टाइगर अभी जिंदा है
03-Jan-2019 06:06 AM 1234931
मौसम के लिहाज से मध्यप्रदेश में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सक्रियता ने कांग्रेस तो ठीक भाजपा में भी गर्माहट बढ़ा दी है। भोपाल में ठिठुरते गरीब और बेसहारा लोगों के बीच उपस्तिथि दर्ज करा सबको हैरत में डाल दिया है। भाजपा में उनकी सक्रियता के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ नेता मानते हैं कि शिवराज की नजरें संगठन में प्रदेश अध्यक्ष के पद पर लगी हुई हैं तो कुछ ऐसा भी मानते हैं कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में आक्रामक भूमिका निभाना चाहते हैं। शिवराज के ये डायलॉग इस मायने में काफी महत्वपूर्ण है - जैसे टाइगर अभी जिंदा है, हम कम है पर कमजोर नहीं। बहुमत की संख्या से सात कदम पीछे है। वे यह भी कहते हैं कि सरकार में आने के लिए वचन कांग्रेस ने दिए हैं मगर उन्हें पूरा हम कराएंगे। इसी तरह दो दिन पहले भोपाल के रैन बसेरों में सर्द हवाओं के बीच गरीब लोगों से बातचीत कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे गरीबों के साथ हैं और उनके हित में संघर्ष करते रहेंगे। रैन बसेरा में जब एक आदमी ने कहा कि उन्हें अपना घर चाहिए तब उन्होंने कहा कि हमने इसी के लिए तो संबल योजना बनाई थी। इसके पहले उन्होंने बुधनी से आये कार्यकर्ताओं से कहा था हमने जो-जो घोषणा की हैं उसकी सूची बना लें मतदान केंद्र और गांव के हिसाब से उसकी पूर्ति कराएंगे। अगर नई सरकार नहीं मानती है तो फिर सड़क पर डेरा डालो, घेरा डालो आंदोलन करेंगे, नेताओं को घेरेंगे और ऑफिसों का घेराव करेंगे। कुल मिलाकर उन्होंने सरकार और अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि तेरह साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी अब विरोधी नेता के रूप में न तो उनकी सक्रियता कम हुई है और न ही उनकी धार बोथरी हुई है। उनके इसी अंदाज ने सूबे की सियासत को गरमा दिया है। मध्य प्रदेश में सत्ता पलटते ही कमलनाथ सरकार नई योजनाएं बनाने लगी है। किसानों की कर्जमाफी के साथ ही कन्या विवाह के दौरान मिलने वाली राशि बढ़ा दी गई है। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि शिवराज सरकार के दौरान शुरू हुईं योजनाओं का क्या होगा। राज्य के खाली खजाने को देखते हुए पुरानी योजनाएं चला पाना मुश्किल लग रहा है। दूसरी तरफ खुद शिवराज यह बयान दे चुके हैं कि अगर उनके कार्यकाल के दौरान शुरू की गई योजनाओं को बंद किया गया तो वे ईंट से ईंट बजा देंगे। अब देखना यह है कि कमलनाथ सरकार इन योजनाओं को लेकर क्या रुख अपनाती है? सूबे पर पहले से पौने दो लाख करोड़ का कर्ज है। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि कमलनाथ सरकार पुरानी कुछ योजनाओं को बंद कर सकती है या उनमें बदलाव किया जा सकता है। सरकारी योजनाएं बंद होगी या नहीं लेकिन उससे पहले ही सूबे में सियासी पारा गरम है। मध्य प्रदेश में सरकार पलटते ही कमलनाथ सरकार ने शिवराज सरकार के दौरान जमे आईएएस अधिकारियों को एक झटके में इधर से उधर कर दिया। पहली बड़ी प्रशासनिक सर्जरी में 45 से ज्यादा अधिकारियों को हटाया गया। इस बदलाव के साथ ही अब ये अटकलें भी शुरू हो गई हैं कि क्या शिवराज सरकार के दौरान शुरू हुईं सरकारी योजनाओं को भी बंद किया जाएगा। शिवराज सरकार ने चुनावी फायदे के लिहाज से भावांतर से लेकर संबल जैसी बड़ी योजनाएं लॉन्च की थीं। संबल योजना में एक करोड़ से ज्यादा गरीब लोगों को फायदा देने का टारगेट था। 200 रुपए में बिजली और पुराने बिजली बिल माफ करने जैसे प्रावधान शामिल थे। इस योजना के लिए शुरुआती दौर में करीब 800 करोड़ रुपए का बजट तय था। इसके कार्ड में शिवराज सिंह चौहान की फोटो लगाई गई थी। किसानों को उनके भाव का अंतर देने के लिए भावांतर योजना भी शुरू की गई थी। कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले किसानों के कर्जमाफी की फाइल पर दस्तखत किए। इसका फायदा सूबे के 33 लाख किसानों को होगा। कर्जमाफी से सरकार पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए का भार आएगा। इस योजना को अमली जामा पहनाने और पुरानी योजनाओं को जारी रखने के लिए सरकार को भारी भरकम बजट की जरूरत है। कॉमन मैन की सक्रियता शिवराज सिंह चौहान सत्ता गंवाने के बाद कॉमन मैन बन गया हैं। कॉमन मैन बनते ही उनकी सक्रियता पहले से अधिक बढ़ गई है। वे सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक सक्रिय बने हुए हैं। ट्विटर पर शिवराज की हाजिर जवाबी खूब पसंद की जा रही है। चुनाव हारने के बाद भाजपा पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए शिवराज सिंह तेजी से एक्टिव हुए थे। मीडिया ने कयास लगाए कि वो विदिशा से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने आगे बढ़कर इससे इंकार कर दिया। ऐलान कर दिया कि वो मध्यप्रदेश की ही राजनीति करेंगे। उनकी नजर नेता प्रतिपक्ष के पद पर है परंतु संगठन के नेता यह समझ नहीं पा रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री नई सरकार से सवाल कैसे कर पाएगा जबकि उसकी अपनी हजारों घोषणाएं अधूरी हैं। कमलनाथ से दोस्ताना रिश्ते भी शिवराज सिंह के भविष्य पर सवाल खड़े कर रहे हैं। - अजय धीर
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