21-Feb-2019 06:09 AM
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जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत वज्रपात सरीखी है। मोदी सरकार के 5 साल में देश में ये 12वां बड़ा आतंकी हमला है। हमला इतना भयानक था कि कई गाडिय़ों के परखच्चे उड़ गए। सीआरपीएफ का ये काफिला जम्मू से श्रीनगर की ओर जा रहा था और इसमें 78 वाहनों में 2,547 जवान बैठे थे। भीषण आतंकी हमले के जरिए आतंकियों ने देश के मान-सम्मान को सीधी चुनौती दी है। इस वीभत्स घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी कश्मीर में लगातार भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। यही नहीं यहां के युवाओं को भी भटका रहे हैं। ऐसे ही एक भटके युवक ने इस घटना को अंजाम दिया। जम्मू-कश्मीर में सेना अथवा अद्र्धसैनिक बलों ने इसके पहले इतनी अधिक क्षति का सामना कभी नहीं किया। इस हमले के बाद देश के नेतृत्व के साथ आम लोगों का रोष-आक्रोश से भर उठना स्वाभाविक है। जवानों का यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। बेशक शत्रु से बदला लिया जाना नितांत अनिवार्य है, लेकिन रोष-आक्रोश के इन क्षणों में इस पर भी विचार करना होगा कि आखिर आतंकियों के दुस्साहस का निर्णायक तरीके से दमन कैसे किया जाए? इस पर गंभीरता से विचार इसलिए होना चाहिए, क्योंकि उरी में आतंकी हमले के बाद सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक के वैसे नतीजे नहीं मिले, जैसे अपेक्षित थे। वास्तव में जैश और लश्कर सरीखे आतंकी संगठनों को समर्थन-संरक्षण देने वाला पाकिस्तान जब तक भारत को नुकसान पहुंचाने की कीमत नहीं चुकाता, तब तक उसकी भारत-विरोधी हरकतें बंद होने वाली नहीं हैं। सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाने का काम चाहे जिस आतंकी संगठन ने किया हो, इससे इनकार नहीं कर सकते कि उसे सीमापार से शह मिलने के साथ ही सीमा के अंदर भी किसी तरह की मदद मिली होगी। यह ठीक नहीं कि तमाम सक्रियता और सजगता के बावजूद न तो सीमापार आतंकियों को पालने-पोसने वालों को सबक सिखाया जा रहा है और न ही सीमा के अंदर के ऐसे ही तत्वों को।
इतिहास के पन्नों को देखें तो अपनी रक्षात्मक नीति के कारण भारत ने जीत से ज्यादा हार का सामना किया है। लिहाजा 2016 में पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारत ने आतंकी शिविरों पर जो हमला बोला था, उसे पाक की जमीन पर जारी रखना होगा। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमने उसे दोहराने की बजाय उसका उत्सव मनाने में ज्यादा समय गुजारा। नतीजतन पाक प्रायोजित हमलों का सिलसिला टूट नहीं रहा है। हालिया आत्मघाती हमला एक कार में करीब 200 किलो विस्फोटक लेकर जवानों से भरी बस से टकराकर किया गया। हमले के बाद वहां छिपे आतंकियों ने सुरक्षाबलों के काफिले पर हमला भी किया। हमले के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल सुरक्षा समिति की बैठक में पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से दो अहम फैसले लिए गए हैं। पाक को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेना और सेना को पूर्ण स्वतंत्रता देना। इससे यह उम्मीद जगी है कि मोदी सरकार पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करेगी।
निर्णायक लड़ाई का समय
समय आ गया है इस लड़ाई को निर्णायक लड़ाई में बदला जाए। यह लड़ाई पाकिस्तान की जमीन पर होनी चाहिए। अब तक अपनी जमीन पर लड़ाई लड़ते हुए हम 45,000 से भी ज्यादा भारतीयों के प्राण गंवा चुके हैं और हमारे ही युवा आतंकी पाठशालाओं में प्रशिक्षित होकर बड़ी चुनौती बन गए हैं। दुर्भाग्य यह कि जो अलगाववादी आतंकियों को शह देते हैं, उनकी सुरक्षा में भी सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लगी है। अलगाववादियों के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के सबूत मिलने के बावजूद हमने उन्हें नजरबंद तो किया, लेकिन कड़ी कानूनी कार्रवाई से वे अब तक बचे हुए हैं? नतीजतन उनके हौसले बुलंद हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक फलक पर भले ही कूटनीति के रंग दिखाने में सफल रहे हों, पर देश की आंतरिक स्थिति को सुधारने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से उनकी रणनीति नाकाम ही रही है। शोपियां में सेना की पत्थरबाजों से रक्षा में चलाई गोली के बदले मेजर आदित्य कुमार पर एफआइआर दर्ज होना और उनके परिजनों द्वारा अदालत के चक्कर काटना, इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के विरुद्ध अभी तक हम कोई ठोस नीति नहीं बना पाए हैं। करीब 1,000 पत्थरबाजों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की कार्रवाइयों ने सेना का मनोबल गिराने का काम किया है। ये दोनों कार्रवाइयां इसलिए हैरतअंगेज थीं, क्योंकि जिस पीडीपी की मुख्यमंत्री रहीं महबूबा मुफ्ती ने इसे अंजाम दिया था, उस सरकार में भाजपा की भी भागीदारी थी।
लंबी होती जा रही है हमलों की सूची
सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमलों की सूची लंबी होती जा रही है। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह शांति कायम रखने और निर्धारित शर्तों को मानने के लिए गंभीर नहीं हैं और हम हैं कि मुंहतोड़ जवाब देने की बजाए मुंह ताक रहे हैं? दुर्भाग्यपूर्ण यह भी कि भारत इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का साहस नहीं दिखा पाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 56 इंची सीना तानकर हुंकारें तो खूब भरीं, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं। मोदी ने सिंधु जल संधि पर विराम लगाने की पहल की थी, लेकिन कूटनीति के स्तर पर कोई अमल नहीं किया। यदि सिंधु नदी से पाक को दिया जाने वाला पानी रोक दिया जाए तो पाक में पेयजल संकट पैदा होगा। लेकिन भारत यह कूटनीतिक जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है?
दहशतगर्दी का दायरा
कश्मीर में आतंक की कहानी जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंटइ (जेकेएलएफ) बनने से शुरू होती है। अमानुल्लाह खान ने 1977 में इंग्लैंड में इसकी स्थापना की। मकबूल बट भी इससे जुड़ा। बट ने 1971 में इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक किया। भारत के दबाव में पाकिस्तान ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन दो साल बाद छोड़ दिया। फिर वह कश्मीर आया और श्रीनगर में पुलिस के हत्थे चढ़ गया। उसे रिहा कराने के लिए जेकेएलएफ के आतंकियों ने बर्मिंघम में भारतीय राजनयिक रविंद्र महात्रे को अगवा कर लिया। मांग नहींं मानी गई तो महात्रे को मार दिया। इधर, भारत में 11 फरवरी 1984 को बट को फांसी दे दी गई। उसके बाद वह आतंकियों का पोस्टर बॉय बन गया। यहीं से कश्मीर में आतंक का दौर शुरू हुआ। बट के नाम पर कई कश्मीरी युवा आतंक की राह पर निकल गए।
गौरतलब है कि जब घाटी में बर्फबारी तेज होती है, आतंकी संगठन सक्रिय हो उठते हैं। इस दौरान अक्सर घुसपैठ बढ़ जाती है। इस बार भी उन्होंने हमले तेज कर दिए हैं। मगर इस बार उनकी हताशा साफ नजर आ रही है। दरअसल, पिछले कुछ समय से जिस तरह सुरक्षाबलों ने आतंकी संगठनों पर नकेल कसनी शुरू की है, उससे उनका दायरा सिकुडऩा शुरू हो गया है। पिछले महीने बारामूला को आतंकवाद मुक्त जिला घोषित किया जा चुका है। सघन तलाशी अभियान और सीमा पार से मिलने वाले साजो-सामान और वित्तीय मदद पर कड़ी नजर रखी जाने की वजह से उनकी ताकत काफी कम हो गई है। इसी तरह स्थानीय लोगों से उन्हें सहयोग नहीं मिल पा रहा, जिसकी खीझ उनमें साफ दिखने लगी है।
लंबी तैयारी के साथ साजिश को अंजाम
पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला यह जाहिर करता है कि आतंकवादियों ने काफी सोच-समझ कर और लंबी तैयारी के साथ अपनी साजिश को अंजाम दिया। यों सेना का काफिला रोज निकलता है, पर इस तरह हमला करने में वे पहली बार सफल हुए हैं। इस बारे में न तो खुफिया एजेंसियों को कोई भनक थी और न काफिला निकलने से पहले रास्ते पर जैसे सुरक्षा इंतजाम होने चाहिए थे, वे हुए। आतंकवादियों को समय और काफिले की प्रकृति वगैरह के बारे में पहले से जानकारी थी, इसलिए उन्होंने वाहन में विस्फोटक रख कर सड़क के किनारे खड़ा कर दिया। लिहाजा इस मामले में अधिक सावधानी बरतनी होगी। आमतौर पर जब सेना का काफिला गुजरता है, तो सामान्य गाडिय़ों को किनारे रोक दिया जाता है, उन पर नजर रखने के लिए सुरक्षाकर्मी होते हैं, पर पुलवामा में उनसे चूक हुई, जिससे आतंकी गोलीबारी करने की हिम्मत भी जुटा पाए। इससे आतंकवादियों का मनोबल बढ़ सकता है, इसलिए सुरक्षाबलों को उन पर नकेल कसने के लिए अपनी तैयारी में रह गई कमियों को दूर करने का प्रयास करना होगा।
क्यों नाकाम हो रही हैं
खुफिया एजेंसियां
पुलवामा हमले के बाद देश की इंटेलीजेंस एजेंसियों पर सवाल उठने लगे हैं। आखिर हम कहां चूक रहे हैं, क्यों चूक रहे हैं? आतंकी 350 किलो विस्फोटक लेकर सीआरपीएफ की गाडिय़ों के साथ चल रहा था और हमारी खुफिया एजेंसियां सो रही थीं? पुलिस चेकपोस्ट पर गाडिय़ों की जांच क्यों नहीं हो रही थी? राज्य की पुलिस क्या कर रही थी? आतंकी बेखौफ 350 किलो विस्फोटक लेकर सीआरपीएफ बस के साथ चल रहा था और किसी को इस बात की भनक तक नहीं थी? ये चिंता और समीक्षा का विषय है। सर्जिकल स्ट्राइक का इतना शोर मचाने वाली सरकार के काम पर सवालिया निशान लगाता है ये हमला। पुलवामा हमले के लिए जैश पिछले एक साल से तैयारी कर रहा था। यहां तक कि जैश-ए-मोहम्मद ने प्राइवेट ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो भी जारी किया था, जिसमें आतंकी हमले की संभावना जताई गई थी। इसमें सुरक्षा बलों पर हमले की चेतावनी दी गई थी। फिर भी हमारी खुफिया एजेंसियां इस हमले को रोक पाने में नाकाम हुईं। शर्मनाक!
कश्मीर में हमले की चेतावनी देता वीडियो जिस ट्विटर अकाउंट से अपलोड किया गया था, वो 33 सेकेंड का है, जिसमें सोमालिया का एक आतंकी ग्रुप बिल्कुल इसी अंदाज में सेना पर हमला करता नजर आ रहा है, जैसा कि पुलवामा में किया गया। इस ट्विटर हैंडल का नाम है एक्सवीएक्स_जेट, जिसके आखिर में धमकी भरे अंदाज में बाकायदा कश्मीर का नाम लेते हुए कहा जा रहा है कि इंशाअल्लाह, यही कश्मीर में होगा। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी माना है कि कहीं न कहीं सुरक्षा में बड़ी चूक हुई है। खासकर इस मामले में कि एक स्कॉर्पियो में बारूद भरा था और उसे पकड़ा नहीं जा सका।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में आतंक की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी। 1990 से लेकर अब तक राज्य में आतंकी हमलों में 5,777 से ज्यादा जवान शहीद हो चुके हैं। सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 21,562 आतंकी मारे गए हैं। इसके अलावा आतंकी हमलों में 16,757 नागरिकों की जानें जा चुकी हैं। वहीं, खुफिया एजेंसियों ने पहले ही संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु और मकबूल भट की बरसी (9 फरवरी) को लेकर अलर्ट जारी किया था। साथ ही कहा था कि आतंकी काफिले पर आईईडी ब्लास्ट कर सकते हैं। बावजूद इसके आतंकी को पहचानने और विस्फोटक से भरी गाड़ी को रोक पाने में हम नाकाम रहे, ये भारी चिंता की बात है। कश्मीर में 90 के दशक में आईईडी हमले सबसे ज्यादा होते थे। एक बार फिर वह दौर लौटा है।
कूटनीतिक स्तर पर लडऩी होगी लड़ाई
आतंकवादी हमलों के पीछे एक विचारधारा है। हाल में कई आतंकवादियों का सोशल मीडिया पर बयान आया है कि वो कश्मीर को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहते हैं। पाकिस्तान की सेना और आइएसआइ इसका पोषण करती है। यह भारत केंद्रित आतंकवाद का मामला है। किंतु विश्व स्तर पर जो आतंकवाद है उसको खत्म किए बगैर अंतिम लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री ने अपने बयान में फिर एक बार विश्वशक्ति को साथ आने की अपील की है। यह अपील उन्होंने पिछले चार सालों में हर वैश्विक मंच पर की है। यह ऐसा पहलू है जिसका ध्यान हमें हर कार्रवाई के संदर्भ में रखना होगा।