बोधगया में विस्फोट
17-Jul-2013 08:22 AM 1234818

एक तरफ  बिहार की राजनीति गरमा रही है। दूसरी तरफ बिहार में आंतकवादी घटनाओं ने आशंका पैदा कर दी है। बोध गया में जिस तरह सिलसिलेबार विस्फोट हुये उसने बिहार में नये संघर्ष की नींव डाल दी है। उधर नरेन्द्र मोदी के कम्प्युटरीकृत प्रचार ने बिहार के राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया है।
जिस तरह विस्फोट के समय बिहार सरकार ने दिल्ली पुलिस की और खुफिया एजेसिंयों की सलाह को नजरअंदाज किया उससे साफ पता लगता है कि हमारे देश में अभी भी सुरक्षा एजेसियों की सलाह को मौसम विभाग की सलाह की तरह ही नजरअंदाज कर दिया जाता है। प्रारंभिक खबरों से पता चला है कि इन विस्फोटों में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ हो सकता है।
बोधगया में सिर्फ  मुख्य मंदिर जिसमें भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ उसी को ही निशाना नहीं बनाया गया बल्कि जापान और करमापा के मंदिर के पास भी बम रखे गए। किस्मत अच्छी थी कि गर्मी के मौसम के कारण मंदिर में भीड़ नहीं थी। नहीं तो हताहत सैकड़ों में होते। गृह मंत्रालय ने इस हमले को आतंकी हमला मान लिया है। मंदिर के अंदर हुए हमले में दो विदेशी गंभीर रुप से घायल हो गए। घायलों की संख्या पांच बतायी गई। मंदिर बच गया। मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर जापान के दाइजोक्यो मंदिर के पास बने बुद्ध की अस्सी फुट की प्रतिमा के पास दो बम जिंदा मिले। इनका टाइम लगभग आठ बजे का फिक्स था। अगर ये धमाका होता तो निश्चित तौर पर मरने वालों की संख्या ज्यादा होती। बोधगया बाईपास पर खाली पड़ी एक बस में बम रखा गया। बम धमाका हुआ बस की छत उड़ गई। वहीं इसी बाईपास पर स्थित करमापा के मठ में दो बम रखे गए। एक धमाका हुआ और दूसरे को जिंदा निष्क्रिय किया गया। करमापा उस वक्त बोधगया नहीं धर्मशाला में थे।
बताया जाता है कि पंद्रह दिन पहले आईबी ने स्पेशिफिक इनपुट दिया था। इनपुट के अनुसार दो आतंकी पटना में 15 दिन पहले आ गए थे। इनकी फोटो भी बिहार पुलिस को भेज दी गई थी। लेकिन पटना पुलिस इन्हें ढूंढने में नकामयाब रही। बिहार के पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार निश्चित तौर पर आईबी का इनपुट स्पेशिफिक था। पटना पुलिस ने इसकी जांच एक डीएसपी स्तर के अधिकारी को दे दी थी। लेकिन गैर पेशेवर बिहार पुलिस के बस की बात कहां थी कि वो आतंकियों को ढूंढ ले। वैसे भी बिहार पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि आतंकी को ढूंढ कर भी क्या करते। एनकाउंटर होता और बाद में सीबीआई इन्कवायरी होती। एनकाउंटर को फर्जी बता कर इसमें शामिल पुलिस अधिकारियों को जेल भेज दिया जाता। इसलिए पुलिस वाले अब आतंकियों को ढूंढने में परहेज कर रहे हैं। बिहार में यह पहला आतंकी  हमला है। इसके तार म्यांमार और पाकिस्तान से जुड़े हैं। अभी तक बिहार में नक्सली हमले होते रहे हैं। लेकिन बिहार इस समय इंडियन मुजाहिदीन का सबसे बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। उत्तर बिहार के दरंभगा और समस्तीपुर जैसे जिले के युवक इंडियन मुजाहदीन के स्थानीय सेल बन गए हैं जो पूरे भारत में इस तरह की कार्रवाई करने में सक्षम हैंै। अगर इंटेलिजेंस इनपुट माने तो पाकिस्तान के अंदर सक्रिय जेहादी शक्तियों ने म्यांमार में रोहंगिया मुसलमानों के साथ हो रहे कार्रवाई को लेकर बौद्धों को सबक सिखाने की योजना बनायी थी। लश्कर के हाफिज सईद समेत तालिबान भी इस मामले पर बौद्धों को सबक सिखाने की योजना बना रहा था। रोहंगिया मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर बौद्धों के मुख्य धार्मिक स्थलों पर हमला करने का फैसला पाकिस्तान के अंदर सक्रिय जेहादी लश्कर-ए-तैयब्बा के स्थानीय माडयूल ने बोधगया की घटना को अंजाम दिया है। आतंकियों के हमले के तौर तरीके पाकिस्तानी आतंकियों के हमले से मिलते है। मसलन मंदिर के पीछे रखे एंबुलेंस में बम रखा गया था। ताकि किसी को अस्पताल ले जाने की कोशिश इसमें हो तो धमाके हो जाए। इस एंबुलेंस में भी बलास्ट हुआ। साथ ही एक किलोमीटर के दायरे में तीन चार जगहों पर बम रखा गया। इस तरह के रणनीति की ट्रेनिंग पाकिस्तान में सक्रिय आतंकियों को दी जाती है जो ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग टाइम पर बम विस्फोट करते हैं। शुरू के कुछ घंटे तक इस हमले को स्थानीय लोगों पर मढऩे की कोशिश की गई। थोड़ी देर तक इसे नक्सली हमला भी बताया गया। इसमें कोई शक नहीं है कि बोधगया बाजार से आसपास के स्थित दो किलोमीटर के दायरों के गांवों में नक्सली सक्रियता है। पर नक्सलियों के सूची में चिकित्सा, शिक्षा और धर्म शामिल नहीं है जहां पर हमला किया जाए। हालांकि मंदिर की सुरक्षा के लिए कितनी ज्यादा गंभीरता सरकार और मंदिर के प्रबंधन कमेटी को है वो इस बम विस्फोट के बाद पता चल गया। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो मेटल डिटेक्टर हैं। इसमें से एक अक्सर खराब रहता है। मुख्य मंदिर में सीसीटीवी कैमरे भी हैं। लेकिन इसमें से आधे से ज्यादा खराब रहते हैं। मंदिर की चारदीवारी इतनी छोटी है कि कहीं से कोई भी छलांग लगाकर अंदर जा सकता है। मंदिर के बाहर बिहार पुलिस के स्पेशल कमांडो (पैंथर कमांडो) तैनात हैं, जिनकी संख्या चार होती है। जबकि मंदिर के अंदर बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी के प्राइवेट गार्ड होते हैं।
निश्चित तौर पर इस धमाके के बाद बिहार को भारी नुकसान होगा। बिहार में निवेश न के बराबर है। सारा कुछ बिहार अब पर्यटन उद्योग पर निर्भर करता है। नितिश कुमार ने पर्यटन का ढोल पूरे साउथ एशिया में पीटा। जापान सरकार ने हाल ही में मोटी रकम बिहार सरकार को दी है। गया से लेकर पटना और राजगीर तक के सड़कों के निर्माण का पैसा जापान ने दिया है। थाईलैंड के राजा और प्रधानमंत्री ने बिहार का दौरा किया था और बिहार के पर्यटन के विकास के लिए सहायता देने का वचन दिया था। जब बम धमाके हुए उस समय वियतनाम सरकार का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल बोधगया में मौजूद था। वो भी बोधगया समेत बिहार के अन्य पर्यटन स्थलों के विकास के लिए पहुंचे थे ताकि बिहार को सहायता दी जा सके। जिस समय धमाका हुआ उसके ठीक कुछ मिनट पहले मंदिर परिसर से दस चीनी यात्रियों का प्रतिनिधिमंडल निकला था। अगर वो धमाके में मरते तो स्थिति और गंभीर हो जाती। इसमें कोई शक नहीं है कि इस समय बिहार इंडियन मुजाहिदीन का मुख्य भर्ती सेंटर है। एनआईए ने बीते कुछ महीनों में कई छापे बिहार के दरंभगा, समस्तीपुर और मुंगेर  में मारे हैं। यहां से दूसरे राज्यों के बलास्ट के आरोपियों की गिरफ्तारी की गई है। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनआईए के इन गिरफ्तारियों को लेकर आपति जतायी थी।
नीतीश कुमार की समस्या यह है कि उनके कुछ खास लोगों ने बीते कुछ दिनों से इशरत जहां को बिहार की बेटी बताने की मुहिम छेड़ दी थी जिसे आईबी लश्कर की फिदायीन दस्ते की सदस्य घोषित करने पर तुली है। इस धमाके के बाद नीतीश की परेशानी इस कारण और बढ़ गई है।
पुणे विस्फोट मामले में वर्ष 2012 में गिरफ्तार आतंकवादियों से जो सूचना मिली थी उसके मुताबिक इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने मुंबई, हैदराबाद, बोधगया जैसे शहरों में  रेकी की थी। इसी जानकारी के आधार पर बिहार पुलिस को अलर्ट किया गया था लेकिन उस अलर्ट को शायद ध्यान से नहीं समझा गया, और 7 जुलाई को सुबह आंतकवादियों ने मंदिर परिसर में कुल नौ विस्फोट किये जिनमें से चार विस्फोट महाबोधि मंदिर परिसर में हुए। हालांकि मंदिर की मूर्ति को निशाना नहीं बनाया गया रविवार होने के कारण  श्रद्वालुओं की संख्या कम थी इसलिये ज्यादा मौतें नहीं हुई लेकिन जो भी हादसा हुआ वह शांति के प्रतीक बुद्ध पर तालिबान द्वारा किये गये हमले के समान ही था। म्यांमार में जिस तरह मुसलमानों के ऊपर बौद्ध समुदाय द्वारा हमले किये जा रहे हैं उसके चलते भारत में प्रतिक्रिया की सम्भावना बढ़ गई है। मंदिर से चार किलोमीटर दूर एक होटल के पास भी बम बरामद हुये हैं इससे पता चलता है कि आतंकवादी ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना चाहते थे। जिस तरह की सामग्री मिली है वह इंडियन मुजाहिदीन द्वारा उपयोग में लाई जाती है। बिहार सरकार ने इस हमले की जांच का दायित्व एनआईए को सौप दिया है लेकिन हमले पर राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट करते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी ने नीतीश कुमार को सबक सिखाने की बात कही और अगले दिन विस्फोट हो गया। दिग्विजय सिंह के इस कथन में जो कुछ छुपा है वह आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन विस्फोट के बाद राजनीति दलों से जिस तरह की जिम्मेदारी भरी भूमिका की उम्मीद की जा रही थी वह देखने में नही आई। सभी राजनीतिक दलों ने राजनीति लाभ लेने की कोशिश की  भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने लगातार विरोध किया बिहार बंद का आयोजन भी किया गया। लालू प्रसाद यादव ने कहा कि बिहार में सुरक्षा व्यवस्था असफल हो गई है। उधर भारतीय जनता पार्टी ने भी बिहार सरकार पर निशाना साधा एनआईए को जाँच सौपे जाने के बाद बिहार सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में इस मंदिर की सुरक्षा करने में समर्थ नहीं है।
इस बीच बिहार में सियासी माहौल गरमा गया है नरेन्द्र मोदी ने बिहार के भाजपा कार्यकर्तांओं को मोबाइल पर संबोधित करके नई तकनीक से चुनावी अभियान का श्रीगणेश किया है । प्रदेश में भाजपा और जनता दल यूनाईट की दोस्ती टूटने का राजनीतिक असर देखने के लिए नरेन्द्र मोदी ने जानबूझकर बिहार के मुख्यमंत्री पर निशाना साधा और कहा कि बिहार कभी भी नीतिश को भाजपा से रिश्ते तोडऩे के लिये माफ नहीं करेगा। देखना यह है कि मोदी की यह पहल बिहार के भाजपा कार्यकर्ताओं को किस तरह प्रेरित करती है। लेकिन कांग्रेस ने मोदी को घेरना षुरू कर दिया है । इशरत जहां मामले में जिस तरह नीतीष और कांग्रेस ने सुर मिलाए है और जिस तरह सीबीआई ने घेराबंदी करने की कोशिश की है उसे देख कर लगता है कि मोदी के राजीतिक प्रभाव को कांग्रेस पचा नहीं पा रही है और उसका प्रयास है कि मोदी गुजरात तक ही सीमित रह जाएं।

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