खतरनाक गढज़ोड़
03-Jan-2019 06:09 AM 1234989
चुनाव के दौरान सशक्त पाकिस्तान बनाने का वादा करने वाले इमरान खान चीन से गढज़ोड़ करने में जुटे हुए हैं। इमरान खान ने वादा किया था कि वह सत्ता संभालने के तीन महीने तक किसी देश का दौरा नहीं करेंगे, लेकिन पहले वह सऊदी अरब गए। इसके बाद वह चीन के दौरे पर चले गए। वहां जाने से पहले उन्होंने इस पर जोर दिया था कि चीन पाकिस्तान गलियारा यानी सीपैक पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। सीपैक चीन के पश्चिमी शहर कासगर को पाकिस्तान के पश्चिमी शहर ग्वादर से जोड़ता है। 2000 किलोमीटर के इस मार्ग का इस्तेमाल चीन ने 2013 में ही शुरू कर दिया था। ग्वादर सामरिक तौर पर अति महत्वपूर्ण सामुद्रिक खाड़ी के मुहाने पर स्थित है। यहां हिंद महासागर, अरब सागर और फारस की खाड़ी का मिलन होता है। इससे चीन को एक सामुद्रिक रास्ता मिलेगा और उसके जरिये उसके जिंगजियांग प्रांत सहित पश्चिमी चीन का भी विकास होगा। इसके अतिरिक्त सीपैक चीन को एक अति महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डा उपलब्ध कराएगा। इससे तेल की आपूर्ति में सुविधा होगी। उसके लिए भारत और अमेरिका की सामूहिक गतिविधियों पर भी यहां से नजर रखना काफी आसान होगा। इसके अतिरिक्त चीन अपनी 40 अरब डॉलर के सामुद्रिक सिल्क रोडÓ की परिकल्पना को भी पूरा कर पाएगा। दक्षिण एशिया में श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण पूर्व एशिया में म्यांमार में चीन समुद्री अड्डों का निर्माण कर रहा है। इन सामुद्रिक मोतियों की मालाÓ के पीछे चीन व्यावसायिक हित के तर्क देता है, परंतु यह तय है कि चीन इसके जरिये भारत को हिंद महासागर में भी घेरने की नीति पर काम कर रहा है। पाकिस्तान-चीन संबंध 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही काफी करीबी रहे हैं। शीत युद्ध के बाद के कालखंड में उनके रिश्तों में और भी घनिष्ठता आई। 1999 में कारगिल संघर्ष के समय तत्कालीन पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ बीजिंग गए थे। चीन ने साफ कर दिया था कि भारत और पाकिस्तान को यह मामला आपस में ही हल करना है। मजबूरी में उन्हें अमेरिका की शरण में जाना पड़ा। जुलाई 1999 में वाशिंगटन में हुए समझौते के बाद पाकिस्तानी घुसपैठिये कारगिल से वापस हट गए थे, लेकिन पिछले एक दशक में चीन पाकिस्तान के आपसी संबंध और भी प्रगाढ़ हुए हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, परंतु दो काफी महत्वपूर्ण हैं। पहला भारत का उभरता हुआ वैश्विक आभा मंडल। पिछले एक दशक में भारत-अमेरिका, भारत-जापान, भारत-आसियान संबंध ऐतिहासिक तौर पर काफी मजबूत हुए हैं। भारत ने इन देशों के साथ साझा सामूहिक नोसैनिक अभ्यास हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी में किया है। आर्थिक तौर पर भी भारत काफी मजबूत हुआ है और कुछ माह पूर्व ही फ्रांस को पछाड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का वैश्विक आभामंडल और भी तेजी से बढ़ा है। मोदी सरकार ने वैश्विक मंचों पर भी एशिया के बहुध्रुवीय होने की आवश्यकता पर खुले तौर पर जोर दिया है। डोकलामÓ में चीन के तमाम मनोवैज्ञानिक हथकंडों के बावजूद भी भारत वहां डटा रहा और चीन को एक तरह से बेआबरू होकर अपने कदम पीछे खींचने पड़े। इससे चीन की छवि को थोड़ा नुकसान हुआ। तबसे वह भारत से संबंध सुधार की इच्छा व्यक्त कर रहा है, लेकिन भारतीय हितों की अनदेखी भी कर रहा है और पाकिस्तान को उकसा भी रहा है। हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका के संबंध काफी मजबूत हुए हैैं। वैसे तो अमेरिका एकध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था लागू रखना चाहता है, परंतु एशिया में वह किसी भी कीमत पर चीन के नेतृत्व वाली एकध्रुवीय व्यवस्था के बजाय बहुध्रुवीय व्यवस्था पर जोर दे रहा है। इसके जवाब में चीन किसी भी कीमत पर एशिया में एकध्रुवीय व्यवस्था लागू करना चाहता है। दूसरा कारण, पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों में मई 2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद से ही कटुता बढऩा है। द्य माया राठी
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