बस्तियों में बाघ क्यों?
21-Feb-2019 06:18 AM 1234825
उमरिया के मानपुर जनपद मुख्यालय से लगे हुए बांधवगढ़ नेशनल पार्क के जंगलों के नजदीक बसे हुए करीब आधा सैकड़ा ग्राम के किसान व आमजन वन विभाग के उदासीनता रवैया के कारण हर दम जान जाने की दहशत में जीने को मजबूर है। यहां आये दिन किसी भी समय किसानों के खेत खलिहान सहित निवासरत घरों के आस पास बाघ की मौजूदगी देख किसान व किसान का परिवार हमेशा दहशत में रहता है तो हर दिन सोने से पहले व सुबह जागने के बाद पहले भगवान से बाघ द्वारा किसी प्रकार की अनहोनी न होने के लिए प्रार्थना करने के बाद ही घर से निकलते हैं। ग्रामीण सवाल पूछ रहे हैं कि फसल का समय है, खेतों पर कैसे जाएं? दरअसल, यह समस्या केवल एक गांव की नहीं है बल्कि प्रदेश में जितने भी नेशनल पार्क हैं, उनके आस पास के गांवों के लोगों की यही समस्याएं हैं। जानकारों का कहना है कि वन क्षेत्र में लगातार हो रही घुसपैठ और कम हो रहे वन क्षेत्र के कारण वन्य प्राणी बस्तियों में पहुंच रहे हैं। बाघ अभयारण्य की सीमा पार करते हैं तो उनकी क्या गलती? फिर जिस तरह अभयारण्यों के आस-पास एडवेंचर के नाम पर अवैध होटलों का जो व्यवसाय फल-फूल रहा है, वह भी बाघों के मानव बस्तियों तक पहुंचने का बड़ा कारण है। पर्यटकों से बड़ी रकम वसूल कर बाघ दिखाने की होड़ अब बाघ और मानव दोनों के लिए खतरा बन रही है। अभयारण्य की सीमा के नजदीक होटलों पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन किसी भी अभयारण्य सीमा के निकट रसूखदारों के होटल-रिसॉर्ट धड़ल्ले से चल रहे हैं। एक बाघ के पीछे दस-दस जिप्सी कैंटर दौड़ाए जाते हैं। क्या वन्यजीव इससे विचलित नहीं होते? उग्रता उनके स्वभाव में नहीं आती? फिर अभयारण्यों के बीच स्थित गांवों का विस्थापन अभी तक नहीं हो सका है। हालत यह हो गई है कि बाघ-बघेरे गांवों में ही नहीं, शहरों के बीच कलेक्टरेट तक पहुंचने लग गए हैं। गलती सरासर सरकार और वन प्रशासन की है। नई वन नीति बनानी होगी। संख्या के हिसाब से बाघ-बघेरों के लिए नए अभयारण्य विकसित किए जाएं। टेरिटरी में पडऩे वाले गांवों का विस्थापन हो। पर्यटन जरूरी है, लेकिन इसके लिए जंगल का कानून नहीं तोड़ा जाए। जानवर मानव से डरता है, लेकिन उसके क्षेत्र पर अतिक्रमण होंगे तो वह क्या करेगा? अभी हाल ही में कुछ दिनों पहले ही मानपुर नगर से कुछ ही किलोमीटर दूर नोगमा ग्राम पंचायत ग्राम के बीचों-बीच किसान ने अपने खेत में पानी लगाते वक्त बाघ को देखा था जहां की सूचना देने के बाद भी वन विभाग समय पर नहीं पहुंचा और टाइगर द्वारा एक युवक को पंजा मार कर घायल कर दिया ग्रामीणों ने अपनी जान जोखिम में डाल युवक को बाघ के चंगुल से आजाद करा कर उसकी जान बचाई और घटना की जानकारी लगते ही वन अमला मोके पर पहुंचा और माहौल देखते हुए टाइगर को जंगल की तरफ खदेडऩे के लिए योजना बनाई लेकिन नाकाम रहे और वन विभाग के हाथ पैर फूल उठे मजबूरन उन्हें रेस्क्यू हेतु बांधवगढ पार्क से हाथियों को बुलाया गया नोगमा ग्राम के ग्रामीणों ने जानकारी देते हुए बताया कि बाघ को खदेडऩे के लिए आये हुए हाथी देर रात पहुंचे और रात होते ही मोके से कितनी समय बाघ निकल भागा यह वन विभाग को भी जानकारी नहीं मिल पाई। देश में टाइगर कंजरवेशन को लेकर कई मुहिम चलाई जा रही हैं। टाइगर कंजरवेशन सरकार के एजेंडा में भी काफी ऊपर है। लेकिन फिर भी मौजूदा आंकड़ों को देखकर लगता नहीं कि बाघ को बचाने का प्रयास सही तरीके से हो रहा है। हाल ही में भारत और पड़ोसी देश नेपाल, भूटान और बांग्लादेश ने टाइगर की संख्या का पता लगाने के लिए ज्वाइंट सेंसस का भी फैसला किया है। लेकिन इन सारी कवायदों के बावजूद देश के राष्ट्रीय पशु को बचाने में सभी कोशिशें नाकाफी ही नजर आ रही हैं। आज देश में बाघों को बचाने के लिए तकरीबन 50 टाइगर रिजव्र्स हैं। खास बात ये है कि बाघों की असुरक्षा के मामले इन रिजव्र्स के आसपास ही ज्यादा बढ़ रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 54 टाइगर्स की मौत रिजर्व के बाहर हुई है जो कुल मौतों का 47 फीसदी है। बात एक बार फिर वहीं आकर अटक गई है कि क्या रिजर्व के बाहर का टाइगर सरकार और अधिकारियों के लिए टाइगर नहीं है। बार-बार ये सवाल खड़ा हो रहा है कि इनकी सुरक्षा के लिए क्या किया जा रहा है? कॉरिडोर्स कैसे होंगे बेहतर आज वाइल्ड लाइफ की राह में सबसे बड़ा कांटा सिकुड़ते कॉरिडोर हैं। कॉरिडोर न होने की वजह से जंगली जानवर इंसानी बस्तियों में आ जाते हैं। एनटीसीए की ओर से कहा गया है कि हम कॉरिडोर्स की समस्या को लेकर गंभीर हैं। कॉरिडोर को लेकर कुछ नया नहीं है। लेकिन वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एनटीसीए की मदद से कॉरिडोर कनेक्टिंग टाइगर्स प्लान तैयार किया था। हाल ही में एनटीसीए की उच्च स्तरीय बैठक हुई है। जिसमें बाघों के जनजीवन क्षेत्र में दखल को लेकर चर्चा भी हुई है। माना जा रहा है कि रिहाइशी इलाकों में बाघों को रोकने के लिए एनटीसीए एक नीति तैयार कर रहा है, जिसे आने वाले छह महीनों में अमल में लाया जा सकता है। वाइल्ड लाइफ कंजरवेश्निस्ट एजी अंसारी ने बताया कि हाल फिलहाल में रिजर्व से बाहर के बाघों को बचाने के लिए कुछ खास नहीं हुआ है। लेकिन कंजरेश्निस्ट एनटीसीए से लगातार बजट की मांग कर रहे हैं। -सिद्धार्थ पाण्डे
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