16-May-2019 06:57 AM
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17वीं लोकसभा का अंतिम चरण का चुनाव बाकी है। 19 मई को बाकी 59 सीटों पर मतदान होना है। 23 मई को मतगणना होगी, लेकिन जिस तरह के हालात दिख रहे हैं उससे लोग पूछ रहे हैं कि सरकार किसकी बनेगी? यह क्यों पूछ रहे हैं? क्योंकि किसी की भी सरकार बनती नहीं दिख रही है यानी किसी की भी बन सकती है। किसी की याने क्या? किसी एक पार्टी की नहीं। जो भी बनेगी, वह मिली-जुली बनेगी। उसे आप गठबंधन की कहें या ठगबंधन की! तो पहला प्रश्न यह है कि सबसे बड़ी पार्टी कौन उभरेगी? सबसे ज्यादा सीटें किसे मिलेंगी? इसका जवाब तो काफी सरल है। या तो भाजपा को मिलेंगी या कांग्रेस को मिलेंगी? कांग्रेस को सबसे ज्यादा नहीं मिल सकतीं। उसकी 50 सीटों की 300 नहीं हो सकतीं। उसके पास न तो वैसा कोई नेता है, न नीति है, न नारा है। लेकिन मोहभंग को प्राप्त हुई जनता कांग्रेस को कुछ न कुछ लाभ जरूर पहुंचाएगी। 50 की 80 भी हो सकती हैं और 100 भी ! 100 सीटों वाली कांग्रेस सरकार कैसे बना सकती है? इसी प्रकार भाजपा, जिसे 2014 में 282 सीटें मिली थीं, यदि उसे इस बार 200 या उससे कम सीटें मिलीं तो वह भी मुश्किल में पड़ जाएगी। 2014 में उसे 282 सीटें मिली थीं। वह चाहती तो अकेले ही राज कर सकती थी लेकिन इस बार मामला काफी टेढ़ा है। उसके सत्ता में रहते हुए भी वह 282 से खिसककर 269 पर आ गई तो अब आम चुनाव में उसका क्या हाल होगा? उसे बहुमत तो मिलने से रहा।
कैसी होगी नई सरकार
सत्तासीन भाजपा फिर एक बार मोदी सरकारÓ का ख्वाब देख रही है, तो वहीं कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल मोदी सरकार को बेदखल करने के लिए पुरजोर कोशिशों में लगे हुए हैं। इस बीच 543 सदस्यीय लोकसभा की 484 सीटों के लिए मतदान संपन्न हो जाने के साथ ही नई सरकार को लेकर अटकलें और तेज हो गई हैं। छठे चरण के मतदान संपन्न हो जाने के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों के दिग्गज नेताओं के हाव-भाव बदले-बदले दिखाई दे रहे हैं। भाजपा नेता राम माधव, कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव के बयानों में नई सरकार के आकार-प्रकार की झलक बखूबी देखने को मिल रही है।
नई सरकार की रूपरेखा को लेकर लगाए जा रहे कयासों की शुरूआत सत्तारूढ़ भाजपा के दिग्गज नेता के हालिया बयान से करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने संकेत दिया है कि भाजपा अकेले अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। राम माधव ने इस बात की संभावना जताई है कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को सहयोगियों की जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से पीछे रह सकती है। राम माधव ने यह भी कहा, भाजपा को उत्तर भारत के उन राज्यों में संभावित तौर पर नुकसान हो सकता है जहां 2014 में रिकॉर्ड जीत मिली थी। हालांकि दूसरी तरफ पूर्वोत्तर के राज्यों और ओडिशा व पश्चिम बंगाल में पार्टी को फायदा होगा।
गैर भाजपा-कांग्रेस मोर्चा की कवायद
देश में अगली सरकार किसकी बनेगी इसका स्पष्ट संकेत न मिलने पर पांचवें चरण का मतदान संपन्न होने के साथ ही गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस मोर्चे के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। इस दिशा में पहले कदम के तहत तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव ने तिरुवनंतपुरम में केरल के मुख्यमंत्री और माकपा नेता पिनरई विजयन से मुलाकात की। उधर केसीआर विभिन्न पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। राव ने ही पिछले साल मार्च में संघीय मोर्चे का विचार पेश किया था और भाजपा और कांग्रेस दोनों का एक विकल्प देने के लिए पहल शुरू की थी। उन्होंने उसके बाद टीएमसी, बीजेडी, सपा, जनता दल (सेकुलर) और डीएमके के नेताओं से मुलाकात की थी। उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को भी प्रस्तावित मोर्चे में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था।
तय होगी दिशा और दशा
17वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम के बाद कई पार्टियों की दिशा और दशा तय होगी। 269 का आंकड़ा पाने के लिए जोड़-तोड़ का प्रयास तेजी से होगा। भाजपा जहां हर हाल में सरकार बनाने की कोशिश करेगी वहीं तीसरे मोर्चे के नेता भी सरकार बनाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में एक-एक सांसद का महत्व बढ़ जाएगा। इससे कई पार्टियों में भगदड़ भी देखने को मिलेगी। इसका संकेत इससे भी मिलता है कि कई विपक्षी पार्टियों ने सरकार बनाने के लिए अभी से जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया है, पर इन्हें एक डर है। वह यह कि त्रिशंकु लोकसभा के हालात में बीजेपी अगर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो कहीं राष्ट्रपति उसे सरकार बनाने के लिए न बुला लें। ऐसा 1996 में हो चुका है जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए बुलाया था। तब बीजेपी को 161 सीटें ही मिली थीं। वे अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए थे और तेरह दिन में ही सरकार गिर गई थी। लेकिन विपक्षी पार्टियों को लगता है कि ऐसा इस बार हुआ तो हालात बदल सकते हैं, क्योंकि बीजेपी छोटी पार्टियों में तोड़-फोड़ कर सकती है और उन्हें अपने साथ मिलाकर बहुमत जुटा सकती है। इसीलिए 21 विपक्षी पार्टियां 19 मई को मतदान समाप्त होने के बाद राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगेंगी।
वे कहेंगी कि त्रिशंकु लोकसभा होने पर सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए न बुलाया जाए। ये 21 पार्टियां नतीजे आने से पहले ही राष्ट्रपति को एक संयुक्त पत्र दे सकती हैं। कहा जा सकता है कि सरकार बनाने के लिए उन्हें बुलाया जाए। इस अप्रत्याक्षित और अभूतपूर्व कदम का क्या मतलब है? इस बारे में संविधान क्या कहता है? अभी दो मॉडल हैं। एक शंकर दयाल शर्मा का, जिसमें सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाया गया। दूसरा है के आर नारायणन का। इसे 1998 और 99 के चुनाव नतीजों के बाद लागू किया। तब अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए तभी बुलाया गया, जब उन्होंने 272 सांसदों के समर्थन के पत्र उन्हें सौंपे। हालांकि सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाना कोई नियम या परंपरा नहीं है। इसकी सबसे पहले शुरुआत सही मायने में 1989 में हुई थी। तब त्रिशंकु लोकसभा बनी और इसमें 194 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी। तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने सरकार बनाने के लिए राजीव गांधी को आमंत्रित किया। लेकिन उन्होंने सरकार बनाने से मना कर दिया। इसके बाद वीपी सिंह की अगुवाई वाले चुनाव बाद गठबंधन को मौका दिया गया।
राष्ट्रपति क्या करेंगे?
इसलिए अब सवाल सबसे बड़ी पार्टी का नहीं, बल्कि सबसे बड़े गठबंधन का भी है। अगर नारायणन के मॉडल को लागू किया जाए तो सबसे बड़े गठबंधन से भी 272 सांसदों के पत्र देने को कहा जा सकता है। गठबंधन भी दो तरह के हैं। चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद का गठबंधन। किसे मौका मिलना चाहिए? ऐसे कई सवाल है। विपक्ष अभी से सबसे बड़े दल या चुनाव पूर्व के सबसे बड़े गठबंधन को न्यौता मिलने से रोकने में जुट गया है, क्योंकि उसे लगता है कि बीजेपी सबसे बड़े दल और एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभर सकता है, लेकिन बहुमत से दूर रह सकता है। हालांकि नतीजे आने से पहले ही इस तरह की कवायद का क्या मतलब है? पर याद दिला दूं कि 2009 में कांग्रेस ने ही इसकी शुरुआत की थी। तब परिणाम आने से पहले ही कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा था कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए नहीं बुलाना चाहिए। तो इस बार रामनाथ कोविंद क्या करेंगे? क्या सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाना चाहिए? या फिर उन दलों को जिनके पास 272 का आंकड़ा हो? संविधान में ऐसे हालात को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। अनुच्छेद 75 (1) में सिर्फ इतना ही कहा गया है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा, लेकिन उसके लिए क्या शर्त है या फिर दायरा, यह राष्ट्रपति के विवेक पर ही छोड़ दिया गया है।
भाजपा को नहीं मिलेगा बहुमत
भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की माने तो भाजपा को इस बार चुनाव में बहुमत नहीं मिलेगा और भाजपा 220 से 230 सीटों तक सिमट जाएगी और उसे बहुमत जुटाने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ेगा। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया था कि पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने अगर बालाकोट में एयर स्ट्राइक नहीं किया होता तो पार्टी 160 सीटों पर सिमट जाती। स्वामी के मुताबिक, यदि भाजपा 220 से 230 सीटों तक सिमटती है तो शायद नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री न बन सकें। उनका कहना है कि मान लीजिए भाजपा 220 या 230 सीटों पर सिमट जाती है और एनडीए के सहयोगियों को 30 सीटें मिलतीं है तो आंकड़ा 250 तक जाएगा, भाजपा को फिर भी 30 सीटों की आवश्यकता होगी। नरेंद्र मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने के प्रश्न पर सुब्रमण्यम स्वामी का मानना है कि यह अन्य सहयोगियों पर निर्भर करता है। बहुमत के लिए 30 से 40 अतिरिक्त सीटों की आवश्यकता पड़ेगी। सरकार बनाने के लिए बसपा और बीजू जनता दल (बीजेडी) जैसे दल समर्थन कर सकते हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल का कहना है कि कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत हासिल करने की संभावना नहीं है, साथ ही उन्होंने कहा कि गठबंधन अगली सरकार बनाने की स्थिति में हो सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए को चुनाव में बढ़त हासिल होगी और यह सरकार बना सकता है।
सपा, बसपा, कांग्रेस में बना तालमेल
लोकसभा चुनाव के आखिरी दौर में पहुंचते-पहुंचते उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के गठबंधन का कांग्रेस के साथ सद्भाव बन ही गया। प्रियंका गांधी के एक बयान से इसका आधार तैयार हुआ है। उन्होंने अकेले में नहीं, बल्कि सार्वजनिक मंच से कहा कि कांग्रेस के प्रत्याशी या तो चुनाव जीतेंगे या भाजपा के वोट काटेंगे। उन्होंने साफ कर दिया कि उनके प्रत्याशी सपा और बसपा के उम्मीदवार को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि भाजपा के वोट काट रहे हैं। इसके लिए भाजपा नेताओं ने और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी आलोचना की और कांग्रेस पर तंज किया पर प्रियंका ने जिस मकसद से बयान दिया वह मकसद पूरा हो गया। अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट पर मतदान से ठीक एक दिन पहले प्रियंका को कामयाबी मिली और बसपा प्रमुख मायावती ने अपने समर्थकों से कहा कि वे सोनिया और राहुल गांधी के लिए मतदान करें। अमेठी में कांग्रेस को बसपा की मदद की बहुत जरूरत थी। वह मायावती ने कर दी और उसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर आरोप भी लगाया कि वह सपा
और बसपा में फूट डालने की कोशिश कर रही है। अब देखना यह है कि 23 मई को मतगणना के बाद बहुमत का जादुई आंकड़ा जुटाने के लिए राजनीतिक पार्टियां किस तरह की चालें चलती हैं।