कंगाली में धंसा पाक
12-Feb-2019 08:51 AM 1234845
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान हाथ पैर तो बहुत मार रहे हैं, लेकिन नया पाकिस्तान बन नहीं पा रहा है, जिसका वादा उन्होंने किया था। हाई फाई विदेश दौरों और लंबे चौड़े दावों के बावजूद सच यही है कि जबसे इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से देश की और हालत पतली हो गई है। पाकिस्तानी स्टेट बैंक की रिपोर्ट कहती है कि बीते छह महीने के दौरान देश में होने वाले कुल विदेशी निवेश में रिकॉर्ड 77 प्रतिशत की गिरावट आई है। ऐसे में, पाकिस्तानी मीडिया में इमरान खान की नीतियों पर नुक्ता चीनी हो रही है। अहम बात यह है कि पाकिस्तान में होने वाला चीनी निवेश भी घट रहा है। इसके अलावा कुछ अखबारों ने पाकिस्तान के वित्त मंत्री असद उमर के इस बयान पर भी संपादकीय लिखी हैं कि भारत अपने निजी स्वार्थ छोड़े तो उसे भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) में शामिल होना चाहिए। पाकिस्तानी अखबार कह रहे हैं कि ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए। वैसे भारत तो खुद ही इस परियोजना का विरोधी है, इसलिए वो भला इसमें क्यों शामिल होने लगा। मतलब सूत ना कपास, जुलाहे से ल_म ल_ा। रोजनामा दुनिया ने देश के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की ताजा रिपोर्ट पर संपादकीय लिखी है जो कहती है कि बीते साल जुलाई से लेकर दिसंबर तक देश में होने वाले कुल विदेशी निवेश में 77 प्रतिशत की कमी आई है जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 19 प्रतिशत तक गिर गया है। अखबार कहता है कि इन छह महीनों के दौरान डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की कीमत में 30 प्रतिशत कमी आई है, जिसमें से ज्यादातर गिरावट पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की सरकार के शुरुआती पांच महीने के दौरान आई है। अखबार के मुताबिक, इमरान खान की सरकार ना तो विदेशी निवेश में कोई बढ़ोतरी कर पाई है और ना ही पाकिस्तान से होने वाले निर्यात को बढ़ाया जा सका है। अखबार की टिप्पणी है कि चुनाव से पहले पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की तरफ से जो मंसूबे पेश किए जाते रहे, अब पांच महीने गुजर जाने के बाद हथेली पर सरसों जमती दिखाई नहीं देती। अखबार के मुताबिक स्टेट बैंक की रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान के सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार चीन के निवेश में भी बीते छह महीने में कमी आई है। जंग के संपादकीय का शीर्षक है- विदेशी निवेश में रिकॉर्ड कमी। अखबार लिखता है कि नई सरकार की तमाम कोशिशों, मित्र देशों से बड़ी मदद हासिल करने में कामयाबियों और सरकार के लंबे चौड़े दावों के बावजूद कड़वी सच्चाई यही है कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अभी बहुत वक्त लगेगा और इसके लिए बहुत कुछ करना होगा। अखबार की राय में, अगर किसी को कोई भ्रम था, तो वो बहुत हद तक स्टेट बैंक की रिपोर्ट से दूर हो गया है। अखबार कहता है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए कि बीते छह महीने के दौरान देश में होने वाला विदेशी निवेश 77 प्रतिशत कम हो गया है। अखबार ने इसकी वजह पाकिस्तान में मची सियासी उथल पुथल को बताता है। अखबार कहता है कि यह उथल पुथल चुनाव से पहले ही शुरू हो गई थी और चुनाव के बाद नई सरकार बनने के बाद हालात सुधरे नहीं बल्कि बिगड़ गए। अखबार की राय में सरकार ने कई अच्छे कदम उठाए, लेकिन उनके वैसे नतीजे नहीं मिले जैसी कि उम्मीद थी। दूसरी तरफ, रोजनामा पाकिस्तान का संपादकीय है- भारत को सीपीईसी से दूर रखा जाए। अखबार ने लिखा है कि वित्त मंत्री असद उमर ने सीपीईसी का दायरा भारत तक बढ़ाने का इरादा जाहिर करते हुए कहा है कि भारत अपने निहित स्वार्थों से आगे बढ़ कर सोचे क्योंकि सीपीईसी 21वीं सदी में वैश्विक अर्थव्यवस्था का बुनियादी केंद्र होगा। अखबार कहता है कि चीन ने भारत को बहुत पहले ही वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा बनने की पेशकश की थी, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ना तो इसका हिस्सा बनने पर रजामंद हुए और ना ही उन्होंने चीन में इस विषय पर हुई कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। - माया राठी
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^