22-Dec-2018 07:20 AM
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पांच राज्यों में से मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा था। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में 114, राजस्थान में 100 और छत्तीसगढ़ में 68 सीटें जीतकर भाजपा से उसका गढ़ छीना और राज्य पाया। साथ ही यह संकेत दे दिया है कि 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। तीनों राज्यों में इस बार कांग्रेस ने एकता, सजगता, सतर्कता के साथ चुनाव लड़ा। मप्र में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह महत्वपूर्ण भूमिका में लगे रहे वहीं राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस बघेल सहित अन्य नेता सबको साथ लेकर चुनाव लड़े। आलाकमान ने मप्र में कमलनाथ को तो राजस्थान में अशोक गहलोत को सीएम बनाया है वहीं राजस्थान में सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया है।
सात माह में भाजपा का सूर्य अस्त
सबसे रोचक मुकाबला मप्र में देखने को मिला। दरअसल सात माह पहले जब कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई, तब भाजपा सरकार का सूर्य उच्च डिग्री का था। कोई भरोसा करने को तैयार नहीं था कि यह सूर्य सात महीने में अस्त हो सकता है, लेकिन नाथ की सियासी सूझबूझ, रणनीतिक कौशल और सबको साथ लेकर चलने के हुनर ने इस असंभव से लगने वाले काम को संभव कर डाला। सात माह के भीतर पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने के सफर में कमलनाथ के साथ युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर अजय सिंह और हम उम्र दिग्विजय सिंह कदमताल करते दिखे, तब जाकर कांग्रेस का सत्ता से वनवास खत्म हो पाया। लगातार तीन चुनावों में जीत की हैट्रिक लगाकर भाजपा के पैर इस सूबे में अंगद के समान मजबूती से जम चुके थे, उसे यदि इस बार नहीं उखाड़ा जाता तो कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश भी उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल जैसी एक अबूझ पहेली बन जाता।
कांग्रेस को एक सूत्र में पिरोया
2008 और 2013 में तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस अपनी ताकत को दहाई के अंक से आगे नहीं बढ़ा पाई थी। इसकी मुख्य वजह गुटों में बंटी कांग्रेस के विभाजित कैडर को एकता के सूत्र में पिरोकर संगठन को ताकत देने की कोशिशों का सतह पर न आ पाना था। यह मानने में किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि यदि कमलनाथ की जगह कोई और नेता प्रदेश अध्यक्ष बनता तो सारे गुट एक छतरी के नीचे आने से आनाकानी करते। चूंकि कमलनाथ प्रदेश में मौजूद सभी क्षत्रपों में सबसे वरिष्ठ हैं।
अपने बयानों के लिए चर्चित रहने वाले सिंह ने पूरे चुनाव अभियान के दौरान ऐसा एक भी बयान नहीं दिया, जिससे कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को पलीता लगता। कमलनाथ के करीबी लोगों की बातों पर भरोसा करें तो झाबुआ में संघ के बारे में सिंह के एक विवादास्पद बयान पर जब देशभर में बवाल मचा तो नाथ ने उन्हें संभलकर बयानबाजी करने की नसीहत दे डाली। दिग्विजय सिंह पूरे समय कांग्रेस में गुटीय संतुलन बनाते दिखे। बागियों को साधने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।
पार्टी में दिखी एकजुटता
ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, वे भी नाथ के साथ कदमताल करते हुए कांग्रेस की मजबूती के लिए पूरे सूबे में रोड शो के जरिए बदलाव की जमीन तैयार करते दिखे। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भले खुद चुनाव नहीं जीत पाए, लेकिन कांग्रेस को जिताने में उनका रोल भी महत्वपूर्ण रहा। सुरेश पचौरी, अरुण यादव और विवेक तन्खा भी अलग-अलग भूमिका में कांग्रेस की बेहतरी में जुटे रहे। कमलनाथ शुरू के तीन चार माह संगठन की कसावट में व्यस्त रहे। उन्होंने जिले से लेकर बूथ तक संगठन का ढांचा खड़ा किया। इस बीच वे अलग-अलग सामाजिक संगठनों से भी मेल-जोल बढ़ाते रहे। कर्मचारी, मजदूर, व्यापारी संगठनों तक वे कांग्रेस को लेकर गए और उनके वोट पाने के जतन किए। उन्होंने कांग्रेस को एकजुट करने के लिए रेवड़ी की तरह पद भी बांटे। कांग्रेस आज जिस मुकाम पर खड़ी नजर आ रही है, उसमें इन प्रयासों की बड़ी भूमिका रही।
जोड़ी दिखी दमदार
कांग्रेस ने इस बार अनुभव और युवा चेहरे को तवज्जो दी। पार्टी ने इस संबंध में एक बेहतर समन्वय स्थापित करने पर जोर दिया। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य की जोड़ी ने ये संदेश देने की कोशिश की ये लड़ाई करो या मरो से जुड़ी है। अगर टॉप नेता अपने मतभेदों को भुलाकर एक साथ आगे बढ़ेंगे तो निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश का संचार बढ़ेगा और पार्टी को कोई भी ताकत सत्ता में आने से रोक नहीं सकेगी। मध्य प्रदेश के सभी इलाकों में कांग्रेस ये संदेश देने में कामयाब रही कि भाजपा किसान विरोधी सरकार है। भाजपा कुछ खास उद्योगपतियों को आगे बढ़ाने का काम रही है। भाजपा की सरकार में किसानों को न तो सही समय पर खाद और बीज मिल रहा है, बल्कि किसान खुदकुशी करने के लिए मजबूर हैं। इसके साथ ही नोटबंदी और जीएसटी की वजह से व्यापारियों की नाराजगी को उभारने में कामयाब हुई। कांग्रेस द्वारा अपने वचन पत्र (घोषणा पत्र) में मध्य प्रदेश के सभी किसानों को दो लाख रुपए तक कर्ज माफी करने, बेरोजगारों को भत्ता, इंदिरा रसोई योजना, हर ग्राम में गौशाला और किसानों की विभिन्न उपजों पर बोनस देने का वादा कांग्रेस के लिए इस विधानसभा चुनाव में फायदेमंद रहा। कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन करने की यह भी एक मुख्य वजह रही। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान इन सभी वादों को प्रमुखता से अपनी सभी चुनावी सभाओं में उठा कर लोगों को पार्टी के पक्ष में मतदान करने के लिए आकर्षित किया था। राहुल की इस लोकलुभावन वादे से किसानों ने अपनी धान की फसल को बेचना बंद कर दिया था। उन्हें डर था कि यदि वे अपनी फसल को सरकारी उपार्जन केन्द्रों में बेचेंगे, तो उनकी उपज को बेचने के एवज में मिले रुपए सीधे उनके बैंक खाते में चले जाएंगे और बैंक खुद ब खुद उनके खाते से उनके द्वारा लिए गए उस कर्ज के पैसे काट देंगे, जो कांग्रेस की सरकार आने में अपने आप माफ होने वाले हैं। परंतु इस चुनावी महाभारत की पहली रैली मंदसौर गोलीकांड की बरसी पर मंदसौर में हुई थी। जिसे राहुल गांधी, कमलनाथ, सिंधिया, दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के कई नेता इस रैली के साक्षी बने थे। यह माना जा रहा था कि मंदसौर और नीमच जिले की सभी सीटें कांग्रेस के पक्ष में होंगी। परंतु मतदाता ने इस गोली कांड की बरसीनुमा रैली को ढकोसला बताकर कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त मतदान किया। वहां कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा।
नाथ की रणनीति भाजपा पर भारी
वर्ष 2008 और 2013 में भी भाजपा सरकार के खिलाफ एंटीइंकमबेंसी थी। लेकिन कांग्रेस की रणनीति कमजोर होने के कारण वह जीत नहीं पाई। लेकिन इस बार के चुनाव में कमलनाथ, सिंधिया ने फ्रंट पर और दिग्विजय सिंह ने बैक में रहकर भाजपा की हर रणनीति का मुंह तोड़ जवाब दिया। यही नहीं पिछले चुनावों की तरह इस बार कांग्रेस मुद्दों से बहकी भी नहीं। भाजपा ने भरपूर कोशिश की कि वह कांग्रेस को अपने चक्रव्यूह में घेर ले, लेकिन नाथ, सिंधिया की सधी चाल भारी पड़ी। कांग्रेस ने इस चुनाव में भाजपा के हिंदुत्व के समान्तर अपना हिंदुत्व चलाया। इसके लिए राहुल गांधी, कमलनाथ, सिंधिया आदि ने भी टेम्पल रन शुरू की। इसकी वजह राज्य की 109 सीटों पर 8 धर्मस्थलों का प्रभाव है। इसके लिए कांग्रेस के नेताओं ने मंदिरों की यात्राएं कीं। दरअसल महाकाल दरबार का 33, सलकनपुर मंदिर का 9, पीतांबरा पीठ का 28, मैहर, कामतानाथ, राम वन गमन पथ का 28, रामराजा दरबार का 11 सीटों पर प्रभाव है। कांग्रेस ने टेम्पल रन करके इन विधानसभा सीटों को साधने की भी कोशिश की।
कांग्रेस की संयुक्त रणनीति और एकता का ही परिणाम रहा कि विंध्य को छोड़कर प्रदेश के हर संभाग में पार्टी ने भाजपा को मात दी है। मप्र की 16 वीं विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका मालवा-निमाड़, महाकौशल, ग्वालियर चंबल, मध्य भारत और बुंदेलखंड के मतदाताओं की रही, जबकि विंध्य में कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। मालवा-निमाड़ की 56 सीटों में से भाजपा को 27 और कांग्रेस को 35 सीटें मिली जबकि निर्दलीय 3 सीटों पर जीते। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 56सीटे जीती थी। इस बार उसे 29 सीटे खोनी पड़ी, जबकि कांग्रेस की 26 सीटें बढ़ी हैं। वहीं महाकौशल की 38 सीटों में से भाजपा को 10 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली हैं, जबकि 1 सीट निर्दलीय को मिली है। क्षेत्र में कांग्रेस की 8 सीटें बढ़ी हैं, जबकि भाजपा को 14 सीटों का नुकसान हुआ है।
ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों में से भाजपा को मात्र 6 और कांग्रेस को 19 सीटें मिली हैं। क्षेत्र में कांग्रेस की 7 सीटे बढ़ी हैं जबकि भाजपा ने 14 सीटे खोई है। मध्य भारत की 36 सीटों में से भाजपा ने 23 और कांग्रेस ने 13 सीटे जीती हैं। भाजपा 6 सीटे खोई है जबकि कांग्रेस की 7 सीटे बढ़ी हैं। बुंदेलखंड की 26 सीटों में से भाजपा 11 और कांग्रेस ने 10 सीटे जीती है, जबकि बसपा और सपा ने 1-1 सीटे जीती हैं। भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ है वहीं कांग्रेस को 5 सीटों को फायदा हुआ है। विंध्य क्षेत्र में भाजपा को भरपूर फायदा हुआ है। संभाग की 30 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 24 और कांग्रेस को 6 सीटे मिली हैं। क्षेत्र में भाजपा को 6 सीटों का फायदा हुआ है, जबकि कांग्रेस को 4 सीटों का नुकसान, लेकिन यह बढ़त भाजपा के लिए फायदेमंद नहीं रही।
कर्जमाफी का दांव बना गेमचेंजर
किसानों की कर्जमाफी का दांव जो इस चुनाव में गेमचेंजर बना, वह भी इसी टीम की दिमागी उपज थी। इसमें कोई शक नहीं कि नाथ ने अध्यक्ष बनने के छह माह के भीतर पूरी पार्टी को चार्ज कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले चुनाव तक जिन मतदान केंद्रों पर कांग्रेस के पोलिंग एजेंट नजर नहीं आते थे, वहां इस बार पार्टी दमदारी के साथ नजर आई। यह सही है कि कांग्रेस पूर्ण बहुमत लाने से थोड़ा पिछड़ गई, बगैर किसी लहर अंडर करंट के भाजपा से बढ़त हासिल करना भी कम बड़ी बात नहीं है। अब वे मुख्यमंत्री बन गए हैं।
असली चुनौती अब
उनके सामने 109 सदस्यीय मजबूत विपक्ष है, जिसकी चुनौतियों से सरकार को रोज दो-चार होना हैं। परीक्षा की घड़ी अब आएगी कि किस तरह वे विपक्ष से निबटते हुए कांग्रेस द्वारा चुनाव में किए गए वादों को पूरा करते हैं और भाजपा से लंबी लाइन खींचते हैं।
पूर्व कांग्रेसियों की होगी घर वापसी?
प्रदेश की राजनीतिक वीथिका में यह भी हलचल मची हुई है कि भाजपा को सबक सिखाने और अपनी टीम को मजबूत करने के लिए कमलनाथ भाजपा में गए पूर्व कांग्रेसियों की घर वापसी कर सकते हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस के पूर्व विधायक संजय पाठक को चक्रव्यूह में फंसाकर भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल किया था। यही नहीं उन्हें मंत्री भी बनाया था। पाठक प्रदेश के बड़े धनपति हैं। ऐसे में क्या कमलनाथ इन्हें कांग्रेस में लाने की कोशिश करेंगे? इनके साथ ही चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी सहित अन्य जो भी नेता भाजपा में गए हैं उनकी घर वापसी होगी। यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि कांग्रेस भले ही सत्ता में वापसी कर पाई है, लेकिन अभी भी वह कमजोर स्थिति में है। ऐसे में पार्टी की कोशिश रहेगी कि वह फिर से अपने नेताओं की घर वापसी कर भाजपा को सबक सिखाएं।