं। बसपा के पास 2, सपा के पास 1 और 4 निर्दलीय विधायक हैं। विधानसभा चुनाव में सपा ने बिजावर, बसपा ने भिंड व पथरिया और निर्दलीयों ने वारासिवनी, बुरहानपुर, सुसनेर व भगवानपुरा सीट जीती थीं। सभी अन्य ने प्रदेश की कमलनाथ सरकार को समर्थन दिया है। इस नेताओं की सीट पर भी लोकसभा में भाजपा उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को कम वोट मिले हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 1 करोड़ 56 लाख 42 हजार 980 वोट मिले थे, जो 2019 में बढ़कर 2 करोड़ 14 लाख 06 हजार 887 हो गए। जबकि कांग्रेस का वोट दिसंबर 2018 में एक करोड़ 55 लाख 95 हजार 153 था, जो अब 1 करोड़ 27 लाख 33 हजार 51 वोट रह गया।
सरकार की कथनी पड़ी भारी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की वैसे तो काफी वजहें हैं, लेकिन सरकार की कथनी और करनी भी एक वजह है। दरअसल सरकार बनते ही पूरी सरकार की कार्यप्रणाली लोगों की अपेक्षा के विपरीत रही। खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ के बोल ऐसे रहे जिसे पसंद नहीं किया गया। उन्होंने होटल पलाश में अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही सलाह दे डाली कि विज्ञापन क्यों देना चाहिए। यह मितव्यता है। उसके बाद उद्योगपतियों और किसानों के सम्मेलन में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल पर उन्होंने न केवल उन्हें भाषणों की घुट्टी पिलाई बल्कि यहां तक कह डाला कि यह सरकार विज्ञापन की सरकार नहीं है। उनके इस कथन का संदेश गलत गया। यही कारण है कि सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार ठीक से नहीं हो पाया।
यही नहीं सरकार ने दावा किया कि उसने 75 दिन में 89 वचनों को पूरा किया है, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार नहीं हो सका। पूर्ववर्ती सरकार के दौरान कलेक्टर और जिलों की माध्यम से योजनाओं का प्रचार-प्रसार होता था जिसका गहरा प्रभाव जनता पर पड़़ता था। लेकिन इस सरकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ। यही नहीं इस सरकार में मंत्री पूरी तरह बेलगाम रहे। कई वरिष्ठ मंत्री तो अपने ही नेताओं को गाली देते सुने गए। इसके अलावा 15 साल बाद सत्ता में आए मंत्रियों ने ताबड़तोड़ कमाई करने की प्रतिष्पर्धा शुरू कर दी थी। हर फाइल के अंदर नाते-रिश्तेदारों को फिट करने की कवायद चलती रही। इस दौरान जनता की एक नहीं सुनी गई। इसका प्रभाव यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने वाली जनता लोकसभा चुनाव में उसके विपरीत हो गई।
गांवों में कम हुआ जनाधार
विधानसभा चुनाव से पहले कर्जमाफी के वचन के बलबूते मप्र में सरकार बनाने वाली कांग्रेस ने सत्ता संभालने के पांच महीने बाद ही किसानों और ग्रामीणों के बीच अपना बड़ा जनाधार खो दिया। ग्रामीण क्षेत्र की 126 विधानसभा सीटों में से 63 सीटें जीतने वाली कांग्रेस सिर्फ 13 सीटों पर ही सिमट गई। दूसरी तरफ भाजपा ने न केवल अपनी पैठ बनाई, बल्कि कई सीटों पर 40 से लेकर 70 हजार वोट ज्यादा हासिल किए। एकमात्र सीधी लोकसभा क्षेत्र की चुरहट ही ऐसी विधानसभा रही जिसे भाजपा ने गंवाया। शहरी सीटों के नतीजे सत्तारुढ़ दल के लिए और भी चिंताजनक हैं।
हार गले नहीं उतर रही
कांग्रेस के लिए ये चुनाव परिणाम किसी सदमे से कम इसलिए भी नहीं है, क्योंकि पार्टी की प्रथम एवं द्वितीय पंक्ति के लगभग सभी नेता धराशायी हो गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, विवेक तनखा, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, रामनिवास रावत, मीनाक्षी नटराजन जैसे नाम अपने-अपने क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों के सामने टिक नहीं पाए। भाजपा के उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा इतना बड़ा था कि हारने वाले को हजम ही नहीं हो रहा। दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता को राजनीति की नौसिखिया कही जाने वाली साध्वी प्रज्ञा ने साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतो से पराजित कर दिया। तो सिंधिया को कभी उनके अनुयायी रहे केपी यादव ने सवा लाख के बड़े अंतर से हराया। एक लाख से कम जीत कुल तीन हुई। एक छिंदवाड़ा दूसरी रतलाम और तीसरी मंडला सीट पर। कांग्रेस के आला नेता अब तक यह बात पचा नहीं पा रहे है कि हार जीत का फासला इतना बड़ा कैसा हो सकता है। प्रदेश में जहां 15 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की हार का आंकड़ा तीन लाख से ज्यादा रहा, वहीं पांच लाख से ज्यादा हारने वालों की संख्या तीन है, जबकि एक लाख से अंदर हारने वाले महज दो ही उम्मीदवार निकले। इसके विपरीत लाज बचाने के लिए कांग्रेस जिस एक सीट पर जीत पायी वहां आंकड़ा 37 हजार से थोड़ा ही ज्यादा था। मोदी लहर का वेग कितना तीव्र था इसका अंदाजा भाजपा और कांग्रेस को मिले मतों के कुल अंतर से समझा जा सकता है। इस बार भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले 87 लाख मत ज्यादा मत मिले। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के नेताओं के बीच शीत युद्ध शुरू हो गया है। वहीं भाजपा मौके की नजाकत का फायदा उठाने की फिराक में है।
ये दशानन कभी भी गिरा सकते हैं सरकार
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस का संकट और गहराता जा रहा है। पहले से अल्पमत के भंवर में मंडरा रही कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। सूत्रों का कहना है कि ये कभी भी सरकार को गिरा सकते हैं। दरअसल मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण ये विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इनमें सुमावली विधायक एंदल सिंह कंसाना, अंबाह विधायक कमलेश जाटव, गोहद विधायक रणवीर जाटव, महाराजपुर विधायक नीरज दीक्षित, अनूपपुर विधायक बिसाहूलाल सिंह, निवास विधायक अशोक मर्सकोले, मनावर विधायक हीरा अलावा, आलोट विधायक मनोज चावला, सुवासरा विधायक हरदीप सिंह डंग और हाटपिपल्या विधायक मनोज चौधरी का नाम शामिल है। इनके अलावा पिछोर विधायक केपी सिंह के अलावा सपा और बसपा के विधायक भी पाला बदलने के फिराक में हैं।