22-Dec-2018 10:09 AM
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राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार की कथित विकास की गंगा में भाजपा की सत्ता बह गई। पहले से लग रहा था कि 5-5 साल सरकार बदलने की परंपरा इस बार भी निभाई जाएगी वही हुआ। राजस्थान में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया। विकास के लाख दावों के बावजूद वसुंधरा राजे सरकार को मतदाताओं ने बेदखल कर दिया, लेकिन यह विपक्ष में बैठी कांग्रेस का कोई कमाल नहीं है, वसुंधरा राजे सरकार के अपने ही निकम्मेपन का नतीजा है।
राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से 199 सीटों पर 7 दिसंबर को चुनाव हुए थे। कुल 74.2 प्रतिशत मतदान हुआ। प्रदेश में कुल 2,294 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इस चुनाव में कुल 4,74,37,761 मतदाता थे। इनमें से 2,47,22,365 पुरुष और 2,27,15,396 महिला मतदाता थे। पहली बार मतदान करने वाले युवाओं की संख्या 20,20,156 थी। कांग्रेस शुरू से ही उत्साहित थी। चुनावों की घोषणा होते ही अखिल भारतीय कांग्रेस के संगठन महासचिव और दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत समेत कई केंद्रीय नेता प्रचार में जुट गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पहले से ही पार्टी के लिए संघर्ष कर रहे थे। हालांकि टिकट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों में कई नेता बगावत कर बैठे और निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरे।
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को रिकार्ड तोड़ सफलता मिली थी। उसे 163 सीटों पर जीत प्राप्त हुई। इसके विपरीत कांग्रेस को केवल 21 सीटें ही मिल पाई थीं। इनके अलावा बसपा को 3 तथा 12 सीटें अन्य के हाथ आईं। हालांकि बीच में हुए उपचुनावों के बाद मौजूदा समय में भाजपा के पास 160, कांग्रेस के 25, बसपा के दो रह गए थे।
पिछले साल हुए दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में अजमेर और अलवर भी भाजपा के हाथ से निकल गए। इसका श्रेय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को दिया गया। एग्जिट पोल की बात करें तो भाजपा के हाथ से सत्ता निकलती दिखाई गई। केंद्र में बैठे नेताओं को भी इस बात का एहसास पहले से था कि राजस्थान में उन्हें हार का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए केंद्रीय नेताओं ने यहां ज्यादा ध्यान नहीं दिया। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कुछ रैलियां औैर सभाएं की पर उनका कोई ज्यादा असर नहीं पड़ा।
प्रदेश के मतदाता राजे सरकार के कामकाज से नाखुश थे। मुख्यमंत्री वसुंधरा खुद एक अलग रियासत की तरह प्रदेश में शासन करती दिखाई देती थीं। उनका अपनी पार्टी की केंद्र सरकार और उसके नेताओं से कभी कोई तालमेल नहीं नजर आया। इसके विपरीत मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के साथ केंद्र का अच्छा सामंजस्य देखने को मिलता था। इन प्रदेशों ने केंद्र से अपने लिए कई छोटी-बड़ी परियोजनाओं के लिए पैसा लिया और काम शुरू कराया, पर राजस्थान की मुख्यमंत्री के ऊपर स्वभावत: अपना पुराना राजशाही अहंकार हावी दिखाई देता था।
प्रदेश में इस बार धर्म, मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे अधिक हावी नहीं रहे लेकिन संघ और धर्म से व्यापार चलाने वालों ने कोशिशें जरूर कीं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी मंदिरों की परिक्रमा लगाकर धर्मांध मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया था पर आम आदमी से लेकर युवा बेरोजगार, सरकारी कर्मचारी, किसान, मजदूर और छोटा व्यापारी वर्ग तक राज्य की भाजपा सरकार को कोसता नजर आता था। इसी का नतीजा है कि भाजपा को राज्य खोना पड़ा।
द्यजयपुर से आर.के. बिन्नानी