18-Jan-2019 06:23 AM
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मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ कहने को भले ही बुजुर्ग हैं लेकिन पद संभालते ही उन्होंने जिस तरह से त्वरित फैसले लिए हैं उससे उनकी इच्छाशक्ति युवा प्रतीत हो रही है। अपने करीब एक माह के कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस के वचन पत्र की कई घोषणाओं को अमलीजामा पहनाकर यह संकेत दे दिया है कि सरकार अपने वादे को पूरा करने के लिए गंभीर है। 17 दिसंबर को पदभार ग्रहण करते ही किसानों की कर्जमाफी कर उन्होंने इसकी शुरूआत की और अब तक आधा दर्जन से अधिक वादों को पूरा करने की कवायद शुरू करा दी है। सत्ता की बागडोर संभालते ही उन्होंने संदेश दिया है कि वह राज्य में ठीक उसी तरह धुआंधार बल्लेबाजी करने जा रहे हैं, जैसे कोई युवा खिलाड़ी अपने करियर की शुरुआत में करता है।
राज्य में डेढ़ दशक बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई है। कमलनाथ के कुर्सी संभालने से पहले कई तरह के सवाल थे, जो राजनीति में लाजिमी भी हैं। राज्य लगभग पौने दो लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा है। ऐसे में उन वादों पर अमल कैसे संभव होगा, जो कांग्रेस ने वचन-पत्र में किए हैं। कमलनाथ ने सत्ता की कमान संभालते हुए एक तरफ किसानों की कर्जमाफी का फैसला कर डाला तो दूसरी ओर कन्या विवाह की अनुदान राशि बढ़ाकर 51 हजार रुपये कर दी। उन्होंने प्रदेश में सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने वाले उद्योगों में 70 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षित करने का भी निर्णय लिया। इतना ही नहीं अफसरों को भी चेतावनी भरे लहजे में कह दिया कि गांव, विकासखंड व जिलों की समस्याएं भोपाल के मंत्रालय या वल्लभ भवन तक नहीं आनी चाहिए। ऐसा हुआ तो इसके लिए जिम्मेदार अफसर को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कमलनाथ ने साफ तौर पर कहा है कि भाजपा यह मानती है कि उसने कांग्रेस को खाली खजाना सौंपा है, मगर कांग्रेस सरकार अपने वचन पर खरी उतरेगी।
दरअसल कमलनाथ की राजनीति का अंदाज अन्य नेताओं से अलग है। कमलनाथ ने दूसरे प्रदेश से आकर छिंदवाड़ा को अपना गढ़ बना लिया है, अब छिंदवाड़ा के परिवारों के नेता बन गए हैं। कमलनाथ की कार्यशैली जल्द फैसले करने की रही है, राज्य की कमान संभालते ही वही संदेश देने की उन्होंने कोशिश की है। कमलनाथ का चुनाव लडऩे का मामला हो या विकास की बात, हर मसले पर वे अपनी ही तरह से सोचते हैं और किसी को भी नाराज करने में भरोसा नहीं करते। यही उनकी सफलता का राज है। कमलनाथ के स्तर की राजनीतिक और प्रशासनिक समझ का नेता फिलहाल राज्य में दूसरा आसानी से खोजा नहीं जा सकता। राज्य में चुनौतियां बहुत हैं, अब कमलनाथ की असली परीक्षा का समय आ गया है।
राजनीति में जनमानस के बीच बन रही अवधारणा काफी मायने रखती है और यदि एक बार कुछ सवाल उठने लगें तो उनका समाधान जितनी जल्दी हो वह कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार के लिए नितान्त आवश्यक है। यह इसलिए जरूरी है कि तीन माह के भीतर लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं और कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में कम से कम 20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य उस दशा में ही पूरा हो सकता है जब जनता के मन में सरकार की स्थिरता को लेकर जो सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं उनका समाधान न केवल हो बल्कि इस ढंग से हो कि लोगों को लगे कि पार्टी में एकजुटता है और सब कुछ ठीक-ठाक है। जनधारणा बन गयी है कि कांग्रेस में काफी असंतोष है, पदों को लेकर खींचतान है और कुछ विधायक रूठे हुए हैं तो बसपा एवं सपा कभी भी अपना समर्थन वापस ले सकती हैं। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि उनकी सरकार की स्थिरता को लेकर जो वातावरण बनाया जा रहा है उसे वे बदलें। वैसे भी निर्दलियों, सपा-बसपा की बैसाखियों पर सरकार टिकी हुई है इसलिए अधिक सावधानी की जरूरत है।
कमलनाथ को फूंक-फूंक कर कदम रखने की इसलिए भी आवश्यकता है क्योंकि मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में पहली बार सत्ताधारी दल की अपनी और विपक्ष की अपनी ताकत के बीच केवल पांच विधायकों का फासला है। विपक्षी बेंचों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई धाकड़ चेहरे हैं और उनका मनोबल भी विधायक दल की संख्या को देखते हुए बढ़ा हुआ है। वैसे वचनपत्र की पूर्ति की दिशा में सरकार ने तेजी से कदम उठाये हैं लेकिन कांग्रेस में जिस तरह की खींचतान के समाचार सामने आये हैं और उससे जो माहौल बन रहा है उसे बदलने की दिशा में कितने कारगर कदम उठे हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस पार्टी के भीतर और सहयोग दे रहे दलों तथा निर्दलियों के बीच केमेस्ट्री कैसी रहती है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रादेशिक फलक पर हाशिए में पड़ी और गुटों व धड़ों में बंटी कांग्रेस को एकजुट कर 15 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा के हाथों से सत्ता छीनकर कांग्रेस का राजनीतिक वनवास तो खत्म करा दिया है, लेकिन अब चुनौती उससे बड़ी है क्योंकि कांग्रेस सत्ता में हैं और लोकसभा चुनाव की चुनौती सिर पर है, ऐसे में पार्टी को एकजुट रखने का करिश्मा कमलनाथ को दिखाना होगा, जो किसी भी रूप में अपने आप में आसान टास्क नहीं है। खासकर उन्हें अपने समर्थकों, ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों व दिग्विजय सिंह के समर्थकों को न केवल साधकर रखना है बल्कि इन तीनों बड़े नेताओं के आपस में रिश्ते मधुर हैं और कोई मतभेद नहीं है ऐसा भाव आम जनमानस में पैदा करना भी सबसे बड़ी चुनौती है। जिस तेजी से कमलनाथ ने चुनाव में मतदाताओं से किए गए वायदों के वचनपत्र को शपथ लेने के कुछ घंटों के अन्दर ही दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति से अमल में लाने की पहल करते हुए किसानों की कर्जमाफी सहित कुछ अहम् फैसले लिए उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आगाज अच्छा है तो अंजाम भी अच्छा होगा। निर्णय तो रोज हो रहे हैं लेकिन निर्णय लेते समय इस बात की भी सावधानी जरूरी है कि कोई ऐसा निर्णय जल्दबाजी में न हो जिसका राजनीतिक फायदा उठाते हुए कांग्रेस की घेराबंदी करने का अवसर भाजपा के हाथ लगे।
भाजपा हाथ आये किसी भी मुद्दे को भुनाने की पूरी-पूरी कोशिश करेगी, जैसा कि वन्दे मातरम् गायन के मामले को लेकर हुआ और सरकार को यूटर्न लेना पड़ा, जिससे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा नेताओं को यह कहने का मौका मिला कि यह उनके दबाव का नतीजा है।
जिस तेजगति से कमलनाथ ने अपनी पारी की शुरुआत की है उससे आम जनमानस में यह अहसास होना लाजिमी है कि वे जो कहते हैं वह करते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालने के साथ ही उसमें जिस प्रकार एकजुटता और किलिंग स्टिंक्ट पैदा की उसी तर्ज पर अब वे व्यवस्था में बदलाव का अहसास आमजन को कराने का बीड़ा उठाये हुए हैं। कमलनाथ के सामने पहली सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस की सरकार बनाना थी तो अब आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अधिक से अधिक सीट दिलाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। सत्ता परिवर्तन के साथ ही व्यवस्था में बदलाव का वाहक उन्हें बनना होगा और इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती मंत्रालय से लेकर निचले स्तर तक नौकरशाही की सुस्ती को चुस्ती में बदलने उन्हें अपनी महारत दिखाना होगी। कमलनाथ के पास दीर्घ प्रशासनिक अनुभव है, विभागों पर उनकी पकड़ रही है और वे सूझबूझ के धनी हैं इसलिए उनसे यह उम्मीद की जा सकती है कि वे इसे दूर कर प्रशासकीय मिशनरी को जनोन्मुखी बना सकेंगे। कमलनाथ ने साफ कहा है कि वे अधिकारों के केंद्रीयकरण में नहीं बल्कि विकेंद्रीयकरण में भरोसा करते हैं। कमलनाथ की यही सोच वास्तव में लोकतांत्रिक प्रणाली की जीवनदायिनी शक्ति है।
पहले भाजपा के चहेते, अब कांग्रेस सरकार की भी पसंद
कमलनाथ सरकार ने प्रशासनिक फेरबदल में भी अधिक भेदभाव नहीं दिखाया। अभी हाल ही में सरकार ने आइपीएस अफसरों के तबादले किए। इसमें ऐसे अफसरों को भी बेहतर पोस्टिंग दी गई है, जो भाजपा सरकार के समय चहेते थे। दरअसल, चुनिंदा आइपीएस अफसर भाजपा सरकार के समय हमेशा मलाईदार पदों पर रहे और अब कांग्रेस सरकार की पसंद में भी शामिल हैं। इनमें आइपीएस मोनिका शुक्ला को 25वीं बटालियन भोपाल से रायसेन एसपी बनाकर भेजा गया है। वे भाजपा सरकार में भी पावरफुल थी और अब भी उन्हें एसपी बनाया गया है। उनके पति आइपीएस शशिकांत शुक्ल शिवराज के नजदीक में शुमार है। इसी तरह भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार के करीबी माने जाने वाले आरआरएस परिहार को फिर एसपी बनाया गया है। इसके अलावा नीमच से मंदसौर एसपी टीके विद्यार्थी भी भाजपा के करीबी रहे हैं। इसके अलावा दो साल पहले बैतूल जिले की कमान संभालने वाले पुलिस अधीक्षक डीआर तेनीवार को छिंदवाड़ा एसपी बनाकर नई सरकार ने पुरस्कृत किया है। इसे उनके द्वारा निष्पक्ष चुनाव कराने का पुरस्कार माना जा रहा है। छिंदवाड़ा मुख्यमंत्री का गृह जिला है। इंदौर के चर्चित आबकारी घोटाले के प्रमुख आरोपियों में शुमार सहायक आबकारी अधिकारी संजीव दुबे को कमलनाथ सरकार ने देवास से हटाकर मलाईदार पोस्टिंग वाले जिला धार में पदस्थ कर दिया है। जो इस बात के संकेत हैं कि सरकार ने प्रशासनिक जमावट में भेदभाव नहीं किया है।
- ए. राजेन्द्र