मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस में तनातनी
17-Aug-2013 06:22 AM 1234780

सागर में जब केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक मंच पर दिखाई दिए तो कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई। वैसे कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वाधिक पसंदीदा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही है लेकिन कमलनाथ, कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंह भी दौड़ से अलग नहीं हैं। राहुल सिंह का नाम दूर-दूर तक शामिल नहीं हैै। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने अपनी पकड़ खो दी है। खासकर विश्वास मत के समय जो नाटक हुआ उसके चलते अजय सिंह सहित कई नेता प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद की दौड़ से बाहर हो चुके हैं। ज्योतिरादित्य की युवा कांग्रेस में अच्छी पकड़ है और वे नई पीढ़ी के नेता माने जाते हैं। जहां तक कांतिलाल भूरिया का प्रश्र हैै उन्हें तभी मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है जब आदिवासी कार्ड खेला जाए लेकिन समस्या यह है कि भूरिया को उतना काबिल नेता नहीं माना जाता। वे जो मुंह में आए बोल देते हैं। पिछले दिनों संघ के नेताओं पर जिस तरह के आरोप भूरिया ने लगाए थे उससे यह
साफ हो गया कि भूरिया की मानसिकता
ब्लॉक लेवल के नेता से ज्यादा ऊपर नहीं
उठ पाई है। कमलनाथ की केन्द्रीय राजनीति
में पकड़ तो अच्छी है लेकिन उनकी
महत्वकांक्षा को प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेता शायद ही परवान चढऩे दें। वैसे कांग्रेस में फंडिंग के अभाव में कमलनाथ की तरफ ही देखना पड़ेगा जो फिलहाल एकमात्र सक्षम और विश्वसनीय नेता हैं।  लेकिन उनकी राह में बहुत बाधाएं हैं।
दिग्विजय सिंह 10 साल का वनवास काट चुके हैं और लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की कोशिश में हैं लेकिन उनके विरोधियों ने 10 वर्षीय कुशासन का हवाला देते हुए दिग्विजय को मुख्यधारा से अलग कर रखा है पर चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए घमासान मचा तो दिग्विजय सिंह वाइल्ड कार्ड से एंट्री भी पा सकते हैं। किन्तु यह सब प्रश्र तभी प्रासंगिक होंगे जब कांग्रेस चुनाव जीतेगी। फिलहाल तो कांग्रेस के चुनाव जीतने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। यह सच है कि प्रदेश में सत्ता विरोधी रूझान का फायदा कांग्रेस को मिलेगा ही और कम अंतर वाली सीटों पर अब वह जीत सकती है लेकिन उसके विधायकों के कारनामे भी उतने अच्छे नहीं हैं। इसीलिए भाजपा की तरह कांग्रेस को भी कई विधायकों के टिकिट काटने पड़ेंगे। भाजपा के साथ प्लस पाइंट यह है कि वह टिकिट से वंचित विधायकों को दूसरे पदों का लालच दे सकती है क्योंकि वह सत्ताधारी पार्टीं है जबकि कांग्रेस में गुटबाजी के कारण जिस विधायक को टिकिट न मिले उसके समर्थक पार्टीं के विरोध में काम करना शुरू कर देते हैं।
हाल ही में कांग्रेस की बैठक के दौरान भोपाल में ही कांग्रेसी एक दूसरे से भिड़ पड़े थे। सागर में भी गुटबाजी देखने को मिली थी। गुटबाजी रोकने के लिए आलाकमान ने अपने नेताओं के फोटो होर्डिग में नहीं लगाने का फरमान जारी किया है और इसके लिए एक फारमेट भी बताया है जिसमें स्पष्ट है कि सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी का फोटो ही होर्डिग में लगेगा। इससे कांग्रेस में अनुशासन तो आएगा लेकिन एकता के मंच पर कांग्रेसी की भीतरी लड़ाई जो चल रही है वह खतरनाक हो सकती है। इसी को देखते हुए राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस को सक्रिय भूमिका में प्रस्तुत करने का फैसला किया है।
सूत्रों के अनुसार 100 से ज्यादा युवा कांग्रेस के प्रत्याशियों को प्रदेश के 43 हजार वोटर पदाधिकारी बनाएंगे। इसके पीछे  मकसद यही है कि जो लोकप्रिय हो उसे ही आगे बढ़ाया जाएगा बड़े नेताओं के चमचों और करीबियों को ज्यादा भाव नहीं दिया जाए। लेकिन इस कदम ने गुटबाजी तेज कर दी है। दिग्गिज नेता अपने अपने समर्थकों को जीताने के लिए हर सम्भव दांव चल रहें हैं। ऐसे लोग भी प्रत्याशी बन चुके है जो एक ही नेता के खास माने जाते हैं लेकिन आमने सामने हैं। जनआशीर्वाद यात्रा के जवाब में कांग्रेस ने प्रदेश में जिन 8 सभाओं की घोषणा कर रखी है उनमें से सागर की सभा में कुछ अच्छी भीड़ भी दिखाई दी हालांकि गुटबाजी का असर इस सभा में भी देखा गया। सागर के अतिरिक्त मंडला, बालाघाट, महू, मदसौर, मुरैना, बैतूल और शहडोल में पांच सितम्बर तक इसी तरह सभाएं आयोजित की जाएंगी। इन सभाओं में प्रदेश के मंत्रियों और मुख्यमंत्री को घेरने की कोशिश की जाएंगी लेकिन इनकी सफलता युवा कांग्रेस संगठन की तत्परता पर ही निर्भर करेगी जो अब एक अलग इकाई के रूप में स्पष्ट दिखाई देने लगा हैं।

भोपाल से अजय धीर

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