कोख के धंधे पर लगाम
18-Jan-2019 06:47 AM 1234803
लोकसभा ने सरोगेसी नियमन विधेयक-2016 को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक में देश में सरोगेसी के नियमों को तय करने, व्यावसायिक सरोगेसी पर पूरी तरह पाबंदी लगाने और सरोगेट माताओं के शोषण को रोकने के साथ-साथ उनके हितों की रक्षा करने संबंधी अनेक प्रावधान किए गए हैं। फिलहाल जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, बेल्जियम और नीदरलैंड जैसे देशों में व्यावसायिक सरोगेसी पूरी तरह प्रतिबंधित है। कृत्रिम रूप से संतान-जनन की सरोगेसी तकनीक आधुनिक विज्ञान की विशिष्ट खोज है। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए आशा की अंतिम किरण साबित हुई है, जिन्हें किसी कारणवश जीवन में संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। सरोगेसी का सामान्य अर्थ किराए की कोखÓ से है। यह सरोगेट बच्चे की इच्छा रखने वाले दंपति और एक महिला (सरोगेट मदर) के बीच एक तरह का समझौता है जिसमें महिला अपनी कोख किराए पर देने के लिए राजी होती है। इस प्रक्रिया में सरोगेसी क्लिनिक मध्यस्थता की भूमिका निभाते हैं। सरोगेसी विधि आइवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) तकनीक पर आधारित होती है। इसके तहत सरोगेसी अपनाने वाले पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु का कृत्रिम तरीके से निषेचन कराया जाता है और फिर निषेचित अंडे को सरोगेट मदरÓ के गर्भाशय में रख दिया जाता है। इस तरह शिशु का जन्म वास्तविक माता से इतर एक अन्य महिला की कोख से होता है। भारत में सरोगेसी का प्रचलन 2002 से है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहली बार 2008 में कानूनी मान्यता दी थी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि केवल डेढ़ दशक में भारत अंतरराष्ट्रीय जगत में सरोगेसी का बड़ा केंद्र बन गया। सरकार के मुताबिक देश में सरोगेसी का सलाना कारोबार लगभग दो अरब डॉलर का है। देश में गुजरात और महाराष्ट्र सरोगेसी के मामले में शीर्ष दो राज्य हैं। भारत में सरोगेसी तकनीक का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि भारत में होने वाली सरोगेसी का लगभग आधा हिस्सा विदेशी दंपतियों का होता है। भारत में सरोगेसी तकनीक दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पांच से दस गुना तक सस्ती है और यहां अच्छे डॉक्टरों से लैस विश्वस्तर के आइवीएफ केंद्र भी हैं। वहीं, देश में गर्भ धारण करने के लिए कमजोर वर्ग की असहाय महिलाएं भी आसानी से उपलब्ध हैं और यहां इस संबंध में कठोर कानून के न होने की वजह से सरोगेसी के प्रति विदेशियों में गजब का आकर्षण बना हुआ है। विदेशी भारत में सरोगेसी को चिकित्सा पर्यटन के तौर पर देखते रहे हैं। लेकिन अन्य देशों की तरह अब यहां भी विदेशियों के लिए सरोगेसी अपनाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की तैयारी है। इससे भारत को सरोगेसी का हब बनने से रोका जा सकेगा और सरोगेट माताओं के शोषण पर भी रोक लग सकेगी। सरोगेसी नियमन विधेयक-2016 के कानून बन जाने के बाद देश में किसी महिला को व्यावसायिक उद्देश्य से सरोगेट मदर बनने का कानूनी अधिकार नहीं होगा। हां, महिलाएं किसी जरूरतमंद विवाहित निसंतान दंपति के लिए परोपकार के तहत कोख किराए पर दे सकती हैं। नए प्रस्तावित कानून के मुताबिक सरोगेसी धारण करने वाली महिलाएं जीवन में एक ही बार ऐसे गर्भ धारण कर सकती हैं। अत्यधिक लाभ की आशा में यह गर्भ धारण पहले चार से पांच बार तक किया जाता था, जिससे महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर हो जाती थीं। लेकिन अब एक महिला अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार ऐसे गर्भ को धारण कर सकती है। सिर्फ यही नहीं, सरोगेट महिला बनने के लिए उसका विवाहित होना और एक स्वस्थ्य बच्चे की मां होना भी जरूरी होगा। वहीं, सरोगेसी का लाभ उठाने वाले दंपति की शादी को पांच वर्ष होना जरूरी है। लेकिन यह देश में बड़ा कारोबार का रूप ले चुका है। -बिन्दु माथुर
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