18-Jan-2019 06:50 AM
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शेख हसीना एक बार फिर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री तो बन गई हैं, लेकिन इस बार उनकी जीत काफी विवादों में है। उनकी पार्टी पर चुनाव के दौरान मतदान में धांधली करने और लोगों को डराने-धमकाने व हिंसा के जरिए वोट हासिल करने के आरोप लगे हैं। हालांकि पार्टी और उसकी मुखिया ने इन तमाम आरोपों से इनकार किया है।
शेख हसीना का सत्ता में आना भारत के लिहाज से काफी अच्छी खबर मानी जा रही है। उन्हें भारत का समर्थक और खालिदा जिया को पाकिस्तान का पक्षधर माना जाता है। भारत को डर था कि अगर खालिदा की पार्टी बीएनपी सत्ता में आती है तो वह उन आतंकी संगठनों को फिर बढ़ावा देगी जिन पर हसीना ने लगाम कस रखी थी। 2001 से 2006 के दौरान खालिदा जिया की सरकार में ये आतंकी संगठन पूरी आजादी के साथ भारत के उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते थे। बताया जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारों पर ये भारत के इन क्षेत्रों में उग्रवादियों की मदद किया करते थे। लेकिन, 2009 में शेख हसीना ने बांग्लादेश के सीमाई इलाकों में उग्रवादियों और आईएसआई समर्थित इस्लामिक आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आदेश दे दिया था। इसके बाद भारत के असम, त्रिपुरा और मेघालय में सक्रिय उग्रवादियों को बांग्लादेश से मदद मिलनी बंद हो गई और मजबूर होकर उन्हें सरकार से बातचीत के लिए आगे आना पड़ा।
एक और नजरिये से भी भारत के लिए हसीना की सत्ता में वापसी राहतभरी खबर है। श्रीलंका, नेपाल और म्यांमार की तरह चीन बांग्लादेश में भी अपनी वन बेल्ट, वन रोड परियोजना को बढ़ावा देना चाहता है। लेकिन शेख हसीना भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर चल रही हैं। अगर बीएनपी सत्ता आ जाती तो बांग्लादेश के चीन के पाले में चले जाने की आशंका थी। बांग्लादेश में हुए आम चुनावों में प्रधानमंत्री शेख हसीना की ऐतिहासिक जीत हुई है। उन्होंने प्रचंड बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार बांग्लादेश की सत्ता में वापसी की है। शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 300 संसदीय सीटों में से 288 पर कब्जा जमा लिया है। गठबंधन में आवामी लीग को 259 सीटें मिली थीं और उसने इन सभी सीटों पर जीत हासिल की। इस आम चुनाव में विपक्ष एकजुट था और उसने जाटिया ओकया फ्रंटÓ नाम से गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन में पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी शामिल थी। लेकिन विपक्ष के संगठित होने के बाद भी यह गठबंधन केवल सात सीटें ही जीत सका जिसमें से पांच बीएनपी के खाते में गई हैं।
बांग्लादेश के इस चुनाव पर दुनियाभर में सवाल खड़े किये जा रहे हैं। इसकी पहली बड़ी वजह चुनाव नतीजों से जुड़े हैरान करने वाले आंकड़े हैं। इन चुनावों में 96 फीसदी से ज्यादा वोट आवामी लीग के नेतृत्व वाले गठबंधन को मिले हैं। जानकारों का मानना है कि किसी भी लोकतंत्र में इस तरह के चुनाव परिणाम आना लगभग असंभव है। इन लोगों की एक और दलील है कि 2014 में जब मुख्य विपक्षी दल बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था तब भी शेख हसीना को इतनी बड़ी जीत नहीं मिली थी। जबकि, उस चुनाव में आधे से ज्यादा सीटों पर केवल आवामी लीग के उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में थे। 2014 के आम चुनाव में शेख हसीना की पार्टी को 234 सीटें मिली थीं। हालांकि, इस बार भी चुनाव के दौरान लगभग सभी विश्लेषक हसीना की पार्टी का पलड़ा भारी बता रहे थे, लेकिन विपक्ष के एकजुट होने की वजह से इतनी बड़ी जीत की उम्मीद किसी को नहीं थी। बांग्लादेश की राजनीति पर नजर रखने वाले अमेरिका के इलिनॉइस विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ अली रियाज अलजजीरा से बातचीत में कहते हैं, यह एक चुनाव नहीं बल्कि चुनावी तमाशा था। पूरे बांग्लादेश में मतदान के दिन और उससे पहले क्या हुआ सभी ने देखा। मतदान केंद्र से विपक्षी एजेंटों को बाहर कर देना, बूथ कैप्चरिंग करना, इसे चुनाव नहीं कहा जा सकता है।Ó
धांधली का आरोप
बांग्लादेश में मतदान वाले दिन बड़े स्तर पर धांधली की खबरें भी सामने आई थीं। राजधानी ढाका में ही कई वोटरों का कहना था कि उन्हें आवामी लीग को वोट देने के लिए मजबूर किया गया। कई वोटरों ने अपने सामने धांधली किए जाने की भी बात कही है। कुछ लोगों का यह भी कहना था कि उन्हें मतदान केंद्र के अंदर धांधली के बारे में मीडिया से कुछ न कहने के लिए धमकाया गया था। चिटगांव में एक पोलिंग बूथ पर मतदान शुरू होने से पहले ही मत पेटियां भर चुकी थीं। यही नहीं मतदान वाले दिन सुबह-सुबह विपक्ष के लगभग पचास उम्मीदवारों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था।
- माया राठी