14-Aug-2013 08:13 AM
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बिहार में मंत्रियों के बीच इन दिनों शहीदों का अपमान करने और पाकिस्तान की खुले आम तरफदारी करनी की होड़ चल रही है। धर्मनिरपेक्षता का एक तकाजा यह भी है कि पाकिस्तान की बेबुनियाद

तरफदारी की जाए और देश के शहीदों के रक्त का अपमान किया जाए बिहर के कृषि मंत्री नरेन्द्र सिह ने कहां है कि उन्हें पूरा विश्वास है कि पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों की हत्या नहीं की है। मंत्री का यह भी कहना है कि पाकिस्तान भारत का छोटा भाई और पड़ोसी है। यह टिप्पणी अनायास नहीं है जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में 21 वीं बिहार रेजिमेंट के 4 जवानों सहित जिन 5 जवानों की पाकिस्तानी सेना ने हत्या की है उसके बाद बिहार में बहुत आक्रोश है। जनता दल युनाईटेड को लगता है कि इस आक्रोश का फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल जाएगा उधर राष्ट्रीय जनता दल पहले ही मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश कर रहा है इसीलिए बिहार के मुस्लिमों को वोटों में तब्दील करने के लिए जनता दल युनाईटेड के मंत्री हर सीमा तक जाने को तैयार हंै। भले ही इसमें सैनिकों का अपमान क्यों न होता हो इससे पहले पंचायत राज मंत्री भीमसेन कह चुके हैं कि सैनिक और पुलिस वाले मरने के लिए ही भर्ती होते हैं। इन कथनों ने राजनीति तापक्रम बढ़ा दिया है। जनता दल यूनाईटेड को न जाने यह सलाह किसने दी कि पाकिस्तान परस्ती करने और अपने शहीदों की शहादत का मखौल उड़ाने से मुस्लिम वोट सध जाएंगे। इसी मानसिकता के चलते राजनीति का सबसे घृणित प्रसंग उस बिहार की भूमि पर घट रहा है जहां कभी मगध साम्राज्य को बुराईयों से मुक्त कराने के लिए आचार्य चाणक्य ने भेद नीति से काम लेते हुए तत्कालीन शासकों को उखाड़ फेंका था।
नीतीश के साथ भी यही दुविधा है। भाजपा से अलग होने के बाद संख्या बल के चलते विधान सभा में भले ही वे विश्वास मत जीतने में कामयाब रहे हों लेकिन उनकी लोकप्रियता का ग्राफ दिनों दिन नीचे जा रहा है। यह घटती लोकप्रियता कहीं न कहीं नीतीश को परेशान कर रही है। इसीलिए उन्होंने अपने मंत्रियों को किसी भी सीमा तक जाकर मुसलमानों की चाटुकरिता करने की छूट दे रखी है। शहीदों के शव जब बिहार की भूमि पर पहुंचे तो कोई भी मंत्री उन्हें लेने के लिए उपस्थित नहीं था। यह अपमान सोची समझी रणनीति के तहत किया गया। इसके पीछे भय यही था कि शहीदों का अत्यधिक सम्मान करने से कही एक वर्ग नाराज न हो जाए। यह आशंका जनता दल यूनाईटेड के मंत्रियों के मन में क्यों उठी? क्या उन्हें वोट बैंक का भय सता रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही इशरत जहां एनकाउंटर का विवाद जब फिर से खड़ा हुआ तो पुन: यही घटिया राजनीति देखने को मिली जब इशरत जहां को बिहार की बेटी बताते हुए नीतीश और उनके मंत्री करूणा से भर उठे। काश यही संवेदना उन शहीदों के लिए भी दिखा दी गई होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आलम यह है कि बिहार में अब केवल सियासत की जा रही है। हिन्दु बनाम मुस्लिम का धुव्रीकरण जो इस राज्य में पहले कभी देखने को नहीं मिला वह अब देखने को मिल रहा है। भाजपा पहले से ही साम्प्रदायिक राजनीति करती आई है अब जनता दल युनाईटेड ने साम्प्रदायिकता के साथ-साथ जातिवादी राजनीति भी प्रारंभ कर दी है। सवाल वही है यदि हिन्दुवादी भावनाओं को भड़काना साम्प्रदायिकता है तो धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ कर मुस्लिम परस्ती करना भी साम्प्रदायिकता ही कहलाएगी। बिहार में इन दिनों यही चल रहा है बल्कि उत्तरप्रदेश से भी ज्यादा चल रहा है। उत्तरप्रदेश में तो केवल मुस्लिम यादव समीकरण है लेकिन बिहार में जो समीकरण नीतीश कुमार बनाना चाह रहे हैं वह बड़ा पेचीदा समीकरण हो सकता है। इसमें घाटा है या फायदा यह समझना छोड़ा कठिन है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर मोदी का विरोध करना, उससे पहले पाकिस्तान जाकर वहाँ के मॉडल की तारीफ करना और अब भाजपा से नाता तोड़ कर धर्मनिरपेक्ष ताकतों की अगुवाई करने के सपने देखना यह सब सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। इसने कहीं न कहीं बिहार में मतदाताओं को भ्रमित किया है और हालात वैसे ही होते जा रहे हैं जैसे 1992 में थे। इसका फायदा न कांग्रेस को मिलेगा न नीतीश को फायदे में भाजपा और युनाईटेड दल रहेंगी। अपनी गलतियों को ढांकने और कुशासन की तरफ से जनता का ध्यान भटकाने के लिए यह पैंतरा चला गया है लेकिन इस पैंतरे का एक दांव ऐसा भी है जो देश की अखंडता के लिए घातक है। शहीदों के शव पर राजनीति घातक राजनीति है विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश ने धर्म निरपेक्षता के नाम पर मोदी को ख़ारिज करने की जो गलती की है उसके परिणाम उन्हें भारी पड़ सकते हैं। वस्तुत: नीतीश का यह धर्म निरपेक्ष प्रधानमंत्री का राग कुछ और करे न करे मोदी से व्यक्तिगत खुन्नस को अधिक परिलक्षित करता है। पता नहीं नीतीश को मोदी के बढ़ते कद से इतनी परेशानी क्यों हो रही है। नीतीश ने अपने भाषण में अपने गठबंधन के सबसे बड़े दल भाजपा द्वारा शासित गुजरात को निशाना बनाकर यह सिद्ध कर दिया था कि वे अपनी पार्टी के कार्यों को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं कि उन्होंने बिहार का जो विकास किया है उसके आगे कोई विकास किसी राज्य का मायने नहीं रखता। सच्चाई तो यह है कि उन्होंने अपने पूरे भाषण में मोदी का नाम लिए बिना मोदी की जमकर आलोचना की थी। जिस धर्मनिरपेक्षता का राग उन्होंने जून 2012 में आलापना शुरू किया था उसका आखरी अंतरा उन्होंने राष्ट्रीय अधिवेशन में गाकर एन.डी.ए. में दरार पैदा करने का काम किया था। समझ नहीं आता कि जब उन्होंने एक दिन पहले भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली से मुलाकात की थी तो क्या उनसे मोदी की आलोचना की स्वीकृति प्राप्त कर ली थी ! जिस बिंदास अंदाज में मोदी की उन्होंने आलोचना की वह संदेह पैदा करता है। नीतीश चाहते तो अपने तीर यू.पी.ए. की तरफ मोड़ सकते थे किन्तु ऐसा न कर उन्होंने भाजपा को हानि पहुँचाने में कोई कोताही नहीं बरती। उनके इस भाषण से भाजपा को जो हानि हुई है उसकी भरपाई असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। सच्चाई तो यह है कि नीतीश धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं जबकि मोदी तुष्टीकरण के स्थान पर सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति कर सबको साथ लेकर चल रहे हैं। जिन 2002 के दंगों के लिए नीतीश मोदी को साम्प्रदायिक मान रहे हैं वह मोदी 2013 तक आते आते पूरी तरह आखों से ओझल हो गया है। मोदी ने किसी व्यक्ति विशेष से खास तरह की टोपी नहीं पहनी तो इसका मतलब यह तो नहीं कि वे उस वर्ग को अपना दुश्मन मानते हैं। टोपी पहनना या न पहनना इस बात की ओर संकेत नहीं करता कि मोदी साम्प्रदायिक ही हैं। यह सही है कि गोधरा कांड के बाद गुजरात में हिंसा हुई लेकिन उस हिंसा के बाद क्या मोदी ने गुजरात की जनता में हिंदू मुसलमान के आधार पर कोई भेद किया। आज गुजरात के मुसलमान उतने ही सुखी हैं जितने की कोई दूसरे मजहब के लोग। इसी का परिणाम है कि 17 मुस्लिम बहुल इलाकों में 11 स्थानों पर भाजपा ने विधानसभा में जीत दर्ज की। हमारे देश में साम्प्रदायिकता एक ऐसी आभासी स्थिति है कि जब हम मुसलमानों के चश्मे से हिंदुओं को देखते हैं तो हमें हिंदू साम्प्रदायिक लगते हैं और जब हम हिंदुओं के चश्मे से देखते हैं तो हर मुसलमान हमें साम्प्रदायिक लगने लगता हंै। यदि राजनीतिक दल इन चश्मों को खरीदना बेचना बंद कर दें तो साम्प्रदायिकता कहीं नजर नहीं आएगी। मोदी के गुजरात में आज की स्थिति में मुसलमानों को जिन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिला है वह दूसरे प्रान्तों में कहीं देखने को नहीं मिलता। नीतीश बिहार के 16.5 प्रतिशत मुसलमानों के कारण स्वयं को धर्मनिरपेक्ष सिद्ध करने के लिए मोदी के विरुद्ध साम्प्रदायिकता का अभियान छेडऩे के लिए कमर कस चुके हैं। भाजपा को इस मसले को जल्दी सुलझाना जरूरी है, किसी भी तरह की देरी से नुकसान भाजपा का ही होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।