बदल गई नदी की दिशा
16-May-2019 06:40 AM 1234954
नदिया हमारे विकास में मुख्य योगदान देती हैं। यही कारण है कि प्रमुख नदियों के किनारे बड़े-बड़े शहर बसे हुए हैं। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हम नदियों को संरक्षित करना भूल रहे हैं। भोपाल के पास बहने वाली पात्रा नदी उन नदियों में शामिल है जिनका अस्तित्व खतरे में है। इस नदी की सफाई के बारे में तो राज्य सरकार ने पिछले 43 साल से कुछ सोचा विचारा ही नहीं है। इसका नतीजा है कि अब नदी की दिशा ही बदल गई है। इस संबंध में पिछले 23 सालों में भानपुरा खंती को हटाने के लिए संघर्षरत भानपुरा खंती हटाओ अभियान संघर्ष समिति के संयोजक अशफाक अहमद बताते हैं, भानपुरा खंती पर बना विशालकाय कचरे के पहाड़ ने इसके पास से बहने वाली पात्रा नदी की दिशा ही बदल कर रख दी है। यह नदी कभी सीधी ही बहती थी, लेकिन अब यह सर्पिली घुमावदार आकार में बहने पर मजबूर है। यही नहीं, इस नदी में खंती के कचरे का रिसाव भी सीधे समा रहा है। अहमद कचरे के पहाड़ से सटी नदी की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि कचरे के पहाड़ ने नदी की धारा को लगभग 90 अंश तक मोड़ दिया है। आशंका है कि यह नदी आने वाले समय में 45 अंश तक भी मुड़ सकती है। भोपाल के भानपुरा गांव के निवासियों का कहना है कि भानपुरा खंती पर बना कचरे का पहाड़ न केवल इंसानों की जान ले रहा है, बल्कि अब इसने तो एक जीती जागती नदी को ही खत्म कर डाला है। इस कचरे के कारण नदी अब नाले में तब्दील हो चली है। यदि स्थानीय किसी बाहरी व्यक्ति को यह न बताए कि यह नदी है तो एक बारगी भोपाल आने वाला बाहरी इसे नाला ही समझता है। भानपुरा खंती के आस-पास रहने वाले हजारों ग्रामीण त्रस्त हैं। खंती के आस-पास कुल 13 गांव बसे हैं। 45 बरस पहले यह खेती की जमीन हुआ करती थी। इस खेती की जमीन की एक मालकिन सुंदर बाई ने बताया कि हमें क्या मालूम था कि हमारी खेती की जमीन (1974 में भोपाल नगर निगम का अधिग्रहण) इस कचरे के पहाड़ को बनाने के लिए ली जा रही है। भानपुरा खंती के पास से बहने वाली पात्रा नदी के आस-पास बसे अकेले तेरह गांव ही प्रभावित नहीं हैं। बल्कि इससे बड़ी संख्या में भोपाल के कई मोहल्ले भी प्रभावित हो रहे हैं। इस खंती में यूनियन कार्बाइड कांड से निकली जहरीली गैस से मरे जानवरों को भी गाड़ दिया गया था। उस समय कई इंसानी लाशों को भी यहीं दफनाया गया था। हालांकि प्रशासन का दावा था कि वे होशंगाबाद ले जाकर दफन कर रहे हैं। जानकारों के अनुसार पात्रा नदी के खत्म होने की कहानी आज से 45 साल पहले शुरू हो गई थी। जब भानपुरा गांव में 1974 में भोपाल के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त एम.एन. बुच ने गांव के ही किसानों की जमीन अधिग्रहण करके एक खंती खुदवाकर यहां कचरा डलवाना शुरू करवाया था। जिनकी जमीनें अधिग्रहण की गईं थीं, उनमें से कम-से-कम आधे दर्जन किसानों को अब तक अपनी जमीन का मुआवजा नहीं मिल पाया है। यह खंती जब खुदवाई गई थी तब तो इसका क्षेत्रफल बहुत छोटा था लेकिन अब यह 84 एकड़ तक फैल चुका है। भानपुरा खंती को हटाने के लिए अक्टूबर, 2013 में जनहित याचिका दायर करने वाले पर्यावरणविद सुरेश पांडे ने बताया, एनजीटी ने 2005 के बाद के पदस्थ सभी नौ नगर निगम आयुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी किए थे। साथ ही पांच-पांच करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाई थी। वह कहते हैं, यह हमारा दुर्भाग्य है कि इस खंती के आस-पास रहने वाली आबादी के 90 फीसदी लोग किसी-न-किसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हैं। लेकिन सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है। - विकास दुबे
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