03-Jan-2019 06:03 AM
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मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्य में स्थापित उद्योगों में सत्तर प्रतिशत स्थानीय युवाओं को रोजगार देने की शर्त लगाकर एक नए विवाद को जन्म दिया है। कमलनाथ सत्तर प्रतिशत की शर्त के जरिए राज्य के युवाओं का पलायन रोकना चाहते हैं। राज्य की पुरानी औद्योगिक नीति में पचास प्रतिशत स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार देने की शर्त थी। शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने वर्ष 2014 में अपनी नई औद्योगिक नीति में इस शर्त को हटा दिया था। मध्यप्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 24 लाख से अधिक बताई जाती है। ये वो संख्या है जो कि रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों की है। जबकि वास्तविक बेरोजगारों की संख्या एक करोड़ से अधिक बताई जाती है। एनसीआरबी के आकंड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 53 प्रतिशत लोगों ने बेरोजगारी के कारण गत वर्ष आत्महत्या की है। राज्य महिला अपराधों में भी नंबर एक पर है।
व्यापमं घोटाला उजागर होने के बाद सरकारी नौकरियों पर अघोषित पाबंदी लगी हुई है। राज्य के युवाओं के पास निजी क्षेत्र में काम करने के विकल्प भी काफी सीमित हैं। राज्य में नई औद्योगिक इकाइयां भी बड़े पैमाने पर स्थापित नहीं हुईं हैं। जबकि निवेश को लुभाने के लिए शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने कई तरह की रियायतें और सुविधाएं देने का प्रावधान अपनी औद्योगिक नीति में किया था। सबसे ज्यादा बेरोजगार आईटी सेक्टर के हैं। इस सेक्टर में पढ़ाई करने वाले युवाओं को रोजगार की तलाश में बेंगलुरु और पुणे जैसे शहरों की ओर रुख करना पड़ता है। विधानसभा के इस चुनाव में बेरोजगारी बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। कांग्रेस ने अपने चुनावी वचन पत्र में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया था कि पचास करोड़ रुपए से अधिक की लागत से स्थापित होने वाले उद्योग यदि प्रदेश के युवाओं को रोजगार देते हैं तो उनके वेतन की पच्चीस प्रतिशत राशि, जो अधिकतम दस हजार रुपए प्रतिमाह होगी, की प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा की जाएगी। वेतन अनुदान की राशि पांच साल तक दिए जाने का वचन दिया गया है। कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में सरकारी नौकरियों में उन लोगों को प्राथमिकता देने का वादा भी किया है, जिन्होंने दसवीं अथवा बारहवीं की परीक्षा मध्यप्रदेश से उत्तीर्ण की हो। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद साफ शब्दों में कहा कि उनकी प्राथमिकता होगी कि राज्य में स्थापित होने वाले उद्योगों में 70 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को मिले। कमलनाथ ने कहा था कि बिहार और उत्तरप्रदेश से आकर लोग राज्य के युवाओं का हक छीन लेते हैं। कमलनाथ ने यह भी स्पष्ट किया था कि वे उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों के विरोधी नहीं हैं। कमलनाथ की इस सफाई के बाद भी उन पर क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने के आरोप लग रहे हैं। उनकी तुलना महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे से की जाने लगी है।
मध्यप्रदेश में ऐसे कई औद्योगिक क्षेत्र हैं, जहां कारखानों में काम करने वाले ज्यादतर मजदूर उत्तरप्रदेश और बिहार के हैं। खासकर वे इलाके जो कि यूपी और बिहार की सीमा से लगे हुए हैं। यूपी-बिहार से मजदूरों के राज्य में आ जाने से स्थानीय लोगों को कारखाने में मजदूरी का काम भी नहीं मिल पाता है। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर वर्ष 2008 में जो औद्योगिक नीति लागू की थी, उसमें यह शर्त रखी गई थी कि राज्य में निवेश करने के लिए इच्छुक उद्योगपतियों को विभिन्न सुविधाएं इसी शर्त पर दी जाएंगी जबकि वे अपनी इकाई में पचास प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को देंगे। इस तरह की शर्त रखने के पीछे वजह उद्योग को अधिग्रहित कर दी जाने वाली भूमि थी। किसान स्वेच्छा से अपनी जमीन के अधिग्रहण के लिए तैयार हो जाएं, इसके लिए मुआवजे के अलावा रोजगार उपलब्ध कराने का वादा भी सरकार की ओर से किया गया था।
वर्ष 2008 के बाद राज्य में उद्योगों के लिए बड़े पैमाने पर जमीनों का अधिग्रहण किया गया। इसके बाद कारखाने स्थापित नहीं हुए। राज्य के कई जिलों में अलग-अलग समय पर लोगों ने अपनी जमीन वापस लेने के लिए आंदोलन भी किए। इन आंदोलनों के बाद ही वर्ष 2014 की नई औद्योगिक नीति में शिवराज सिंह चौहान ने पचास प्रतिशत स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से रोजगार देने की शर्त को हटा दिया। वर्ष 2014 की औद्योगिक नीति वर्तमान में प्रचलित है। मुख्यमंत्री कमलनाथ यदि 70 प्रतिशत लोगों को निजी क्षेत्र में रोजगार देना चाहते हैं तो उन्हें नीति और नियम भी बदलने पड़ेंगे।
बदल गई पंचायती राज की अवधारणा
वर्ष 1994 में संविधान के 73 वें एवं 74 वें संविधान संशोधन के बाद मध्यप्रदेश में सबसे पहले त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था स्थापित की गई थी। इसका श्रेय तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मिला था। दिग्विजय सिंह ने पंचायती राज को सशक्त बनाने के लिए स्थानीय स्तर पर ही सरकारी भर्तियां किए जाने के नियम भी बनाए थे। स्कूलों के लिए शिक्षकों की भर्ती और अस्पतालों के लिए आवश्यक अमले की भर्ती जिला पंचायत स्तर पर की जाती थी। राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद स्थानीय निकायों से भर्ती का काम वापस ले लिया गया था। सभी सरकारी भर्तियां व्यापमं के जरिए की जाने लगी थीं। पंचायत को यह अधिकार भी दिया गया था कि वे हैंड पंप मैकेनिक जैसे जरूरी अमले की नियुक्ति में गांव के ही लोगों को प्राथमिकता दे। शहरी निकायों में भी इसी तरह की व्यवस्था की गई थी। इसके पीछे सरकार की मंशा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मानव संसाधन का उपयोग स्थानीय स्तर पर करने की थी। लेकिन भाजपा के शासनकाल में इस व्यवस्था को दरकिनार कर दिया गया। सरकार का हर जगह हस्तक्षेप बढ़ा।
-अरविंद नारद