कर्जमाफी या छलावा
18-Jan-2019 06:25 AM 1235020
किसान और कर्जमाफी भारतीय राजनीति में नेताओं के लिए चुनाव जीतने का ऐसा ब्रह्मास्त्र बन चुका है, जो हमेशा निशाने पर लगता है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों की कर्जमाफी का ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि किसानों ने मप्र-छत्तीसगढ़ में 15 साल से जमी भाजपा की सरकार को उखाड़ फेंका और राजस्थान में वापसी करा दी। किसानों ने अपना थोकबंद वोट देकर ऐसा इसलिए किया की उसके सभी कर्ज माफ हो जाएंगे। लेकिन तीनों राज्यों की सरकारों ने केवल फसल ऋण माफ किया वह भी एक सीमित राशि तक। ऐसे में किसान अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। ऐसे में पूर्व के अनुभवों के आधार पर कुछ सवाल उभर कर सामने आ रहे हैं कि क्या कर्जमाफी किसानों की समस्या का स्थाई समाधान हो सकता है, कर्जमाफी के फैसलों का देश या प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा और सबसे अहम कि आज तक हुई कर्जमाफी से कितने किसानों की किस्मत बदली है। चुनावी वादों को पूरा करने के लिए साल 2014 से अब तक राज्य सरकारों पर करीब 2 लाख 44 हजार करोड़ का अतरिक्त भार पड़ चुका है, लेकिन किसानों की समस्याएं जस की तस हैं। जय किसान ऋण मुक्ति योजना मध्यप्रदेश सरकार ने अपने वचन पत्र पर अमल करते हुए शासन द्वारा पात्र पाए गए किसानों के दो लाख की सीमा तक बकाया फसल ऋण माफ करना शुरू कर दिया है। इसके लिए 15 जनवरी को जय किसान ऋण मुक्ति योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत सरकार का दावा है कि शपथ ग्रहण के 67 दिनों में ही किसानों के ऋण खातों में ऋण माफी की राशि जमा करानी शुरू हो जाएगी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 54.35 लाख किसानों के लगभग 58,755 करोड़ का फसल ऋण 31 मार्च 2018 की स्थिति में बकाया है। इसमें से 36.82 लाख लघु एवं सीमांत किसान हैं। सरकार ने कर्जमाफी के भुगतान में लघु एवं सीमांत किसानों की ऋण माफी को प्राथमिकता दी है। सरकार जहां अपने इस कदम को क्रांतिकारी बता रही है वहीं विपक्ष और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों की समस्या का यह असली समाधान नहीं है। वादे हैं वादों का क्या? पहले बात करते हैं चुनावी वादे की। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने घोषणा की थी कि हमारी सरकार बनते ही किसानों की कर्जमाफी की जाएगी। इससे किसानों में यह संदेश गया था कि उनका हर प्रकार का कर्जा माफ हो जाएगा। लेकिन सरकार केवल ऋण माफ कर रही है वह भी दो लाख की सीमा तक ही। ऐसे में इस योजना का लाभ सभी किसानों को नहीं मिलेगा। कांग्रेस प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस ने किसानों के साथ छलावा किया है। उसे किसानों के हर कर्ज को माफ करना चाहिए। वहीं कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां किसानों के साथ हमेशा छलावा करती रहती हैं। वह कहते हैं कि कर्जमाफी किसानों की समस्या का सही समाधान नहीं है। इससे किसानों को क्षणिक लाभ तो मिलता है, लेकिन समस्या जस की तस रह जाती है। नीतियां अमीर किसान पर केंद्रित किसान नेता कहते हैं कि सरकारों की अधिकांश नीतियां अमीर किसानों पर केंद्रित रहती हैं। इसलिए इसका फायदा अधिकांश किसानों को नहीं मिल पाता है। आज इतनी बड़ी असामनता के बाद भी देश की नीतियों में अमीर किसान ही केंदित क्यों है। आज देश में 85 प्रतिशत किसानों के पास कुल आमदनी का 9 प्रतिशत हिस्सा है वहीं 15 प्रतिशत किसानों के पास 91 प्रतिशत आमदनी का हिस्सा है तो इस असामनता पर हम चुप क्यों है, क्योंकि न ही नीतियों में उन किसानों को जगह दें, जिनके पास जमीन छोटी है। पिछले वर्ष बैंक द्वारा 615 उद्योगपति किसानों को 60 हजार करोड़ का क्रॉप लोन दे दिया था, जबकि आज देश में सीमांत और लघु किसान को संस्थागत लोन मिल ही नहीं रहा है जबकि इतने बड़े लोन के करोड़ों किसानों की खेती को संबल मिलता। जो लोग खेती में काम करते हैं वो आज देश को अच्छा उत्पादन करके दे रहे बाकि जो खराब या हल्की गुणवत्ता का बचा हुआ उत्पादन स्वयं खा रहे हैं यह वास्तविकता है। व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी अगर सरकार वास्तव में किसानों की समस्याओं का समाधान करना चाहती है तो उसे अपनी व्यवस्थाओं में बदलाव करना होगा। योजना आयोग के पूर्व अध्यक्ष सोमपाल शास्त्री कहते हैं कि सबसे पहले मंडी एक्ट में बदलाव करना होगा। सरकारी के साथ ही निजी मंडियां खोलने की जरूरत है। इससे किसानों को अपने उत्पाद को अच्छी कीमत पर बेचने का अवसर बढ़ेगा। सरकार को अनाज पर से निर्यात की पाबंदियां हटा देनी चाहिए। वह कहते हैं कि अनाज के निर्यात पर पाबंदी उस समय लगाई गई थी जब फॉरेन एक्सचेंज की व्यवस्था नहीं थी। अब ऐसी समस्या नहीं है इसलिए अनाज के निर्यात से पाबंदी हटानी चाहिए ताकि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट से जुड़ाव का लाभ किसानों को मिल सके। वह कहते हैं कि आंकड़े गवाह हैं कि हमारे पास पर्याप्त खाद्यान्य है ऐसे में उसका विदेशों में व्यापार होना चाहिए। शास्त्री कहते हैं कि सरकार ने गन्ने की बिक्री पर भी बाध्यता लगा रखी है। गन्ना किसानों को अपने पास की चीनी मील को ही गन्ना बेचने की बाध्यता है। ऐसे में चीनी मील मालिक अपनी मर्जी का भाव देकर किसानों का गन्ना खरीदते हैं। इसके साथ ही सीरा की बिक्री पर से भी पाबंदी हटानी चाहिए। उसे खुले बाजार में बिकने देना चाहिए। ऐसा करने से किसानों की कृषि आय में वृद्धि होने की संभावना है। जब कृषि आय में वृद्धि होगी तो किसान अपने कर्ज चुकाएंगे और कर्जमाफी के लिए बोलेंगे ही नहीं। वह कहते हैं कि हमारे देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद के लिए अपर्याप्त आधारभूत संरचना है। सरकार को इसे दुरुस्त करने की जरुरत है। फसल की ब्रॉडिंग भी जरूरी भारत में किसानों की फसल को सब धान बाईस पसेरी की नजर से देखा जाता है। यानी किसान के हर उत्पाद को एक जैसा माना जाता है। जबकि ऐसा नहीं है। मध्यप्रदेश में उत्पादित होने वाले गेहूं की कई किस्में ऐसी हैं जो अत्यंत गुणकारी हैं। सरबती, कालापीपल आदि गेहूं की ऐसी उच्च क्वालिटी की किस्में हैं जो पौष्टिकता से भरपूर हैं। इनमें 14-15 प्रतिशत प्रोटीन होता है। अगर सरकार इसकी ठीक से ब्रॉडिंग और मार्केटिंग करे तो यह 4-5 हजार रुपए क्विंटल बिक सकता है। लेकिन इन किस्मों को उत्पादित करने वाले किसान भी इन्हें औन-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं। सोमपाल शास्त्री कहते हैं कि मध्यप्रदेश में कई ऐसी फसलें होती हैं जिनमें प्रोटीन, ग्लूटेन, बीटा कैटोरिन आदि भरपूर होते हैं। अगर इनकी ठीक से ब्रॉडिंग की जाए तो किसानों को भरपूर लाभ मिल सकता है। देश में कुल फसल उत्पादन को जोड़ा जाए तो करीब 40 लाख करोड़ है, अगर यही वास्तविक लागत मूल्य से जोड़े तो करीब 60 लाख करोड़ हो सकती है। तो देश का किसान अपने अनाज को देश के कुल बजट के बराबर का हिस्सा देश को इनडायरेक्ट टैक्स के रूप सस्ता अनाज फल सब्जी दूध के रूप दे रहा है फिर क्यों जो उद्योगपति एमआरपी पर व्यापार करने वाले उनमें से चंद लोगो का 3.25 लाख करोड़ पिछले चार वर्ष में कर्जा माफ हुआ है? आज वो लोग किसानों की कर्ज माफी और लागत मूल्य पर बोल रहे हैं। जो अपने उत्पाद की एमआरपी स्वयं निर्धारित करते हैं और वो लोग बोल रहे हैं जिनको एक लाख करोड़ से ज्यादा का फायदा सातवें वेतन आयोग से मिला चुका है। देश का किसान कभी नहीं कहता है की इनकी एमआरपी की गणना ठीक नहीं है, वो कभी नहीं कहता की बेरोजगारों के देश में अब अधिकारियों की अधिकतम तनख्वाह निर्धारित हो जानी चाहिए तो फिर किसानों के लिए नकारात्मक भाव हमारे देश में क्यों? आज देश के किसानों को कर्जमाफी की जरुरत है, फसलों के लागत मूल्य की जरुरत है, हम सब जानते हैं कि देश में बेरोजगारी और भुखमरी एक बड़ी चुनौती है लोगों को भोजन देना देश का कर्तव्य है, इसका मतलब यह नहीं की सब का हर्जाना किसानों को उठाना पड़े, इसलिए किसान के नुकसान की भरपाई के लिए देश की सरकार को किसानों का कर्जा माफ करना चाहिए और किसानों की आय सुनिश्चित के लिए कदम उठाना पड़ेगा।
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