19-Jun-2019 08:31 AM
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15 साल बाद कांग्रेस ने मप्र की सत्ता में वापसी तो कर ली है, लेकिन पूर्ववर्ती सरकार की गलत नीतियों के कारण प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। इस कारण सरकार अपनी योजनाओं को अमलीजामा नहीं पहना पा रही है। आर्थिक तंगी के इस दौर में एक-एक पैसे की जुगाड़ में लगी सरकार को नई आबकारी नीति से उम्मीद की किरण नजर आ रही थी। खुद प्रदेश के वाणिज्यिक कर मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर ने फरवरी माह में कहा था कि मध्यप्रदेश सरकार ऐसी नई आबकारी नीति लाएगी जिससे प्रदेश का खाली खजाना भर सके। लेकिन विभागीय अधिकारियों ने सस्ती शराब बनाने वाली कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा खेल खेला की सरकार को करीब 462 करोड़ रूपए की चपत लग गई है। गरीबी में आटा गीला करने के इस खेल को ऐसे खेला गया कि सरकार को इसकी भनक तक नहीं लग पाई।
दरअसल, कर्ज के बोझ तले दबी सरकार की मंशा थी कि वह नई आबकारी नीति के तहत शराब दुकानों के लाइसेंस के नवीनीकरण और शराब के दाम में वृद्धि कर बड़ा राजस्व अर्जित करेगी। इसके लिए अधिकारियों को नई आबकारी नीति बनाने का निर्देश दिया गया। विभागीय सूत्रों के अनुसार, नई आबकारी नीति लागू होने से चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में 10 हजार, 500 करोड़ रुपए का राजस्व मिलने की संभावना है। लेकिन आबकारी विभाग के अधिकारियों ने नियमों में तोड़-मरोड़कर ऐसा खेल खेला कि सरकार को अरबों रुपए की चपत लग गई है।
इस बार ड्यूटी दर अलग से
मप्र में 2,544 देशी और 1,061 विदेशी शराब की दुकानों पर शराब की बिक्री होती है। इनसे मिलनी वाली ड्यूटी सरकार के राजस्व का बड़ा हिस्सा होती। इसके लिए हर साल नई आबकारी नीति बनाकर लागू की जाती है। इस बार कर्ज में डूबी सरकार ने आबकारी विभाग से करीब 10,000 करोड़ रूपए के राजस्व की उम्मीद लगा रखी है। इसके लिए इस बार शराब की ड्यूटी में 10 प्रतिशत वृद्धि का नियम बनाया गया। लेकिन अधिकारियों ने शराब निर्माता कंपनियों के साथ सांठ-गांठ कर इस बार अनोखा खेल खेला है कि सरकार की मंशा पर पानी फिर गया है। दरअसल, इस बार शराब पर लगने वाली ड्यूटी दरें आबकारी नीति के साथ जारी नहीं की गई। इससे बड़े घपले की आशंका जताई जा रही है।
गौरतलब है कि पिछले 20 साल से हर साल नई आबकारी नीति के साथ ही ड्यूटी दरें भी जारी की जाती थीं। आबकारी नीति 2018-19 में भी नियम 26.1 से 26.8 तक सभी प्रकार की आबकारी दरें जारी की गई थीं। जिसका उल्लेख आबकारी विभाग के राजपत्र में भी किया गया है। लेकिन आबकारी नीति 2019-20 में भारत निर्मित विदेशी शराब की ड्यूटी दरें अलग से जारी की गई। आखिर ऐसा किसको लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है।
बढ़ाने की बजाय घटा दी दरें
पाक्षिक अक्स ने जब नई आबकारी नीति और भारत निर्मित विदेशी शराब की ड्यूटी दरें अलग-अलग जारी करने की पड़ताल की तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। आबकारी नीति 2019-20 में नियम 22 में यह लिखा गया है कि 2018-19 की दरों में 10 प्रतिशत की वृद्धि कर ड्यूटी दरें जारी की जाएंगी। यानी इस बार भारत निर्मित विदेशी शराब की जो ड्यूटी दरें लगाई जानी थी उसमें पिछले साल की अपेक्षा 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाती। इससे सरकार को हजारों करोड़ रूपए की अतिरिक्त आय होती। लेकिन अधिकारियों ने नियम को दरकिनार कर ड्यूटी दरें बढ़ाने की बजाए कम कर दीं। इसके लिए न तो केबिनेट, न मुख्यमंत्री और न मंत्री से अनुमोदन लिया गया। यानी अधिकारियों ने जान-बूझकर आबकारी दरों का खुलासा नहीं किया।
पाक्षिक अक्स की पड़ताल के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि आबकारी विभाग के अधिकारियों ने सस्ती शराब बनाने वाली एक कंपनी के साथ सांठगांठ कर इस घपले को अंजाम दिया है। 2019-20 की नई आबकारी नीति 16 मार्च को जारी की गई जबकि उक्त कंपनी से सांठगांठ के बाद तैयार की गई दरें 31 मार्च को जारी की गई। जानकारी के अनुसार, उक्त कंपनी सस्ती शराब का उत्पादन करती है। कभी प्रदेश में शराब कारोबार में इस कंपनी का वर्चस्व था। पूर्ववर्ती सरकार में इस कंपनी की चल नहीं पाई। लेकिन सत्ता बदलते ही कंपनी ने आबकारी अधिकारियों के साथ सांगगांठ करना शुरू कर दिया और नई आबकारी नीति को अपने फायदे में तब्दील करवा लिया। कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए अधिकारियों ने जहां 1500 रुपए से कम दर की शराब पर 15 से 27 प्रतिशत तक ड्यूटी दरें कम कर नया स्लेब बनावा लिया। यह 2019-20 की आबकारी नीति के नियम 22 का सरासर उल्लंघन है। इससे सरकार को लगभग 462 करोड़ का नुकसान केवल स्लैब चार्ज कर लगाया गया है। वहीं अधिक कीमत वाली शराब पर ड्यूटी दरें बढ़ा दी गई हैं, ताकि सरकार को इस घपले पर संदेह न हो सके।
इस तरह दिया घपले को अंजाम
आबकारी विभाग में हुए इस घपले को बड़े ही शातिराना तरीके से अंजाम दिया गया। नियमानुसार नई आबकारी नीति पर विभाग के प्रमुख सचिव, आयुक्त और ठेका प्रभारी अपर आयुक्त का हस्ताक्षर होना चाहिए। बताया जाता है कि नई आबकारी नीति में नियमानुसार ड्यूटी दरों का निर्धारण न होने और उन्हें पृथक से जारी किए जाने के कारण आबकारी नीति पर ठेका अधिकारी ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। ऐसे में विभागीय अधिकारियों ने 22 अप्रैल को रीवा से एक उपायुक्त का ट्रांसफर किया। उनके ट्रांसफर आदेश में लिखा गया कि वे 31 मई को उज्जैन में ज्वाइन करें। इस बीच अधिकारियों ने उन्हें कुछ समय के लिए मंत्रालय में रोक कर उनसे हस्ताक्षर करवा लिए जो नियम विरूद्ध है। सवाल यह उठता है कि हर छोटी-छोटी बात पर नियमों का हवाला देने वाले मप्र के अधिकारियों ने आखिर किसको लाभांवित करने के लिए अपने कर्तव्यों की बलि चढ़ा दी और सरकार को अरबो रूपए की चपत लगवा दी।
ड्रॉट बीयर में भी बड़ा खेल
नई आबकारी नीति से बड़े राजस्व के मिलने का सपना संजोई सरकार को अधिकारियों ने ड्रॉट बीयर की कीमतों में कमी करके बड़ा झटका दिया है। नई आबकारी नीति में ड्रॉट बीयर में भी बड़ा खेल खेला गया है। आबकारी नीति 2018-19 में जहां ड्रॉट बीयर 77 रुपए में बिकती थी उसका रेट कम करके इस बार 47 रुपए कर दिया गया है। कीमतों में 40 फीसदी की यह कमी क्यों की गई या ऐसा किसको लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है यह शोध का विषय है।
गौरतलब है की ड्रॉट बीयर की बिक्री प्रदेश में बड़े पैमाने पर होती है। होटलों, बीयर बारों में इसकी मांग बहुतायत में होती है। इसमें अल्कोहल कम होने के कारण लोग इसे अधिक पसंद करते हैं। ऐसे में इसकी बिक्री पर सरकार को बड़ा राजस्व मिलता है।
लेकिन अधिकारियों ने इसकी कीमत में 40 फीसदी की कमी कर दी है। ऐसा लगता है कि निर्माता कंपनियों के साथ ही होटल और बीयर बारों को फायदा पहुंचाने के लिए अफसरों ने ऐसा किया है। यह बीयर बच्चों के लिए बहुत नुकसान दायक है।
सस्ती शराब से 4 हजार
करोड़ की आय
जानकारी के अनुसार प्रदेश में सबसे अधिक आय सस्ती शराब (651 से 1500 रूपए वाली) से होती है। प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी इसी शराब को पीती है। इसलिए यह कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। आबकारी विभाग के सूत्रों से मिले आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में हर साल करीब 10,000 करोड़ रूपए की सस्ती शराब की बिक्री होती है। इससे सरकार को करीब 4,000 करोड़ रूपए की ड्यूटी मिलती है। लेकिन इस बार अधिकारियों ने एक कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए सस्ती शराब की दरों में 15 से 27 प्रतिशत की कमी करके सरकार को बड़ी चपत दी है।
वहीं सरकार को कमाई के भ्रम में डालते हुए अधिकारियों ने महंगी अंग्रेजी शराब के रेट में वृद्धि कर दी है। आबकारी विभाग के सूत्रों के अनुसार 25,00 रुपए से ऊपर वाली बोतलों की ड्यूटी दरों में वृद्धि की गई है जिसे पीने वालों की संख्या बहुत ही कम है। सूत्र बताते हैं कि शराब माफिया के साथ सांठगांठ कर अधिकारियों ने ऐसी नीति बनाई है कि सरकार को अनुमानित लाभ नहीं मिल पाएगा। जबकि हालत ये है कि पिछले वित्तीय वर्ष 2018-19 में भी सरकार 9000 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी।
नीति बनाने में देरी क्यों?
नई आबकारी नीति में हुई देरी भी सवालों के घेरे में है। विपक्ष का आरोप है कि दलालों के कारण सरकार समय पर आबकारी नीति नहीं बना पाई।
मध्यप्रदेश की नई आबकारी नीति विभाग की तैयारी के अनुसार फरवरी माह के अंतिम माह तक तैयार की जानी थी जो शराब कारोबारियों और दलालों के सक्रिय रैकेट के दबाव के चलते विभाग के द्वारा अपनी समय सीमा में तैयार नहीं की जा सकी। विभाग की इस असफलता के पीछे जो कारण सामने आए वह यह बताते हैं कि बदली हुई सरकार ने विभाग में सक्रिय दलाल ठेकेदारों को धमकाकर उनसे वसूली करने की योजना बनाई थी मगर सरकार की यह योजना भी असफल हो गई? मजे की बात यह है कि इस योजना में विभागीय अधिकारियों ने इन दलालों का साथ दिया और सारा खेल विभाग में वर्षो से प्रचारित काली कमाई के फेर में खेला गया। क्योंकि विभाग में इस प्रथा को ही प्रमुखता दिए जाने की परंपरा चलती आई है। यही नहीं इसी परंपरा के चलते विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ -साथ शराब कारोबारियों और ठेकेदारों का भी रैकेट फलता फूलता रहा है। यही वह वजह है जिसके चलते विभाग के अधिकारियों ने दलालों से सांंठगांठ कर सरकार के बदल जाने के बाद भी नयी आबकारी नीति तैयार करने में कोई खास रुचि इसलिए नहीं दिखाई क्योंकि उनका उद्देश्य सरकार को नहीं ठेकेदारों और दलालों को फायदा पहुंचना रहा है।
150 करोड़ की राजस्व की चोरी
प्रदेश में आबकारी विभाग सरकार को तरह-तरह राजस्व हानि पहुंचा रहा है। इसी में से एक है अवैध अहातों का संचालन। जानकारी के अनुसार, फिलहाल प्रदेशभर में 80 प्रतिशत से अधिक अहाते अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं। इससे सरकार को करीब 150 करोड़ की चपत लग रही है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग की सख्ती के चलते लगभग 800 ऐसे अहाते बंद हो गए थे, पर चुनाव खत्म होते ही एक बार फिर ये चालू हो गए हैं। इनके फिर से चालू होने पर आबकारी अफसर तर्क भी हास्यास्पद दे रहे हैं कि जल्द ही घोषित होने वाली नई नीति में इन्हें वैध किया जा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि नई नीति में सरकार भले इन्हें मान्यता दे, लेकिन अभी शराब के अवैध कारोबार की अनदेखी कैसे की जा सकती है। अवैध शराबखोरी के यह अड्डे न सिर्फ कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बने हुए हैं, बल्कि इनके जरिए करोड़ों की राजस्व चोरी भी की जा रही है। आबकारी लाइसेंस की शर्तों के मुताबिक, सिर्फ ऑन शॉप लाइसेंस श्रेणी की दुकानों में ही अहाते संचालित हो सकते हैं। इसके लिए उस अंग्रेजी दुकान की लाइसेंस फीस की लगभग 2 फीसदी राशि जमा करना पड़ती है। भोपाल की बात करें तो बमुश्किल आधा दर्जन दुकानों के पास ही ऑन शॉप लाइसेंस हैं। ज्यादातर दुकानें ऑफ शॉप लाइसेंस कैटेगरी की हैं। इस लिहाज से देखें तो प्रदेशभर में करीब 150 करोड़ से ज्यादा के आबकारी राजस्व की चोरी हो रही है।