03-Jan-2019 06:44 AM
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मंत्रिमंडल के विस्तार में कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए राज्य के जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की है। मंत्रिमंडल के इस पहले विस्तार में जहां 36 बिरादरीÓ को साथ लेकर चलने की गहलोत की सोच दिखती है, वहीं इसमें नए चेहरों के जरिए भी संकेत देने की कोशिश की गई है। मुख्यमंत्री गहलोत के मंत्रिमंडल के पहले विस्तार में 13 कैबिनेट और 10 राज्य मंत्रियों को राजभवन में पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई गई है। इनमें 18 चेहरे पहली बार ही मंत्री बने हैं।
जातीय समीकरणों के हिसाब से मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे ज्यादा चार-चार विधायक जाट व अनुसूचित जाति से मंत्री बने हैं। इसके बाद वैश्य, एसटी व ओबीसी समुदाय से तीन-तीन, राजपूत व ब्राह्मण समुदाय से दो-दो विधायकों को मंत्री बनाया गया है। पोखरण की चर्चित सीट पर बीजेपी के महंत प्रतापपुरी को हराने वाले सालेह मोहम्मद को भी राज्य मंत्री बनाया गया है।
गहलोत सरकार में पहली बार मंत्री बनने वालों में कांग्रेस के रघु शर्मा, लाल चंद, विश्वेंद्र सिंह, हरीश चौधरी, रमेश मीणा, प्रताप सिंह खाचरियावास, उदयलाल आंजना, सालेह मोहम्मद, गोविंद डोटासरा, ममता भूपेश, अर्जुन बामनिया, भंवर सिंह, सुखराम विश्नोई, अशोक चांदना, टीकाराम जूली, भजनलाल, राजेंद्र यादव हैं। वहीं, भरतपुर से गठबंधन सहयोगी आरएलडी के विधायक सुभाष गर्ग को भी मंत्री बनाया गया है। राज्य में गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल में तीन पूर्व सांसदों ने भी मंत्री पद की शपथ ली है। पूर्व सांसद हरीश चौधरी, लालचंद कटारिया और रघु शर्मा को गहलोत मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। लालचंद कटारिया पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में ग्रामीण राज्यमंत्री रह चुके हैं। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद जीतने वाले विधायक रमेश मीणा, गोविंद डोटासरा, भंवर सिंह भाटी, सुखराम विश्नोई, अशोक चांदना और राजेंद्र यादव को मंत्रिमंडल में मौका दिया गया है।
राज्य में पहली बार युवा टीम और नए चेहरों के आने से सरकार के कामकाज में भी नई ऊर्जा का संचार होगा, ऐसी अपेक्षा पूरे राजस्थान को है। नए चेहरों के साथ नई ऊर्जा तो आती है, पर एक जोखिम भी बना रहता है-अनुभव की कमी का। नई सरकार और उसकी टीम को समय रहते इस जोखिम को पहचानना होगा। राजस्थान एक विशाल राज्य है। राज्य के अलग-अलग हिस्सों की समस्याएं अलग-अलग किस्म की हैं। उनको समझने और निराकरण के लिए गहरी सूझ-बूझ चाहिए। इसलिए बेहतर यह होगा कि पहली बार काम-काज संभाल रहे मंत्रियों के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। उन्हें संविधान, कानूनों, नियम-कायदों के अलावा अपने विभाग के कामकाज की भी गहरी जानकारी दी जाए। प्रशिक्षण के लिए विषय-विशेषज्ञों को बुलाया जाए। निजी क्षेत्रों से विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं तो और भी बेहतर रहेगा। वे विभिन्न विषयों का राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में प्रशिक्षण देने का काम करें। हर मंत्री को राजस्थान और उसके विभाग से जुड़ी अपेक्षाओं की पूरी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें राज्यहित की दीर्घकालीन नीतियों पर काम करना होगा। समस्याओं के निराकरण के अभिनव तरीके खोजने होंगे।
यह भी ध्यान रखना होगा कि मंत्रिमंडल के चेहरे तो बदले हैं, पर अफसरशाही के कामकाज का तरीका वही पुराना है। अफसरों की चिंता केवल अपने कार्यकाल के लक्ष्यों तक होती है। दीर्घकालीन चिंता जनप्रतिनिधि ही कर सकते हैं। मंत्रियों को तय करना होगा कि वे कितनी बातें अफसरों की माने और कितने निर्णय स्वयं की सूझ-बूझ से करें। अपनी ऊर्जा को किसी भी झांसे में गलत दिशा में तो नहीं मुडऩे दें। अपेक्षा यह भी थी कि मंत्रिमंडल में महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलता, जो अभी नहीं मिला। महिलाओं की संख्या बढऩे से सरकार में संवेदनशीलता का भाव भी बढ़ता है। कुछ कमी यह भी रह गई कि आपराधिक मनोवृति वाले कुछ लोग भी मंत्रिमंडल में जगह पा गए।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी