17-Apr-2019 09:53 AM
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मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार का अब तक का कार्यकाल संतोषप्रद रहा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ विभिन्न गुटों से मंत्री बने नेताओं और विधायकों को एकजुट रखने में कामयाब हुए हैं। हालांकि उनकी पार्टी के कुछ विधायक और निर्दलीय तथा सपा, बसपा के विधायकों की कार्यप्रणाली उनके लिए चिंता का विषय बनी हुई है। इसी को देखते हुए भाजपाई कांग्रेस सरकार के भविष्य पर सवाल उठाने लगे हैं। यही नहीं कई भाजपा नेताओं ने तो दावा किया है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के साथ ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार का पटाक्षेप हो जाएगा।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एकजुट कर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में कमलनाथ सफल तो हो गए, लेकिन अब उनके सामने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है। इसके लिए काफी मंथन के बाद प्रत्याशियों की घोषणा की गई है। लेकिन जिस तरह भाजपाई दम भर रहे हैं उससे यह सवाल उठता है कि क्या मप्र में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के बाद भी सरकार पर खतरा बरकरार रहेगा। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कोई भी पार्टी 116 का जादुई आंकड़ा नहीं पा सकी थी। कांग्रेस को सबसे अधिक 114 सीटें मिली थी और उसने निर्दलीय, बसपा, सपा के सहयोग से सरकार बना ली है। जिसे भाजपाई बैसाखी वाली सरकार बता रहे हैं। हद तो यह हो गई है कि लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के बाद से ही भाजपा नेताओं ने कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। इस कड़ी में पार्टी के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा है कि प्रदेश में कमलनाथ सरकार कुछ ही महीनों की मेहमान है।
भाजपा की ओर से सबसे बड़े नेता के इस बयान के बाद सूबे की सियासत गर्मा गई है। इससे पहले ठीक लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती ने ट्वीट करते हुए लिखा कि चलो किसान भाइयों करो मप्र का मुख्यमंत्री बदलने की तैयारी क्योंकि 2 लाख का कर्जा तो माफ हुआ नहीं है, लोकसभा चुनाव के बाद मप्र में होगा भाजपा का मुख्यमंत्री। मध्यप्रदेश में दिसंबर में कमलनाथ सरकार बनने के बाद ही भाजपा लगातार कांग्रेस सरकार के भविष्य को लेकर सवाल उठा रही है। इसके पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी सार्वजनिक कार्यक्रम में कह चुके हैं कि जिस दिन ऊपर से इशारा मिला कमलनाथ सरकार को गिरा देंगे। तो दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की सरकार की स्थिरता पर गाहे-बगाहे सवाल उठाते रहे हैं।
कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर नेताओं के लगातार बयान के बाद ये सवाल उठना लाजिमी है कि भाजपा के दावे में कोई सच्चाई है या भाजपा लोकसभा चुनाव के दौरान एक शिगूफा छोड़ रही है। अगर आंकड़ों की नजर से देखा जाए तो मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीटों का अंतर अधिक नहीं है, ऐसे में अगर कांग्रेस को मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बनाए रखनी है तो उसको लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना होगा। अगर लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सीटों की संख्या दो अंकों यानी करीब आधी से अधिक पहुंचती है तो कांग्रेस के लिए बड़ी राहत की बात होगी और कांग्रेस सरकार को मजबूती मिलेगी, वहीं केंद्र में अगर एक बार फिर चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आए तो कांग्रेस सरकार के लिए जरूर एक खतरे की घंटी हो सकती है। अब सबको 23 मई का इंतजार है जिस दिन लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आएंगे।
भाजपा की कांग्रेस के खिलाफ मनोवैज्ञानिक लड़ाई
सवाल ये भी उठ रहा कि भाजपा लोकसभा चुनाव के समय इस मुद्दे को क्यों उठा रही है? इस पर सियासत के जानकर इसे भाजपा की कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति बताते हैं। दरअसल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं का जो मनोबल कम हुआ है, उसको बढ़ाने के लिए नेता इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। भाजपा जानती है कि अगर बूथ कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में सक्रिय नहीं रहा तो चुनाव परिणाम उसकी उम्मीद के विपरीत भी जा सकते हैं। इसलिए पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसे बयान दे रहे हंै। अगर बात मध्यप्रदेश में सीटों के सियासी समीकरण की करें तो लोकसभा चुनाव को लेकर इस वक्त जो सियासी समीकरण बनते हुए दिखाई दे रहे हैं उसे किसी भी तरह कांग्रेस के अनुकूल नहीं कहा जा सकता।
- भोपाल से अरविंद नारद