18-Jan-2019 07:28 AM
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मध्यप्रदेश में कांग्रेस की नवनिर्वाचित सरकार द्वारा लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि के भुगतान में बजट प्रावधान से अधिक खर्च होने का हवाला देते हुए इसकी प्रक्रिया दोबारा निर्धारित करने और मीसाबंदियों की पेंशन रोके जाने का आदेश सामने आने पर प्रदेश में एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। राज्य में 2600 मीसाबंदियों को 25-25 हजार रूपए की ये पेंशन दी जाती है। सामान्य प्रशासन विभाग ने पेंशन पर अस्थाई रोक लगाते हुए इसकी वजह पेंशन पाने वालों का भौतिक सत्यापन और पेंशन वितरण की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना बताया। इसके लिए सीएजी की रिपोर्ट को आधार बनाया गया।
मध्यप्रदेश सरकार के सर्कुलर के अनुसार सभी पेंशनकर्ताओं की जांच के बाद ही पेंशन दी जाएगी। सर्कुलर में कैग रिपोर्ट की जानकारी भी दी गई है जिसमें लिखा था कि 2008 में भाजपा सरकार के द्वारा ये स्कीम शुरू करने के बाद से जरूरत से ज्यादा पैसा इस स्कीम के नाम पर निकाला गया है। इसलिए ये जांच होना जरूरी है कि सही लोगों को ही पेंशन दी जाए। सर्कुलर के अनुसार सरकार को पब्लिक अकाउंट कमिटी को स्कीम में होने वाली गड़बडिय़ों को दिखाने में समस्या हो रही है। सर्कुलर में कोई टाइम फ्रेम नहीं दिया गया है जिसमें पेंशन स्कीम वापस शुरू की जाएगी। हालांकि, जनवरी महीने की पेंशन दी जा चुकी है, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि उन्हें आगे ये पेंशन मिलेगी या नहीं। बता दे कि मध्यप्रदेश में करीब 2000 मीसाबंदी 25 हजार रुपए मासिक पेंशन ले रहे हैं। 2008 में शिवराज सरकार ने मीसा बंदियों को 3000 और 6000 पेंशन देने का प्रावधान किया था। बाद में पेंशन राशि बढ़ाकर 10,000 रुपए की गई थी। फिर 2017 में पेंशन राशि बढ़ाकर 25,000 रुपये की गई। कांग्रेस का आरोप है कि इस पर सालाना करीब 75 करोड़ का खर्च आता है। भाजपा ने इसके विरोध में संघर्ष करने की बात कही है। वहीं कांग्रेस का दावा है कि मामले में गड़बडिय़ों की शिकायत के बाद सरकार ने इसके निरीक्षण का निर्णय किया है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार के पास इससे जुड़ी हेराफेरी की स्पष्ट शिकायतें आईं थीं। कई ऐसे लोग जो आपातकाल के समय किन्हीं अन्य मामलों में भी जेल में बंद थे, उनके भी हेराफेरी से ये सम्मान निधि लिए जाने की शिकायतों के बाद सरकार ने इसका निरीक्षण करने का फैसला किया है। निरीक्षण के बाद इस बारे में आगे की कार्यवाही तय की जाएगी।
दूसरी ओर भाजपा प्रदेश प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा है कि मीसाबंदियों ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी कुचलने के विरोध में संघर्ष किया, लेकिन कांग्रेस सरकार में उन्हें अपराधी कहकर अपमानित किया जा रहा है। इसके खिलाफ जमकर संघर्ष होगा। सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी आदेश के मुताबिक लोकतंत्र सेनानियों के सत्यापन के साथ उन्हें दी जाने वाली सम्मान निधि के भुगतान की प्रक्रिया दोबारा निर्धारित की जाएगी। ऐसे में अगले महीने से इस निधि का वितरण ये प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही किया जाएगा। मीसाबंदियों की पेंशन को बंद किये जाने का विरोध करते हुए लोकतंत्र प्रहरी संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद तिवारी ने इसे सरकार का आत्मघाती निर्णय बताया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार इंदिरा सरकार के समान बदले की भावना से काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि मीसाबंदी के दौरान डीआईआर में छात्र, नेता, वकील, डॉक्टर, पत्रकार, संपादक सहित इस्लामिक, समाजवादी, कम्युनिस्ट पार्टी सहित कई संगठनों के लोगों को जेल में भर दिया गया। ऐसे लोगों की पीड़ा और कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए भाजपा सरकार ने मीसाबंदी परिवारों को पेंशन देकर उनका सम्मान किया था। आदेश में कहा गया है कि कैग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्षों में इस निधि के भुगतान में बजट से अधिक राशि खर्च होने की बात सामने आई है। ऐसे में इस प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाना और लोकतंत्र सेनानियों का सत्यापन कराना जरूरी है।
जो कांग्रेसी जेल में
रहे सब हकदार
दूसरी ओर कई समाजवादी, कांग्रेसी, वामपंथी नेता पेंशन बंद होने की चपेट में आ गए हैं। कांग्रेस के फायरब्रांड नेता पूर्व प्रवक्ता केके मिश्रा और सुरेश मिंडा भी इसमें शामिल हैं। मिश्रा कहते हैं, हम सरकार के साथ हैं, जो भी इस पर निर्णय लिया जाए हमारा समर्थन है। यह पेंशन नहीं सम्मान निधि है। इमरजेंसी के दौरान हम छात्र नेता थे। कांग्रेस में तब मुख्यमंत्री पीसी सेठी और वरिष्ठ नेता महेश जोशी के गुट थे। हम जोशी के साथ थे और छात्रों को लेकर हर दिन सरकार से मोर्चा ले रहे थे। प्रदेश के वर्तमान कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट, सज्जन वर्मा, सुरेश मिंडा हम सब छह महीनों तक जेल में बंद रहे। इसलिए कई कांग्रेसियों को यह सम्मान निधि मिल रही है। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और केंद्रीय गृह मंत्री की पहल के बाद कांग्रेसियों की रिहाई हो पाई। कांग्रेस नेता सुरेश मिंडा का कहना है कि वे उस वक्त सोशलिस्ट मूवमेंट में थे। इसलिए मीसा में उन्हें बंद कर दिया गया था। यह सम्मान निधि तो पिछले दो सालो में बढ़ी है, वरना यह नाममात्र की राशि थी।
- राजेश बोरकर