01-Jan-2019 10:33 AM
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मप्र में अंगद के पांव की तरह जमीं भाजपा सरकार को उखाडऩे के लिए कांग्रेस ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जो प्रयोग किया था वह सफल रहा। 15 साल बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई है। 114 कांग्रेसी विधायकों, चार निर्दलीय, 2 बसपाई और एक सपाई विधायक के सहयोग से बनी सरकार में पहले मंत्री और फिर विभाग के लिए जिस तरह की खींचतान देखने को मिली उससे सरकार के भविष्य को लेकर आशंका-कुशंका का माहौल है। इस सरकार में हर कोई असंतुष्ट नजर आ रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रबंधन के आगे असंतुष्टों का दांव काम नहीं कर पा रहा है। कमलनाथ अपने तरीके से हर असंतोष को संतोष में बदल रहे हैं।
चुनौती के बीच कई जोखिम
बहुमत की जिस कमजोर डगर पर कमलनाथ की सरकार को चलना है, उसमें किसी भी और समीकरण की तुलना में राजनीतिक समीकरण को साधना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। लगता है, इस चुनौती को साधने में कमलनाथ ने सधे हुए कदम उठाए हैं। इसलिए ऐसा पहली बार हो रहा है कि कमलनाथ के सारे 28 मंत्री केबिनेट स्तर के है। मध्यप्रदेश में शायद ही किसी ने मंत्रिमंडल का ऐसा गठन कभी देखा हो। नाथ के पास आप्शन बहुत सीमित थे। गुटबाजी चाहे जो हो जाए, कांग्रेस से अलग नहीं हो सकती। इसलिए नाथ ने सबको साधने के साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि उनकी नीयत किसी को निपटाने सुलटाने की नहीं है। इसलिए उन्होंने किसी भी मंत्री के साथ राज्यमंत्री का कोई फच्चर ही नहीं फंसाया। वरना मंत्री और राज्यमंत्री में एक क्लेश तो अधिकारों को लेकर होता ही है। और जिस गुट को राज्यमंत्री का पद मिलता, जाहिर है उसके नेता को यही अहसास होता कि उसे निपटाने की कोशिश की गई है। नाथ ने यह संदेह पनपने का कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा।
अब जातीय और क्षेत्रीय संतुलन की बात करें तो विंध्य में कमलनाथ क्या क्षेत्रीय संतुलन बिठाते। इसलिए बेहतर आप्शन के तौर पर कमलेश्वर पटेल का चयन ही ठीक था। लेकिन बिसाहुलाल सिंह को छोड़ देना लोगों को आश्चर्य में डाल रहा है। इसलिए भी इस बार विंध्य में अकेला अनूपपुर ही ऐसा जिला है, जहां कांग्रेस ने तीनों सीटे जीती हैं। अब मंत्रिमंडल ही ठाकुरों का लग रहा है। आखिर आठ मंत्री ठाकुर हैं तो कह सकते हैं कि के पी सिंह को उन्हें छोडऩा पड़ गया। वैसे सिंधिया के ग्वालियर और गुना से चार लोग मंत्रिमंडल में शामिल हैं। इसके अलावा डा. गोविंद सिंह और जयवद्र्धन सिंह दिग्विजय सिंह के कोटे से इसी अंचल के प्रतिनिधि हैं। इसलिए हो सकता है कि के पी सिंह सिंधिया के विरोध के कारण मंत्रिमंडल से बाहर रह गए हों, क्योंकि ग्वालियर से प्रधुम्न सिंह, लाखन सिंह, और गुना से महेन्द्र सिंह सिसोदिया और जयवद्र्धन सिंह भी ठाकुर ही हैं। भिंड से गोविंद सिंह भी वहीं है। इसलिए गुटबाजी और अपनों की पसंद से एक अनुभवी पीछे छूट गया।
मंत्रिमंडल का स्वरूप जोखिम भरा
नाथ मजबूत दिख रहे हैं या खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, यह वही जानें, लेकिन जय युवा आदिवासी संगठन के सर्वेसर्वा डा. हीरा अलावा को उन्होंने तवज्जो नहीं दी है। यह जयस का ही कमाल था कि निमाड़ में कांग्रेस के उम्मीदवार भारी भरकम अंतर से चुनाव जीते थे। चार-छह महीने बाद लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के लिए इस निर्णय का विपरीत परिणाम भी आ सकता है। यहां के आदिवासी भाजपा को वोट करना सीख गए हैं और इस बार जयस के कारण ही युवा आदिवासी भारी तादाद में भाजपा से विमुख हुआ है। हां, शिवराज की एक भूल से सबक लेते हुए नाथ ने इंदौर संभाग में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व प्रदान किया है। जातिगत समीकरण को लेकर नाथ के दिमाग में चाहे जो गणित रहा हो, किंतु ब्राम्हणों के मुकाबले ठाकुर चेहरों को मंत्री बनाकर उन्होंने बड़ा जोखिम उठाया है। जैन समाज का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व न होना भी चौंकाता है। यह सब प्रयोग नाथ ने उस सरकार को लेकर किए हैं, जिसके पास बहुमत के नाम पर निर्दलीय विधायक और सपा तथा बसपा का ही सहारा है। फिर भी नाथ ने एक ही निर्दलीय को मंत्री बनाया है। वो उनका प_ा ही है। जाहिर है कि जल्दी ही मंत्रिमंडल विस्तार का कदम उठाना होगा, ताकि शुरूआत में न बन सके संतुलन को लोकसभा चुनाव से पहले स्थापित कर दिया जाए। आज मंत्री बने चेहरों को लेकर एक सवाल सहज रूप से उठता है।
अनुभव व काबिलियत दरकिनार
मंत्रियों को विभाग बांटने को लेकर कांग्रेस के क्षत्रपों के बीच जारी दबाव-प्रभाव की राजनीति के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कल शाम अपने सभी 28 मंत्रियों को विभाग आवंटित कर दिए। विभाग आवंटन में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सीनियर-जूनियर का कांबीनेशन जरूर बनाया है लेकिन इसमें जूनियर, सीनियर से ज्यादा पॉवरपुल होकर उभरे हैं। सीनियर और 15 साल पहले दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे विधायकों को, जूनियर्स के मुकाबले अपेक्षाकृत कमजोर विभाग सौंपे गए हैं।
कमलनाथ के करीबी वरिष्ठ मंत्री बाला बच्चन विभागों के वितरण में सबसे ताकतवर बनकर उभरे हैं। उन्हें गृह और जेल विभाग के साथ-साथ मुख्यमंत्री से संबंद्ध किया गया है। इसका मतलब यह है कि मुख्यमंत्री ने जो विभाग अपने पास रखे हैं, बाला उनमें से कुछ विभागों को भी देखेंगे। विभागों के आवंटन के बाद साफ हो गया है कि प्रदेश की कमलनाथ सरकार युवाओं के दम पर चलेगी। इन युवा मंत्रियों की सबसे बड़ी चुनौती डिलेवरी सिस्टम को सुधारने की होगी।
मध्यप्रदेश की राजनीति के सबसे ज्वलंत मुद्दे किसान और उनसे जुड़े सबसे अहम विभाग किसान कल्याण एवं कृषि विकास तथा खाद्य-प्रसंस्करण एवं उद्यानिकी में प्रदेश की नई कांग्रेस सरकार ने नया प्रयोग किया है। सरकार किसी की भी रही हो, इन विभागों की कमान वरिष्ठ और अनुभवी मंत्रियों के हाथों में रही, लेकिन इस बार महज 36 की उम्र में मंत्री बने सचिन यादव को यह दोनों विभाग सौंपे गए हैं।
32 साल के मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन कमलनाथ कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री हैं। दूसरी बार चुनाव जीते जयवर्धन जितने जूनियर हैं, उन्हें उतना ही भारी-भरकम विभाग मिला है। करोड़ों के बजट वाली केन्द्र सरकार की स्मार्ट सिटी और अमृत जैसी योजनाओं के बीच इस विभाग के मायने ज्यादा बढ़ गए हैं। शहरी विकास प्रदेश के कोर चुनावी मुद्दों में रहा है। इस लिहाज से जयवर्धन को बड़ी जिम्मेदारी मिली है। शहरी विकास की योजनाओं का लाभ दिलाना और डिलेवरी सिस्टम को दुरूस्त करने की चुनौती उनके सामने होगी। दूसरी तरफ अगले साल प्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव भी होने हैं। वर्तमान में प्रदेश की 14 नगर निगमों में बीजेपी के महापौर हैं। इन चुनावों में कांग्रेस का परचम फहराए, इस लिहाज से भी जयवर्धन के लिए वरिष्ठ नेताओं के भरोसे को कायम रखने की चुनौती होगी।
गृह और जेल मंत्री बनाए गए बाला बच्चन को मुख्यमंत्री कमलनाथ के बाद सबसे ज्यादा ताकतवर मंत्री के रूप में देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि इन दोनों महत्वपूर्ण विभागों के अलावा मुख्यमंत्री ने जो विभाग अपने पास रखे हैं, उनमें से भी कुछ विभागों का काम उन्हें दिया जा सकता है। खबर है कि जनसंपर्क विभाग को वे ही देखेंगे। वरिष्ठ विधायक और दिग्विजय सरकार में सहकारिता मंत्री रहे डॉ. गोविंद सिंह को सहकारिता जैसा अहम विभाग दिया है। यह उनका पसंदीदा विभाग भी है। इस साल प्रदेश की सहकारी संस्थाओं के चुनाव भी होने हैं। कांग्रेस की सरकार जाते ही प्रदेश की सहकारी संस्थाओं से कांग्रेस का सफाया हो गया था, अब फिर से इन संस्थाओं में कांग्रेस का वर्चस्व स्थापित करने की चुनौती उनके सामने होगी।
आईएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग करने के साथ-साथ लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू जैसी संस्थाओं को चलाने वाले सामान्य प्रशासन विभाग को भी मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पास रखा है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री से संबंद्ध किए गए विधि एवं विधायी कार्य मंत्री पीसी शर्मा को आगे चलकर इस विभाग की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
मध्य प्रदेश में सरकार का गठन हो चुका है। लेकिन कांग्रेस के अंदर ही यह बात उठने लगी है कि कई नेता ऐसे हैं जो अनुभव व काबिलियत के बावजूद मंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि उन्हें नेताओं का संरक्षण हासिल नहीं था। कांग्रेस के भीतर की नेताशक्ति ने साबित कर दिया है कि चुनाव जीतना और बात है, और मंत्री बनना दीगर बात। मंत्री बनने की सबसे बड़ी योग्यता नेता का करीबी या नाते-रिश्तेदार होना है। सूत्रों का दावा है कि कुछ नेताओं से राहुल गांधी की मुलाकात भी हुई, जिस पर उन्हें जो जवाब मिला, उससे कई नेताओं के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। राहुल ने इन नेताओं से कहा कि वे जिसके करीबी हैं, उसने ही मंत्री बनाने का नाम नहीं दिया तो क्या किया जा सकता है। नई सरकार में जो विधायक मंत्री नहीं बन पाए हैं, उनमें केपी सिंह, एदल सिंह कंसाना, एनपी प्रजापति, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, फुंदेलाल सिंह, हिना कांवरे, दीपक सक्सेना, हरदीप सिंह डंग, झूमा सोलंकी प्रमुख है। इन नेताओं का सबसे नकारात्मक पक्ष यह रहा कि उनकी किसी बड़े नेता ने पैरवी नहीं की। ये वे नेता हैं, जो दो या दो से ज्यादा बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। वहीं कई विधायक ऐसे हैं जो दूसरी बार जीते हैं और मंत्री बन गए।