17-Aug-2013 06:01 AM
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दिल्ली के महंगे इलाकों में प्याज के दाम 90 रूपए किलो हैं। सस्ते इलाके में दाम हैं 60 रूपए किलो और होटलों में प्याज की ग्रेवी के लिए अलग से आर्डर देना पड़ता है क्योंकि होटल वाले घाटा होने के

कारण टमाटर की ग्रेवी में स्वाद लाने की कोशिश कर रहे हैं। आमतौर पर अभिजात्य रहने वाला टमाटर इस बार सर्वहारा हो गया है यानि उसके दाम भटे के बराबर अर्थात 30 रूपए किलो हैं। हालांकि दिल्ली सरकार दावा कर रही है कि वह इन दामों पर नियंत्रण कर लेगी लेकिन कहीं न कहीं राज्य में सत्तासीन कांग्रेस प्याज के आंसू रोने को मजबूर है। अगस्त माह के तीसरे सप्ताह की शुरूआत तक तो दाम नियंत्रण में नहीं आ सके थे। काला बाजारी जारी रही तो चुनाव तक भी यह कीमत युद्ध खिंच सकता है और ऐसा हुआ तो इतिहास फिर दोहराया जाएगा एक और सरकार प्याज के आंसुओं के समुद्र में समा जाएगी। दिल्ली में यह सुनियोजित हो रहा है या नहीं कहा नहीं जा सकता लेकिन कुछ समय पहले से राजीव गांधी की जयंती 20 अगस्त पर खाद्य सुरक्षा योजना लागू करने के सपने देख रही शीला दीक्षित सरकार को सब्जियों के बढ़े दामों ने परेशान कर दिया है एक तरफ वह दावा करती है कि दिल्ली में देश के किसी भी शहर के मुकाबले बिजली के दाम सबसे कम हैं दूसरी तरफ वे प्याज जैसी जरूरी खाद्य सामग्री के दाम नियंत्रित करने में नाकामयाब रही है। अब शीला एक तरफ तो खाद्य सुरक्षा के भरोसे अपनी चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत भिड़ा रही हैं दूसरी तरफ बिजली की कमी और जरूरी चीजों के बढ़े दाम उनके मिशन को पलीता लगा सकती है।
रामलीला मैदान पर 11 अगस्त को भाजपा की बिजली रैली के दौरान जिस तरह की भीड़ देखी गई उसे देख कर लगता है कि बिजली कहीं न कहीं शीला सरकार के लिए सरदर्द बन सकती है। भाजपा ने शीला सरकार को बिजली की दरें कम करने का दस सूत्रीय फार्मूला बताया है और इसे लागू करने की चुनौती भी दी है लेकिन दिल्ली सरकार ने इसे नकार दिया है अब भाजपा आरोप लगा रही है कि सरकार की निजी वितरण कंपनियों और डीईआरसी के साथ मिली भगत है। कांगे्रस कह रही है कि भाजपा जनता से असम्भव वादे करके उसे बेवकूफ बना रही है। लेकिन शीला भले ही कुछ कहे कांग्रेस बिजली को लेकर भयभीत है और इसीलिए नए-नए रास्ते तलाश रही है। खाद्य सुरक्षा लागू करने वाला पहला प्रदेश बनने की पीछे भी यही रणनीति है लेकिन इससे फायदा क्या होगा बिजली और जरूरी समान की बढ़ी कीमतों के कारण हालात बेकाबू हो चुके हैं। साउथ दिल्ली में भी अब बिजली जाने लगी है एक चिंता जनक खबर यह भी है कि बड़े पॉवर प्रोजेक्ट से शायद अब सस्ती बिजली न मिले इसका असर सभी राज्यों के साथ साथ दिल्ली पर भी पड़ सकता है टाटा पॉवर और रिलायंस पॉवर जैसी कंपनियों ने साफ कह दिया है कि वे नए ब्रिडिंग नॉम्र्स के चलते सस्ती बिजली का वादा नहीं कर सकते बैंकों ने भी कहा है कि इन नियमों के हिसाब से बनने वाले प्रोजेक्ट्स को वे लोन नहीं दे पाएगे इससे दिल्ली मेें 1400 मेगावॉट क्षमता पर असर पड़ सकता है। इस बार गर्मियों में राजधानी दिल्ली में बिजली की मॉग 5500 मेगावॉट से ऊपर चली गई थी दिल्ली में 1174 मेगावॉट बिजली पैदा होती है और केन्द्रीय पूल से 3680 मेगावॉट बिजली दिल्ली को दी जाती है वर्ष 2012 में ग्रिड फे ल होने से दिल्ली सरकार की चुनौती बढ़ गई लेकिन इस बार हालात यह है कि बिजली पानी का मुद्दा ज्यादा तग करने लगा है। इसी वर्ष मार्च माह में अरविन्द केजरी वाल ने दिल्ली सरकार के खिलाफ बिजली पानी के मुद्दे पर अनशन किया था उस समय 36000 लोगों ने बिजली का बिल भरने से मना कर दिया था। पानी की कमी के चलते 5 घंटे पानी की कटौती की जा रही और बिजली के दाम भी 19 प्रतिशत बढ़ चुके है इन सब परिस्थतियों के चलते भारी जन असंतोष देखा जा रहा है। जून माह में ही हिमाचल के प्लांट के छापा पड़ जाने से दिल्ली में 150 मेगावॉट बिजली की कमी हो गई। बिजली की कमी अभी भी चल रही है और उधर बीएसईएस तथा तीनों उत्पादन कंपनियों की बीच जारी टसल के कारण आने वाले दिनों में दिल्ली में बिजली का उत्पादन भी ठप हो सकता है। यह संकट बीएसईएस द्वारा बिजली उत्पादन कंपनियों को करीब 3500 करोड़ रुपए का भुगतान न करने के कारण खड़ा हो रहा है। इसके बाद कई इलाकों में बिजली की किल्लत हो सकती है। इससे राजधानी में आई-लैंडिंग की व्यवस्था पर भी पानी फिरने की आशंका है।
आई-लैंडिंग का मतलब है यदि ग्रिड काम करना बंद कर दे तो जितना उत्पादन दिल्ली में होता है उतनी बिजली दिल्ली को मिलती रहे। लेकिन बकाया रकम के भुगतान नहीं होने से अब दिल्ली में उत्पादन ही ठप हो जाएगा तो किस आधार पर आई-लैंडिंग व्यवस्था लागू होगी? इस बारे में बीएसईएस के अधिकारियों ने बकाए की बात स्वीकार तो की लेकिन भुगतान संबंधी मसले पर कुछ भी कहने से कन्नी काट ली। बताया जा रहा है कि दिल्ली की सरकारी बिजली कंपनियों का निजी क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस पर करीब 3500 करोड़ रुपए का बकाया हो गया है। इस राशि में से करीब 2800 करोड़ रुपए बिजली उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनियों इंद्रप्रस्थ पॉवर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (आईपीजीसीएल) और प्रगति पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड (पीपीसीएल) का है जबकि करीब सात सौ करोड़ रुपए ट्रांसमिशन करने वाली सरकारी कंपनी दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड (डीटीएल) का है। कई वर्षों का यह लगातार चला आ रहा बकाया पैसा है। कंपनियों के अधिकारी बताते हैं कि बीएसईएस द्वारा बहुत कम भुगतान के कारण इस राशि में लगातार वृद्धि हो रही है।
अरुण दीक्षित