02-Aug-2013 10:25 AM
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भाजपा संगठन के लिए चुनावी चुनौती का एक अलग ही रूप सामने आया है। मुख्यमंत्री तो डेढ़ करोड़ के रथ पर सवार होकर जनता का आशीर्वाद मांगने निकल पड़े हैं, लेकिन संगठन के सामने पिछले दिनों उपस्थित हो गए कुछ अप्रिय घटनाक्रम को संभालने की चुनौती है। राघवजी प्रकरण के अलावा भी मेनन की कथित सीडी ने भाजपा के पदाधिकारियों को कहीं न कहीं परेशान किया है। हालांकि प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर स्पष्ट कर चुके हैं कि मेनन की सीडी का प्रकरण पूरा फर्जी है और वे निर्दोष हैं। लेकिन इसने कहीं न कहीं मेनन के बढ़ते करियर को धक्का तो पहुंचाया ही है। जिस मेनन की संगठन में तूती बोलती थी, अब वे थोड़े दबे से नजर आ रहे हैं। इसका लाभ उन नेताओं को मिल सकता है जो मेनन की वजह से आगे नहीं आ पाए थे। इसका असर जिलास्तर पर नियुक्तियों में भी दिखाई दिया है जहां अब मंत्रियों की मनमानी चल रही है। अन्यथा पहले तो मेनन ही सर्वेसर्वा थे। लेकिन मेनन के कथित रूप से शक्तिहीन होने के बाद रामलाल की तरफ भाजपा संगठन देख रहा था पर आलम यह है कि रामलाल को भी विशेष तवज्जो नहीं मिल रही है। रामलाल जिलों में अपनी पसंद के जिलाध्यक्ष बिठाना चाहते हैं लेकिन कद्दावर मंत्रियों और सांसदों के कारण उनकी यह मंशा पूरी नहीं हो पा रही है।
आपसी खींचतान के चलते 14 जिलों में तो जिलाध्यक्षों की नियुक्ति ही नहीं हो पाई है और कई जिलों में जिलाध्यक्षों ने अभी तक तीन नामों का पैनल ही नहीं भेजा है। कुछ जिलों में संगठन मंत्री विरोध जता रहे हैं। राघवजी के जाने के बाद बहुत से पदाधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को तेज करने के लिए पैसों की मांग भी शुरू कर दी है। राघवजी के बारे में यह कहा जाता था कि वे बड़ी कंजूसी से पैसा खर्च करते थे इसी कारण खजाना भरा रहता था, लेकिन अब पदाधिकारियों ने चुनाव का हवाला देकर अपने-अपने क्षेत्र में कामों के लिए पैसा जारी करने की बात कही है। नरोत्तम मिश्रा तो दतिया में हवाई पट्टी के लिए पैसा पाने में कामयाब भी हो गए हैं। खासकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गांवों को सारी सुविधाएं देने के लिए जिन पायलट प्रोजेक्ट की बात पहले की जा रही थी अब उन पर तेजी से काम हो सकता है। क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त धनराशि है। शुरुआत में दो जिलों के 20 गांवों को मॉडल ग्राम बनाया जाएगा और बाद में सभी दूरस्थ गांवों में जनसुविधाएं दी जाएंगी। भाजपा संगठन में इस योजना को लेकर भारी उत्साह है। संघ ने इसमें विशेष रुचि दिखाई है। दूसरी तरफ विधानसभा सत्र की संभावना देखते हुए भाजपा में तैयारियां की जा रही हैं। संभव है कि सरकार को राज्यपाल के कथन के बाद सत्र बुलाना पड़े।
लेकिन अभी भी कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर भाजपा को अपने ही लोगों के प्रश्न का जवाब देना मुश्किल हो रहा है। अटल ज्योति अभियान पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है जिसका असर भी कहीं न कहीं संगठन पर देखा जा रहा है। हाल ही में एक कार्यकर्ता ने बिजली का प्रश्न उठाया तो उसे डपट दिया गया। विधायकों ने भी अपनी शिकायतें संगठन में दर्ज कराई हैं। कई विधायकों को शिकायत है कि उनके क्षेत्र के अधिकारी उनकी सुनते नहीं हैं। उधर खबर यह भी है कि एक मंत्री सहित कुछ विधायकों ने तो साफतौर पर कह दिया है कि वे अगली बार चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं हैं। इन्हीं कारणों से रामलाल को संगठन में कुछ नेताओं को नियंत्रित करने में परेशानी हो रही है।
घोषणाओं का क्या होगा: यद्यपि सरकार का खजाना भरा हुआ है, लेकिन शिवराज सिंह ने जिस तरह पिछले दिनों घोषणाएं की हैं उन घोषणाओं को लेकर विधानसभा में भी कांग्रेस हंगामा करने वाली थी, लेकिन सत्र की भ्रूण हत्या हो गई। फिर भी कहीं न कहीं घोषणाओं को लेकर संगठन में चिंता है। खजाना भरा होने के बावजूद आचार संहिता को लेकर नेताओं के चेहरों पर शंका स्पष्ट देखी जा सकती है। यदि सत्र बुलाया जाता है तो मुख्यमंत्री की घोषणाएं भी कहीं न कहीं संगठन के लिए चुनौती का काम करेंगी। इस बीच रामलाल ने प्रदेश में हो रहे विकास कार्यों को लेकर युवा मोर्चो अध्यक्षों से जानकारी मांगने का काम शुरू किया है, लेकिन उन्हें सही फीडबैक नहीं मिला है। रामलाल का कहना है कि वह कुछ पूछते हैं तो युवा असहज हो जाते हैं।
मोदी का असर नहीं
भाजपा संगठन पर मध्यप्रदेश में मोदी का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। केवल पोस्टरों से मोदी गायब हैं ऐसा नहीं है बल्कि चुनावी रणनीति में कहीं तो यह आभाष नहीं होता कि नरेंद्र मोदी का किसी प्रकार हस्तक्षेप है। चुनाव संचालन समिति के प्रमुख होने के नाते यह उम्मीद की जा रही थी कि मोदी विधानसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में भाजपा की रणनीति बनाएंगे, लेकिन मोदी ने उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में न तो अपने किसी विश्वसनीय को भेजा और न ही उन्होंने किसी प्रकार के हस्तक्षेप की कोशिश की। इसे देखकर लग रहा है कि विधानसभा के दौरान नरेंद्र मोदी की सभाएं मध्यप्रदेश में उतनी संख्या में नहीं होंगी और कुछ क्षेत्रों तक ही वे सीमित रहेंगे। भीतरी खबर यह भी है कि मोदी की मौजूदगी को सीमित रखा जाएगा। अगस्त माह के तीसरे सप्ताह से मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल दिखाई देने लगेगा।
भोपाल से बृजेश साहू