अलग राज्य मुद्दा नहीं
17-Apr-2019 09:25 AM 1234778
तमाम कोशिशों के बाद भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बंटे बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग दशकों से राजनीतिक दलों के एजेंडे में जगह नहीं बना पाई। इतना ही नहीं, कोई दल इसे अपना चुनावी मुद्दा भी नहीं बनाना चाहते हैं। हालांकि, देश में बुंदेलखंड से कम जनसंख्या और क्षेत्रफल वाले 10 राज्य वजूद में हैं। उत्तर प्रदेश के बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह और दतिया जिले में विभाजित बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग दशकों साल पुरानी है। इसे अब तक किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने इसे अपने एजेंडे में शामिल नहीं किया और न ही इसे चुनावी मुद्दा बनाने को तैयार हैं। गौरतलब है कि 1955 में गठित प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग ने बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा देने की सिफारिश की थी। बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शंकरलाल (झांसी निवासी) ने पहली बार अलग राज्य की मांग को लेकर 1989 में आंदोलन शुरू किया था। उस वक्त से लगातार बांदा, झांसी, महोबा और हमीरपुर के समाजसेवी इसके समर्थन में आंदोलन कर रहे हैं। बुंदेलखंड कांग्रेस के संस्थापक और फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला ने बुंदेलखंड में आने वाले यूपी और एमपी के सभी 13 जिलों में पद यात्रा तक की थी और बाद में वह इसी मांग की शर्त पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल भी हुए थे। इन सबके इतर सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि सभी राजनीतिक दलों के नेता मौखिक तौर पर बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाए जाने के पक्षधर हैं, लेकिन दल के भीतर दबाव बनाने से कतरा रहे हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में झांसी से बीजेपी उम्मीदवार उमा भारती ने जीतने और केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने पर अलग राज्य के गठन का वादा किया था। वह जीतीं और केंद्र में मंत्री भी हैं, लेकिन पूरे पांच साल बुंदेलखंड बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं की। इस बार वह चुनाव न लडऩे का ऐलान कर चुकी हैं। अपनी सरकार में उत्तर प्रदेश की विधानसभा से प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजने वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की मुखिया मायावती भी अपने एजेंडे में इसे नहीं शामिल कर रही हैं। बुंदेलखंड में बीएसपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री गयाचरण दिनकर कहते हैं, बीएसपी अलग राज्य के गठन के पक्ष में है, केंद्र की बीजेपी सरकार को विधानसभा के प्रेषित प्रस्ताव पर अमल कर अलग राज्य की घोषणा करनी चाहिए।Ó पार्टी के घोषणा पत्र में इसे न शामिल किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि लोकसभा का चुनाव बीएसपी और एसपी मिलकर लड़ रहे हैं, दोनों दल मिलकर ही घोषणा पत्र तैयार करेंगे। ऐसे में यह कोई जरूरी नहीं कि एसपी अलग राज्य की पक्षधर रहे। केंद्र में कांग्रेस की अगुआई वाली डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में राज्यमंत्री रहे प्रदीप जैन आदित्य ने गत दिनों कहा, कांग्रेस ने भले ही अपने एजेंडे में बुंदेलखंड राज्य के गठन की बात न शामिल की हो, लेकिन अगर केंद्र में अगली सरकार कांग्रेस की अगुआई में बनती है तो अबकी बार बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित कराने की पहल जरूर की जाएगी।Ó राजनीतिक विश्लेषक व अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान कहते हैं कि देश में दस ऐसे राज्य हैं जिनका क्षेत्रफल बुंदेलखंड से बहुत कम है। इतना ही नहीं, इन राज्यों की आबादी भी बुंदेलखंड की आबादी से बेहद कम है। वह बताते हैं कि जनसंख्या और क्षेत्रफल का आधार लेकर बुंदेलखंड राज्य की मांग को नकारा नहीं जा सकता। 13 जिलों वाले बुंदेलखंड का क्षेत्रफल करीब 70 हजार वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या दो करोड़ के आस-पास है, जो जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और गोवा जैसे राज्यों से अधिक है। लेकिन स्थानीय नेताओं की राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण बुंदेलखंड अलग राज्य नहीं बन पाया है। बुंदेलखंड प्राथमिकता में नहीं बुंदेलखंड कभी भी सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रहा है। लगभग 70 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले, दो करोड़ आबादी वाले इस क्षेत्र का दायरा उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी तथा ललितपुर जिले एवं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, पन्ना, सागर और दतिया तक विस्तृत है। प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न होने के बाद भी यहां के हालत महाराष्ट्र के विदर्भ से भी भयावह हैं। अक्सर सूखाग्रस्त रहने वाले इस क्षेत्र में शुरू से ही किसानों की आत्महत्या एक बड़ा मुद्दा रहा है। करीब दो दशक से बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित करने की मांग की जा रही है। उत्तर प्रदेश के दायरे में आने वाले बुंदेलखण्ड के सात जिलों में चार लोकसभा सीटें और 19 विधानसभा सीटें हैं। प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी मौसम में तो बुंदेलखण्ड को अलग राज्य बनाने की मांग को प्रासंगिक बताते हैं, लेकिन अपने घोषणा पत्र में इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। -सिद्धार्थ पाण्डे
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