01-Jan-2019 10:34 AM
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वायु प्रदूषण की वजह से देश की राजधानी दिल्ली की हालत कितनी बिगड़ चुकी है, इसकी कल्पना शायद ही किसी को हो। रोजाना नए-नए तथ्य और आंकड़े महानगर की दयनीय तस्वीर पेश कर रहे हैं। स्थिति इस कदर खतरनाक हो चुकी है कि दो दिन के लिए एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उद्योगों को बंद करने जैसा कदम उठाना पड़ गया। इससे लगता है कि जब हालात बिल्कुल ही बेकाबू हो गए तब सरकार और उसकी एजेंसियों की नींद खुली है। दिल्ली पिछले कई सालों से वायु प्रदूषण की मार झेल रही है। मगर बदतर हालात में सुधार के लिए या तो कदम उठाए ही नहीं गए या फिर जो उठाए गए वे कारगर साबित नहीं हुए। पिछले दो महीनों के दौरान पूरे इलाके की वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि उससे निपटने में सरकार के हाथ-पैर फूल रहे हैं। आए दिन वायु गुणवत्ता के आंकड़े बता रहे हैं कि हम कितनी जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं।
इस गंभीर संकट से निपटने के लिए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में दो दिन के लिए उद्योग बंद करने का जो फैसला लिया है, उसका कोई असर नहीं पडऩे वाला। हकीकत यह है कि दिल्ली और इससे सटे इलाकों-नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद में हजारों की तादाद में औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं। ये यहां के पुराने औद्योगिक क्षेत्र हैं, जो सालों से जहरीला धुआं उगल रहे हैं। इससे भी खतरनाक बात यह है कि ज्यादातर छोटे उद्योग रिहायशी इलाकों में चल रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर दो दिन या हफ्ते भर उद्योगों को बंद कर भी दिया जाए तो इससे कितना प्रदूषण कम होने वाला है! दो-चार दिन ही कारखानों की चिमनियां धुआं नहीं उगलेंगी। इसके बाद तो फिर वही पुरानी स्थिति बहाल हो जाएगी। उद्योगों को हमेशा के लिए तो बंद नहीं किया जा सकता।
समस्या की जड़ उन योजनाओं में है, जिन्हें बेतरतीब ढंग से लागू किया गया। भविष्य की जरूरतों और खतरों की अनदेखी की गई। इन इलाकों में जब उद्योग लगाए जा रहे थे, औद्योगिक इलाके विकसित किए जा रहे थे, तब इस बात को ध्यान में क्यों नहीं रखा गया कि जब ये जहरीला धुआं निकालेंगे तब क्या होगा?
दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण पुराने वाहन भी हैं। लाखों की संख्या में ऐसे वाहन दौड़ रहे हैं जिनकी अवधि खत्म हो चुकी है और इनमें भी डीजल वाहनों की तादाद ज्यादा है। एनसीआर में तो बड़ी संख्या में ट्रैक्टर, जुगाड़ और पुरानी डीजल बसें बिना किसी रोक के दौड़ रही हैं। इन पर पाबंदी का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया। सरकार पुराने वाहनों को सड़कों से हटा पाने में लाचार साबित हुई है। दिल्ली में कूड़े के बड़े-बड़े पहाड़ों ने कम कबाड़ा नहीं किया। जब इन पहाड़ों में आग लग जाती है तो ये कई-कई दिन तक जलते रहते हैं और इनसे निकला जहरीला धुआं पूरी दिल्ली को अपनी जद में लिए रहता है। लेकिन विडंबना यह है कि शीर्ष अदालत के प्रयासों के बावजूद ये पहाड़ नहीं हटाए जा सके हैं। ऐसे में अगर पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण उद्योगों को कुछ दिन के लिए बंद कर दे, कुछ वक्त के लिए वाहनों पर पाबंदी लगा दे, निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दे, तो भी इससे समस्या का स्थायी हल नहीं निकलने वाला। दिल्ली आज जिस वायु प्रदूषण की मार झेल रही है, वह नीतिगत खामियों का नतीजा है। ऐसे में सरकार को प्रदूषण से निपटने के दीर्घकालिक और तर्कसंगत उपाय खोजने होंगे।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि जागरूकता का अभाव और कठोर मानकों की कमी के कारण भारत में हर आठवें व्यक्ति की मौत का कारण वायु प्रदूषण बन रहा है। अनुसंधान में पाया गया है कि वर्ष 2017 में ही करीब साढ़े बारह लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण से हुई, जिसमें साढ़े छह लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर प्रदूषित हवा के शिकार बने। अन्य करीब पांच लाख लोगों की मौत का कारण घरों के अंदर की हवा जहरीली बन जाने से हुई। यह खुलासा देश के 369 निगरानी केंद्रों और अस्पतालों से मिले आंकड़ों पर आधारित है, लिहाजा इसकी विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। अनुसंधान में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से देश में औसत जीवनकाल डेढ़ से पौने दो साल घट गया है। अनुसंधान के मुताबिक अधिकतर मौतें प्रदूषण के कारण फेफड़ों में कैंसर, दिल के दौरे और पुरानी बीमारियों से हो रही हैं।
- अक्स ब्यूरो