फर्जी नहीं था बाटला एनकाउंटर
02-Aug-2013 09:46 AM 1234797

मुस्लिम समुदाय के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए बार-बार आजमगढ़ जाने वाले और मुस्लिम युवकों की भावनाओं के प्रति चिंता प्रकट करने वाले दिग्विजय सिंह तथा सलमान खुर्शीद के मुताबिक बाटला हाउस की तस्वीरों को देखकर द्रवित हुई सोनिया गांधी की संवेदनाओं से हटकर दिल्ली के साकेत कोर्ट ने कहा है कि बाटला हाउस एनकांटर फर्जी नहीं था। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले गिरफ्तार एकमात्र संदिग्ध आंतकवादी शहजाद उर्फ पप्पू को इंस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की हत्या का दोषी मानते हुए आईपीसी की धारा 302, 307, 186, 120 डी के तहत आजीवन कारावास की सजा दी गई है।
कोर्ट का यह फैसला दिल्ली पुलिस के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। इस फैसले ने एनकाउंटर को लेकर उठ रहे सवालों को खारिज कर दिया है। अपनी चार्जशीट में पुलिस ने कहा था कि उस मुठभेड़ के दौरान शहजाद अपने दोस्त जुनैद के साथ बालकनी से कूदकर फरार हो गया था। सभी आतंकवादी इंडियन मुजाहिदीन आतंकवादी संगठन से थे, जो अहमदाबाद और दिल्ली धमाकों में तो शामिल थे ही, उनकी प्लानिंग दिल्ली में तब और धमाके करने की थी। इस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस ने मोहन चंद्र शर्मा जैसा अपना एक जांबाज सिपाही भी खोया, लेकिन इसके बाद भी यह एनकाउंटर काफी सवालों के घेरे में भी रहा। सुनवाई के दौरान, शहजाद ने 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के संबंध में वहां की साबरमती जेल में बंद सैफ और जीशान को बचाव पक्ष के गवाहों के तौर पर बुलाकर दावा किया था कि वह मौके पर नहीं था। अभियोजन पक्ष ने दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के छापामार दल में शामिल छह चश्मदीदों सहित 70 गवाहों से पूछताछ की थी। पुलिस ने कहा था कि उसके पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त परिस्थितिजन्य साक्ष्य तथा फोन रिकार्ड हैं कि शहजाद जामिया नगर के फ्लैट में भी मौजूद था और निरीक्षक शर्मा सहित अन्य पुलिसकर्मियों पर गोली चलाने वालों में भी शामिल था। शहजाद के अधिवक्ता ने हालांकि दावा किया था कि उनका मुवक्क्लि उस फ्लैट में मौजूद नहीं था जहां गोलीबारी हुई थी। बचाव पक्ष ने यह भी दावा किया था कि बैलिस्टिक रिपोर्ट के अनुसार, दिवंगत पुलिस अधिकारी के शव से मिली गोलियां गिरफ्तारी के वक्त शहजाद के पास से कथित रूप से मिले हथियार से नहीं बल्कि घटनास्थल से जब्त बंदूक से मेल खाती हैं।
इस फैसले के बाद इस सवाल पर तो कम से कम विराम लग गया है कि यह एनकाउंटर फर्जी था? साथ ही सवाल उठ खड़ा हुआ है कि उन नेताओं की विश्वसनीयता पर जो इस मुठभेड़ को फर्जी साबित करने के लिए दिन-रात एक किए हुए थे। दिग्विजय ने तब कहा था कि इस घटना की न्यायिक जांच होनी चाहिए। सिंह अपनी बात के पक्ष में तर्क दिया था कि इस घटना में जो दो लोग मारे गए थे, उनमें से एक के सिर में पांच गोलियां लगी थीं। किसी भी मुठभेड़ में पांच गोलियां सिर में नहीं लग सकतीं। इससे ऐसा लगता है कि यह मुठभेड़ सही नहीं थी। लेकिन दिग्विजय के बयान को तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने तुरंत खारिज कर दिया था। उन्होंने साफ कहा कि बटला हाउस एनकाउंटर पूरी तरह सही था। लेकिन तब तक आग को हवा मिल चुकी थी और साथ ही तेज हो गई थी बटला हाउस मुठभेड़ पर सियासत। 14 जनवरी 2012 को समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने दिल्ली के बटला हाउस मुठभेड़ को सही बताने वाले तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदम्बरम से इस्तीफे की मांग कर डाली। मानवाधिकार कार्यकर्ता तो सवाल उठा ही रहे थे, पुलिस कार्रवाइयों को लेकर आशंकाओं से घिरे अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भी मुठभेड़ की जांच मुद्दा बनता जा रहा था। फरवरी 2009 में उलेमा काउंसिल के बैनर तले आजमगढ़ से प्रदर्शनकारियों का एक जत्था दिल्ली पहुंचा था। दावा था कि मुठभेड़ में मारे गए लड़के निर्दोष थे। प्रदर्शन का ये दौर काफी लंबा चला और वक्त-वक्त पर सियासी पार्टियों के बयान विवाद में नई जान फूंकते रहे। यूपी के विधानसभा चुनावों के दूसरे दौर के प्रचार के अंतिम दिन आजमगढ़ में तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि बटला हाउस मुठभेड़ की तस्वीरें देखने के बाद सोनिया गांधी रोने लगी थीं। हालांकि अगले ही दिन यानि 10 फरवरी 2012 को सफाई देते हुए खुर्शीद ने कहा कि सोनिया भावुक हो गई थीं।
एनकाउंटर की कहानी: सितंबर 2008 में दिल्ली पुलिस की स्पेश्ल टीम को खबर मिली थी कि इंडियन मुजाहिदीन के कुछ आतंकी ओखला के जामिया नगर इलाके में डेरा डाले हुए हैं और वो कोई बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में हैं। मुखबिरों और दूसरे स्रोतों से स्पेश्ल सेल ये जानने में सफल रही कि ढ्ढरू के ये आतंकी बटला हाउस के मकान नंबर रु. 18 में छुपे हैं।  19 सितंबर 2008 को एनकाउंटर स्पेश्लिस्ट मोहन चंद शर्मा की अगुवाई में आतंकियों को सरेंडर करने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने गोलियां चलानी शुरु कर दी। ऐसे में पुलिस की ओर से जवाबी कार्रवाई की गई और दो आंतकी (आतिफ और साजिद) मौके पर ही ढेर हो गए। मुठभेड़ के दौरान एक आतंकी (सैफ) को गिरफ्तार किया गया जबकि दो फरार होने में कामयाब रहे। इस एनकाउंटर में कई वीरता पदक जीत चुके दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए जबकि हेड कॉन्स्टेबल बलवान सिंह घायल हो गए।

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