17-Apr-2019 09:35 AM
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राजनीति हो या कोई अन्य क्षेत्र, समय का बड़ा महत्व होता है। समय पर चला गया एक दांव आपकी साख बना देता है और उसमें हुई देरी साख बिगाड़ देती है। मप्र में मुख्यमंत्री कमलनाथ के विशेष कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी (ओएसडी) प्रवीण कक्कड़, पूर्व सलाहकार राजेंद्र मिगलानी, उनके बहनोई की कंपनी मोजर बेयर से जुड़े अधिकारी, भांजे रतुल पुरी, प्रवीण कक्कड के करीबी अश्विनी शर्मा आदि के यहां पड़ा आयकर छापा और अब शिवराज सिंह चौहान शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ एफआईआर और गिरफ्तारी इसका एक उदाहरण है। विधानसभा में मिली हार के बाद लोकसभा चुनाव में भी कमजोर पड़ती भाजपा की साख और कमजोर पड़ती इससे पहले ही मुख्यमंत्री के करीबियों के यहां पड़े आयकर छापे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस की लड़ाई के वादे पर पानी फेर दिया। हालांकि मुख्यमंत्री के करीबियों के यहां न तो रकम मिली और न ही ऐसे दस्तावेज जिससे प्रदेश सरकार की साख पर सवाल उठते। लेकिन मुख्यमंत्री के करीबियों के करीबी अश्विनी शर्मा के यहां मिली 14.6 करोड़ की नगद राशि, 281 करोड़ का सस्पेंस लेनदेन, महंगी देशी-विदेशी कारें और अय्याशी के संसाधनों से यह बात हो रही है कि दाल में कुछ तो काला है।
बदले की भावना से काम?
आयकर छापे के बाद मप्र सरकार अब जिस तरह भाजपा शासन में हुए घोटालों की फाइलें खुलवा कर जांच करवा रही है और ई-टेंडरिंग घोटाले तथा माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हुए भर्ती घोटाले में एफआईआर दर्ज करवाकर कार्रवाई कर रही है उससे जनता में यहीं संदेश जा रहा है कि सरकार बदले की भावना से काम कर रही है। गौरतलब है कि बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में ईओडब्ल्यू ने ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड के दफ्तर पर छापा मारकर दस्तावेज जब्त किए हैं। कंपनी के तीन अधिकारी विनय चौधरी, वरुण चतुर्वेदी एवं सुमित गोलवलकर को गिरफ्तार किया गया है। ई-टेंडर प्रक्रिया में ऑस्मो डिजिटल सिग्नेचर बनाने का काम कर रही थी। करीब तीन हजार करोड़ रुपए के घोटाले में सात अन्य कंपनियों की भी छानबीन चल रही है। जांच एजेंसी ने 2016 के बाद वाले ई-टेंडरों की पड़ताल शुरू की है। मामले में संबंधित विभागों के आला अधिकारी और मंत्रियों को भी जांच के दायरे में रखने की तैयारी की गई है।
वहीं ईओडब्ल्यू ने माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों के मामले में पूर्व कुलपति कुठियाला समेत 20 अन्य प्रोफेसर के खिलाफ आर्थिक अनियमितता का आरोपी मानते हुए एफआईआर दर्ज की थी। इसमें पूर्व कुलपति के विश्वविद्यालय के खर्चे पर पत्नी को लंदन घुमाने और इलाज के लिए विश्वविद्यालय से खर्च कराना शामिल है। ईओडब्ल्यू की एफआईआर में जिक्र किया है कि 2003 से 2018 के बीच संस्थान में यूजीसी के नियमों के विपरीत अपात्र व्यक्तियों की नियुक्ति की गई है। कुठियाला ने विश्वविद्यालय के अकाउंट से संघ से जुड़ी संस्थाओं व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सहित अन्य संस्थाओं को मनमाने भुगतान किए हैं। इसके अलावा खुद व परिवार के सदस्यों पर भी खर्च किया।
अभी तक क्यों चुप थी सरकार
आयकर छापे के बाद जिस तरह मप्र सरकार भाजपा शासनकाल में हुए घोटालों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है, उससे सवाल उठने लगे हैं कि आखिर कमलनाथ सरकार अभी तक चुप क्यों थी? सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने लगभग हर मंच से घोषणा की थी कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही भाजपा शासनकाल में हुए घपले-घोटाले और भ्रष्टाचार की जांच कराकर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। इससे प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में यह डर समा गया कि सरकार बदलते ही 15 साल के घोटालों की फाइलें खुल जाएंगी और दोषियों पर गाज गिरनी शुरू हो जाएगी। प्रदेश की जनता ने भी कुछ इसी मंशा से कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका दिया। लेकिन प्रदेश में सरकार बनते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने साफ्ट पॉलिटिक्स की राह पकड़ ली। जिसका खामियाजा उनके सामने है।
लॉबिस्टों का बोलबाला
वक्त है बदलाव के नारे के साथ जनता का विश्वास जीतकर सत्ता में आई कांग्रेस से लोगों को उम्मीद थी कि वह भाजपा शासन की कुरीतियों से मुक्त रहेगी। लेकिन इस सरकार को भी वही रोग लग गया जिससे भाजपा ग्रसित थी। यानी विभिन्न माध्यमों से लॉबिस्ट सरकार के करीबियों के करीब आ गए। शासन और प्रशासन के पास इनकी सक्रियता से ऐसा लगने लगा कि अब प्रदेश में जो कुछ भी होगा उसका निर्धारण इन्हीं के माध्यम से होगा। फिर प्रदेश में तबादलों का ऐसा दौर चला की उस पर उंगली उठने लगी। जिन अफसरों पर भाजपा शासनकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, वे कांग्रेस सरकार में भी रसूखदार बने हुए हैं। यही नहीं भाजपा शासन के दौरान जिन सरकारी लॉबिस्ट की शासन-प्रशासन में घुसपैठ थी, उन्होंने इस सरकार में भी अपनी पैठ जमा ली। इन्हीं में से एक है अश्विन शर्मा। यानी 15 साल बाद प्रदेश में केवल सरकार का चेहरा बदला है। व्यवस्था में उन्हीं लोगों का राज है जिनका भाजपा सरकार में था।
जैसी करनी वैसी भरनी
मुख्यमंत्री के करीबियों के यहां पड़े आयकर छापे से कांगे्रस में भी कुछ लोग खुश हैं। इसकी वजह है सरकार मेंंंं कुछ ही लोगों की दखलअंदाजी। कांग्रेस के एक विधायक आयकर छापे की कार्रवाई पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि जैसी करनी वैसी भरनी। वह कहते हैं कि प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका इसलिए दिया था कि वह भाजपा के कुशासन से परेशान हो उठी थी। 15 साल के दौरान प्रदेश में जितने भ्रष्टाचार हुए हैं, उतना देश में कहीं नहीं हुआ है। लोगों को विश्वास था की प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही भ्रष्टाचार की फाइलें खुलने लगेंगी और भ्रष्टाचार करने वालों पर गाज गिरेगी। लेकिन सरकार ने अपने चार माह के शासन के दौरान इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। वह कहते हैं कि वक्त है बदलाव का नारा भाषणों में ही सिमटकर रह गया है।
वह कहते हैं कि भाजपा के 15 साल के कुशासन के बाद जनता ने कांग्रेस को सत्ता इसलिए सौंपी थी कि प्रदेश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी आदि पर अंकुश लग सके। लेकिन सत्ता मिलने के बाद से कांग्रेस सरकार सबसे अधिक एक ही काम को लेकर चर्चा में रही वो है तबादले। मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ के शपथ लेने के बाद सरकार की तबादला एक्सप्रेस ने जो रफ्तार पकड़ी तो वह लोकसभा की आचार संहिता लगने के बाद ही रूकी। वह कहते हैं कि जिस तरह रोजाना सूचियां जारी हो रही थीं, सैंकड़ों अधिकारियों को इधर से उधर किया जा रहा था, तबादले निरस्त किए जा रहे थे उससे ऐसा लगा जैसे प्रदेश में तबादला उद्योग चल रहा है। भाजपा नेताओं ने इसे हवा दी और अरबों रूपए के लेन-देन का आरोप लगाना शुरू कर दिया।
दाल में कुछ तो काला
मप्र में मुख्यमंत्री के करीबियों के यहां पड़े आयकर छापे को भले ही राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है, लेकिन जिस तरह मुख्यमंत्री के करीबियों के करीबी अश्विनी शर्मा के पास नामी-बेनामी दौलत मिली है उससे यह बात साफ होती है कि दाल में कुछ तो काला है। यही नहीं जबलपुर के हवाला कांड और दिल्ली में एक उद्योगपति के यहां पड़े छापों से दिल्ली इनकम टैक्स विंग को भोपाल के अश्विन शर्मा और इंदौर के ललित छजलानी के साथ ही मुख्यमंत्री के करीबियों के बारे में जानकारी मिली। जबलपुर में छापेमारी के दौरान आयकर विभाग की इंवेस्टिगेशन विंग को मिले दस्तावेजों में यह तथ्य सामने आया कि छह माह के भीतर ही 6,245 करोड़ का हवाला कारोबार किया जा चुका है। छापेमारी और जांच में पकड़े गए 4 लोगों से पूछताछ, जब्त दस्तावेज की जांच और जबलपुर में अगरबत्ती का काम करने वाले खूबचंद लालवानी उर्फ बंटी से जब्त किए गए लैपटॉप और उसके बाद की गई पड़ताल से आयकर विभाग को कमलनाथ सरकार के नाक तले भ्रष्टाचार की बू आई।
दरअसल, जब आयकर विभाग की टीम एक्टिव हुई तो उसे यह पता चला कि अश्विनी शर्मा और ललित छजलानी की पहुंच सत्ता के करीबियों तक है। पड़ताल में यह बात सामने आई की मुख्यमंत्री के ओएसडी प्रवीण कक्कड़ और आरके मिगलानी से अश्विनी शर्मा के अच्छे संबंध है और इनके बीच व्यावसायिक संबंध भी है। इसके बाद आयकर विभाग ने कड़ी से कड़ी जोड़कर 7 अप्रैल को मुख्यमंत्री के करीबियों के यहां छापामारा। आयकर की छापामार कार्रवाई में जो रकम मिलने की बात आ रही है वह भले ही 17 करोड़ के आसपास है लेकिन अश्विनी शर्मा के दुबई कनेक्शन और उसके दर्जनों मकान और अनेक लक्जरी कारें किसकी मेहरबानी से खरीदी गई और उनका इस्तेमाल कौन करते आ रहे हैं यह भी सियासत खासतौर से चुनाव में चर्चा के मुद्दे बनेंगे।
छापे और कार्रवाई घेरे में
मप्र में पड़े आयकर छापे की टायमिंग को देखकर कहा जा रहा है कि यह राजनीति से प्रेरित है। लेकिन आयकर छापे के बाद जिस तरह प्रदेश सरकार ने ई-टेंडरिंग और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हुए घोटालों में एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की है उसे क्या माना जाए। दरअसल ये दोनों घटनाएं यह बताती हैं कि महाभारत के अर्जुन की तरह राजनेताओं का एक ही लक्ष्य है-विपक्षी को मात देना। चुनावी अर्जुन जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ के लंबे राजनीतिक जीवन में यह पहला मामला है जब उनके सियासी जीवन में तीस-पैंतीस साल से साथ रहे आरके मिगलानी भी छापे की चपेट में आ गए। सबसे ज्यादा नुकसान कमलनाथ की छवि को लेकर कांग्रेस को होगा। इसे कमलनाथ पर सर्जिकल स्ट्राइक माना जा रहा है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ठीक से कुर्सी पर बैठ भी नहीं पाए तो लोकसभा चुनाव आ गए। बावजूद इसके उन्होंने मंत्रालय में बैठकर प्रशासन पर पकड़ बनाने की कोशिश करने के साथ आक्रामक चुनावी रणनीति अपनाई। इसका लाभ भी कांग्रेस को मिल रहा था, लेकिन आयकर छापे के बाद बाजी पलट गई है और सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा रही है। इन आरोपों का जवाब देने के लिए प्रदेश सरकार भाजपा शासन के भ्रष्टाचारों की फाइल खुलवा रही है। यह द्वंद किस अंजाम तक पहुंचेगा जनता को इसका इंतजार रहेगा। क्योंकि जनता चाहती है कि जैसे भी हो भ्रष्टाचार रुके और भ्रष्टों पर कार्रवाई हो।