कांटे की टक्कर से भाजपा सचेत
17-Aug-2013 06:20 AM 1234757

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब बमुश्किल 90 दिन का समय बचा है और भाजपा के लिए कड़े मुकाबले वाली सीटें सरदर्द बनती जा रही हैं। सुत्रों के अनुसार जिन सीटों पर पिछली बार भाजपा की जीत का अंतर मामूली था वहां चुनौती ज्यादा है 5000 के आसपास अन्तर वाली लगभग 25-35 सीटें ऐसी हैं जहां इस बार चुनाव में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी को चुनौती मिल सकती है। इनमें से कुछ सीटें तो डेन्जर जोन में हैं। भाजपा ने 70-80 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने की कवायद शुरू कर दी है। वहीं मंत्रीमंडल से निकाले गए विजयशाह को मजबूरी में दोबारा मंत्री बनाना पड़ रहा है। क्योंकि ट्राइबल की 6 से 10 सीटों पर वह और उनके भ्राताश्री कमर कस चुके थे भाजपा को निपटाने की। इसी भय से भाजपा ने उन्हें मंत्रीमंडल में शामिल करने का फैसला कर डाला। लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां प्रभावशाली विकल्प का अभाव है ऐसे हालात में उन्हीं चेहरों के भरोसे दस वर्ष की एंटी इंकमबेंसी का सामना करना पड़ेगा। यह चुनौती पूर्ण होने के साथ-साथ फील गुड के मोड में पहुंच चुकी भारतीय जनता पार्टी के लिए भारी परेशानी का कारण बन सकता है। पार्टीं के भीतरी सूत्र बताते हैं कि पार्टीं को स्थानीय स्तर पर कुछ भितरघातियों से भी डर है खासकर बुंदेलखंड में हालात चुनाव से पहले बेकाबू हो सकते हैं। मालवा में भी युवा कांग्रेस ने पिछले दिनों जमकर काम किया है और इसका असर भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर पड़ सकता हैं।
भाजपा में शिवराज, नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रभात झा को त्रिदेव कहा जा रहा है लेकिन प्रदेश सरकार का कोई भी अन्य मंत्री इन तीनों नेताओं के कद का नहीं है। एकाध मंत्री को छोड़कर ज्यादातर मंत्री अपनी पकड़ जनता के बीच बनाने में कामयाब नहीं हो सके। शिवराज ने कई मंत्रियों को कुछ महत्वपूर्ण जिलों का प्रभार सौंपकर आगे लाने की कोशिश भी की लेकिन कामयाब नहीं हो सके। चुनाव के समय भी इन मंत्रियों को अपने ही क्षेत्र में सीमित रहना पड़ेगा क्योंकि उनका अपना ही किला इस बार सुरक्षित नहीं है। शायद इसी कारण प्रभात झा और अनिल दवे ने प्रत्याशियों के चयन के लिए कुछ गैर परंपरागत तरीके अपनाए हैं जिसके तहत कुछ वरिष्ठ नेताओं को जिले में तैनात किया गया है जो फीडबैक के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करेंगे। ये वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद विधायक, पिछला चुनाव जीतने व हारने वाले उम्मीदवार, जिले के वर्तमान व पूर्व पदाधिकारियों, प्रकोष्ठ के संयोजक व मोर्चा के अध्यक्षों, जिलें के राष्ट्रीय पदाधिकारियों अतिरिक्त मंडल अध्यक्ष, मंडी अध्यक्ष और स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों से भी सलाह मशविरा करेंगे। जाहिर है वरिष्ठ नेताओं को उनके जिलों में नहीं भेजा जाएगा। भोपाल में प्रभात ज्ञा एवं अजय प्रताप सिंह, इन्दौर में अनिल माधव दवे एवं लाल सिंह आर्य, ग्वालियर में कैलाश सारंग व अमरदीप मोर्य तथा जबलपुर में कप्तान सिंह सौलकी और कृष्णा गौर को इस काम में तैनात किया गया है लेकिन फीडबैक के अलावा भी कई दूसरी चुनौतियां है। 80 विधायक तो ऐसे हैं जिन्हें जनता निष्क्रिय मानती है और पिछली 5 वर्षों में उन्होने कोई काम भी नहीं किया जिसके कारण जनता उन्हें दुबारा चुने। शिवराज ने विधायकों का जो परफारमेन्स ऑडिट करवाया था उसके मुताबिक 100 विधायकों के टिकिट काटना ही पड़ेगा और इनमें कुछ दिग्गज मंत्री भी हैं। हालांकि कुछ मंत्रियों ने पिछले 5 वर्षों में अपना प्रदर्शन सुधारा भी है और उनके ऊपर कम अंतर से जीतने वाला क्राईटेरिया शिथिल पड़ सकता हैं, ऐसे हालात में लोकसभा चुनाव की बढ़त को भी आधार बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री और नरेन्द्र सिंह तोमर को आलाकमान ने इसी वजह से फ्रीहेंड दिया है इससे उन विधायकों को भी स्पष्ट संकेत मिल गया है जिन्होंने दिल्ली में अपने आकाओं के सहारे फिर से टिकिट पाने की जुगाड़ जमा रखी थी। जिन विधायकों को शिवराज और तोमर तमाम परिस्थितियों के बावजूद रिपीट करना चाहते हैं उन विधायकों के क्षेत्र में दोनों नेताओं ने अंत्योदय मेले, सामूहिक विवाह से लेकर अन्य योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करवाया ताकि विकास कार्यों के भरोसे चुनाव जीता जा सके। इन विधायकों को जनता के सम्पर्क में रहने और उनकी समस्याएं सुलझाने का निर्देश भी दिया गया है ताकि फीडबैक में संगठन को उनकी नकारात्मक रिपोर्ट न मिले। जिन एंजेसियों ने फीडबैक दिया है उन्होंने जाति का समीकरणों के साथ-साथ क्षमतावान नए चेहरे भी सुझाए हैं अब दिग्गज नेताओं को जो प्रतिक्रिया जिलों से मिलेगी उसका और एंजेसियों के फीडबैक का का मिलान करके ही प्रत्याशी तय किए जाएंंगे। चुनावी प्रचार के लिए भाजपा ने जो आक्रमक रणनीति बनाई है उसमे  मुख्य रूप से केन्द्र सरकार की नकामियों को उजागर किया गया है। शिवराज सिंह भी अपनी जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान प्रमुख रूप से इसी पर केन्द्रित हैं। शिवराज की अपनी छबि के बावजूद यह चुनाव आसान नहीं है।
श्यामसिंह सिकरवार

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