18-Jan-2019 06:29 AM
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मप्र का वन क्षेत्र माफिया और तस्करों को अड्डा बन गए हैं। प्रदेश का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जहां इनका आतंक नहीं है। पिछले कुछ माह से प्रदेश में सागौन के पेड़ों पर जमकर आरी चल रही है। वन माफिया ने सागौन चोरी का नया तरीका इजात कर लिया है। पहले पेड़ों को सूखाया जा रहा है फिर उसको काट कर बेचा जा रहा है। इस तरह के प्रमाण प्रदेश के कई वन क्षेत्रों में मिले हैं।
सारणी के मछली कांटा क्षेत्र से जल विद्युत गृह पहुंच मार्ग किनारे सूखे व कटे सागौन के विशालकाय पेड़ इस विनाश की कहानी कह रहे हैं। यहां एक ही स्थान पर करीब आधा दर्जन सागौन के विशालकाय पेड़ सूखे हैं। वहीं कुछ ही दूरी पर सागौन के कटे पेड़ों के ठूंठ और अवशेष उपलब्ध है। खास बात यह है कि जो पेड़ सूखे हैं। उनमें नुकीली लकडिय़ों से कैमिकल भरा गया है। जिस प्रकार नुकीली लकड़ी सूखी है। उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि करीब चार माह पहले पेड़ों को सूखाने के इंतजाम किए होंगे। जबकि जो पेड़ कटा है। वह एक पखवाड़ा पुराना प्रतीत हो रहा है। अचरज की बात तो यह है कि जहां सागौन के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चल रही है। वहां से वन विभाग की कालोनी और एसडीओ फारेस्ट का बंगला महज 500 मीटर की दूरी पर है। ऐसे में सागौन की कटाई होना वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं।
इसी तरह मंडला जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर अंजनिया रेंज के अंतर्गत रामनगर वृत की मधुपुरी बीट में सागौन के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई लगातार जारी है। यहां लगे वर्षों पुराने सागौन के कीमती आधा दर्जन से अधिक वृक्षों को सागौन चोरों द्वारा तस्करी के चलते काटकर धरासायी कर दिया गया है। कुछ पेड़ जंगल में ही कटे पड़ें है तो कुछ वृक्षों के मात्र ढूंट ही काटे जाने की गवाही दे रहे हैं। ढूंट के आसपास पड़े पत्ते और टाहनियों से यह साबित हो रहा है कि कटाई दो-चार दिन के अंदर की गई है। वन विभाग की लापरवाही के चलते खुलेआम हरे भरे पेड़ों को वन माफियाओं के द्वारा काटा जा रहा है। वन विभाग द्वारा सुरक्षा श्रमिकों को नर्सरी में लगा कर रखा गया है। जिससे जंगलों की गस्ती नहीं हो पा रही है। ग्राम खेरोटोला व गुरारखेड़ा के वन माफिया निर्भिक होकर जंगलों में अवैध कटाई के साथ-साथ अवैध अतिक्रमण भी कर रहे हैं।
वहीं पन्ना-दमोह की सीमा पर भी अवैध वन कटाई चल रही है। कुम्हारी वन परिक्षेत्र की पन्ना वार्डर पर खुलेआम पेड़ों की अवैध कटाई हो रही है। साइकिल, बैलगाडिय़ों से लकड़ी का परिवहन हो रहा है। इस परिक्षेत्र के गुदरी से खुलेआम जलाऊ लकड़ी जंगल से बाहर होती हुई दिखाई दे जाती है। ठंड के सीजन में जंगली लकड़ी की ज्यादा खफत बढ़ गई है। भले ही सरकार ने जंगलों को बचाने के लिए उज्जवला योजना के अंतर्गत गैस सिलेंडर बांट दिए हों, लेकिन जंगलों से जलाऊ लकड़ी का परिवहन लगातार देखा जा रहा है। दमोह-पन्ना वार्डर पर स्थिति यही बन रही है कि जंगल में दिन प्रतिदिन खेती कार्य प्रगति पर चल रहा है। गुदरी, मझौली, बमनी जंगल में मंगल होकर खेती की जा रही है। सगौनी रेंजर संतोष सिंह चौहान का कहना है कि मैं दिखाता हूं अगर अवैध रूप से वनों की कटाई हो रही है, तो उस पर अंकुश लगाया जाएगा।
बम्होरी माला सगौनी रेंज के इमलिया मानगढ़ के जंगल में सागौन की लकड़ी चोरी करने वाले चोरों के हौंसले दिन प्रतिदिन बुलंद होते जा रहे हंै। सागौन की लकड़ी काटते हैं और रात होते ही सागौन की लकड़ी को गांव-गांव जाकर रात में ही ठिकाने लगा देते हैं। अधिकारियों द्वारा जंगल की निगरानी न करने के कारण चोर गिरोह सक्रिय होता जा रहा है। जंगल से सागौन की लकड़ी चोरी होने की मुख्य वजह जंगल अधिकारियों व कर्मचारियों से सूना रहता है।
यही नहीं बीते आठ दस वर्ष पहले वनीकरण के तहत ग्राम पंचायतों में लाखों खर्च कर पौधारोपण कार्य किए गए थे। जिनमें अधिकांश ग्राम पंचायत में तो एक भी पौधा जीवित दिखाई नहीं देता है। जहां कहीं पौधों को बचा लिया गया। वहां अब उजाडऩे का काम शुरू हो गया है। पाली ग्राम पंचायत अंतर्गत खड़पुरा गांव के ग्रामीणों की मानें तो यहां की नर्सरी में कई आंवले के पेड़ तो फल तक देने लगे हैं, लेकिन सुरक्षा के अभाव में उजड़ रहे है। यहां लगे बांस के पेड़ों को भी लोग काट कर उजाड़ रहे हंै। अगर इन पेड़ों की सुरक्षा की जाए तो पंचायत को आय का साधन बन सकता है।
बाजार में भारी डिमांड
सागौन इमारती लकड़ी है। इससे निर्मित दरवाजा-खिड़की, फर्नीचर आदि वर्षों टिकते हैं। इसलिए बाजार में सागौन की मांग है। टाल पर जो चरपट पांच हजार रुपए की आती है। वहीं तस्कर 1500 से 2000 रुपए में बेच जाते हैं। क्षेत्र में कई दुकानदार ऐसे भी है जो चोरों से लकड़ी खरीदकर रातों रात फर्नीचर निर्माण कराकर पक्के बिल पर विक्रय कर देते हैं। इन दिनों प्रधानमंत्री आवास निर्माण के दौरान मकानों में चौखट, दरवाजा, खिड़की आदि की डिमांड बढ़ गई। वही ग्रेविल भी नलकूप खनन में केसिंग पाइप डालने के बाद बचे खाली स्थान को भरने के काम आती है। इसमें बाजार में कीमत 6 से 7 हजार रुपए ट्राली है। जबकि आंकलन किया जाए तो महत 1 हजार से 1500 रुपए ट्रॉली होती है। मजदूरी का फायदा उठाकर पांच गुना मुनाफा कमाया जाता है।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया