17-Apr-2019 09:42 AM
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मप्र में बाघों के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिए करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं, उसके बाद भी बाघ के शिकार किये जा रहे हैं। बीते एक साल में एक दो नहीं, कई बाघों के शव रातापानी (औबेदुल्लागंज वन मंडल) में मिले हैं, लेकिन वन विभाग अपनी नाकामी को छिपाते हुये बाघ के शिकार को बीमारी से मौत या फिर बाघ के उम्रदराज होने की बात कहकर जांच को ठंडे बस्ते में डाल देता है। अप्रैल माह में भी रातापानी सेंचुरी में एक बाघ के शिकार का मामला सामने आया है। शिकारी उसकी पूंछ और पंजे काटकर ले गए। इसी सेंचुरी में पिछले साल 5 दिसंबर को पानी के स्रोत के किनारे एक बाघ शव मिला था। इसके बाद एक चरवाहा उसके दोनों पंजे काटकर ले गया था। प्रदेश में बीते एक साल में 25 बाघों की मौत हो चुकी है जिनमें कई का शिकार हुआ है।
सवाल उठता है कि बाघों की सुरक्षा पर सरकार द्वारा हर साल करोड़ों रुपए क्यों खर्च किए जाते हैं? गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से मप्र बाघों की मौत गाह बन गया है। यहां पिछले दो सालों में जितनी तेजी से बाघों की संख्या बढ़ी है उतनी ही तेजी से उनकी मौत भी हो रही है। हैरानी की बात यह है कि राजधानी भोपाल के पास के जंगलों में भी बाघों या अन्य वन्यप्राणियों का शिकार धड़ल्ले से हो रहा है। जबकि प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में भी लगातार बाघों की मौत हो रही है। मप्र के पन्ना जिले में पन्ना टाइगर रिजर्व से तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति के स्थनांतरण के बाद बाघों की मॉनीटरिंग कम होने से मौत के आंकड़े बढऩे लगे। कभी यहां कुत्ते के काटने से बाघ की मौत का मामला सामने आया तो कभी बाघों के वर्चस्व की जंग में जान गंवाने का। बीते साल दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में टाइगर रिजर्व के कोनी बीट में तीन साल की युवा बाघिन पी-521 का शिकार कल्चर वायर का फंदा बनाकर किए जाने की घटना के बाद बाघों की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे। सुरक्षा कारणों के चलते ही मार्च 2018 में युवा बाघिन पी-213(33) को संजय धुबरी टाइगर रिजर्व भेजना पड़ा।
पन्ना टाइगर रिजर्व 576.903 वर्ग किमी. कोर जोन और 1021.97 वर्ग किमी. बफर जोन सहित कुल 1578.55 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैला है। पार्क क्षेत्र में शिकार की गतिविधियों के बढऩे और डकैतों की मूवमेंट के चलते इसे वर्ष 2008 में बाघ विहीन टाइगर रिजर्व होने का दंश भी झेलना पड़ा। वर्ष 2009 में यहां दो चरणों वाली बाघ पुनस्र्थापन योजना शुरू हुई। इस परियोजना के बाद अभी वर्ष 2018 में पूरी हुई कैमरा ट्रेप पद्धति से बाघों की गणना में कुल 26 बाघ रिकॉर्ड में दर्ज हुए हैं। पार्क से जुड़े लोगों के अनुसार यहां एक बाघ की मौत पागल कुत्ते के काटने से कैनाइन डिस्टेंपर वायरस के कारण हुई थी, तभी से पार्क के आसपास के गांव के कुत्ते-बिल्लियों का टीकाकरण किया जाने लगा है। परियोजना शुरू होने के बाद यहां आधा दर्जन बाघों के नेचुरल डेथ और एक शिकार का मामला सामने आया है। नवंबर 2017 में पार्क के अंदर बाघ टी-7 एवं टी-111 दोनों की आपसी भिड़ंत गगऊ रेंज अभ्यारण्य में हुई थी। जिसमें दोनों गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। अक्टूबर 2017 में पन्ना टाइगर रिजर्व के पन्ना रेंज अंतर्गत तालगांव सर्किल के पठार में बाघ टी-3 बाघ को घायल अवस्था में सैलानियों ने देखा था, जिसकी बाद में मौत हो गई थी।
पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढऩे से सीधी, चुरहट, सतना, रीवा, बाधवगढ़ नेशनल पार्क तक जाने लगे हैं। यहां के बाघ पी-212 ने करीब तीन साल पूर्व संजय टाइगर रिजर्व सीधी में बाघों के कुनबे में वृद्धि की। जिसकी बाद में वहीं झारखंड के एक युवा बाघ से हुई टेरिटोरियल फाइट में मौत हो गई थी। पन्ना टाइगर रिजर्व की एक बाघिन चित्रकूट के आसपास के जंगलों में विचरण कर रही है। एक बाघ की सतना जिले में ही बीते साल ट्रेन से कटने से मौत हो गई थी। करीब दो साल पूर्व पन्ना टाइगर रिजर्व की युवा बाघिन पी-213-23 को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व होशंगाबाद शिफ्ट कर दिया गया है। बाघ पुनस्र्थापन योजना के तहत प्रदेश के बांधवगढ़, कान्हा और पेंच टाइगर रिजर्व से लाए गए बाघ और बाघिनों के संयोग से पिछले सान यहां 50 से भी अधिक शावकों का जन्म हुआ। इनमें से कुछ की असमय मौत हो गई।
देश में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मप्र में
बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश लगातार दूसरे साल भी देश में पहले स्थान पर है। जनवरी 2018 से अब तक प्रदेश में 25 बाघों की मौत हो चुकी है। पिछले साल यह आंकड़ा 28 था, जो देश में सर्वाधिक था। वहीं बाघों की संख्या के मामले में देश में दूसरा स्थान रखने वाली उत्तराखंड सरकार ने स्थिति में सुधार किया है। उत्तराखंड में पिछली बार सालभर में 15 बाघों की मौत हुई थी, जबकि इस बार यह संख्या आठ है। देश में जनवरी 2018 से अब तक 93 बाघों की मौत हो चुकी है। पिछले साल यह आंकड़ा 105 था। प्रदेश के आला वन अफसर दिसंबर 2017 से अप्रैल 2018 तक चले राष्ट्रीय बाघ आंकलन के संभावित परिणामों में उत्साहित हैं। उनका मानना है कि इस बार प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिल सकता है, लेकिन बाघों की मौत के मामलों को रोकने में नाकाम रहे हैं। तमाम कोशिशों के बाद भी इस साल 25 बाघों की मौत हो चुकी है। इनमें से ज्यादातर बाघों की मौत संरक्षित क्षेत्रों (नेशनल पार्क और अभ्यारण्यों) में हुई है। इनमें सात शिकार के मामले भी हैं।
-कुमार विनोद