पेंशन पर रार
01-Jan-2019 10:17 AM 1234763
मप्र में सरकार बदलते ही मीसा बंदियों को मिलने वाली पेंशन पर खतरा मंडराने लगा है। भाजपा सरकार बीते 10 वर्षों से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में आपातकाल के दौरान जेल की सलाखों के पीछे रहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी व स्वयंसेवकों को उपकृत करने के लिए हर महीने पेंशन का प्रावधान किया था। अब जबकि राज्य में कांग्रेस की सरकार काबिज हो गई है। ऐसी स्थिति में मीसा बंदियों की पेंशन बंद होने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। सरकार ने विस्तृत अध्ययन करने के बाद मीसाबंदी सम्मान निधि विधेयक को निरस्त करने के लिए मसौदा तैयार कर लिया है। कांग्रेस ने 15 साल बाद राज्य की सत्ता पर प्रभावशाली तरीके से वापसी की है। सरकार बदलते ही भाजपा की कई योजनाओं और कार्यों पर मौजूदा कांगे्रसी सरकार की कैंची भी चलेगी। मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ और राजस्थान की भाजपा सरकार द्वारा भी पेंशन का प्रावधान किया गया था। अब जबकि तीनों प्रमुख राज्यों में भाजपा की सरकार सत्ता से दूर हो गई है यहां चल रही योजनाओं में भी जल्द कैंच चलाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। चर्चा तो इस बात की भी है कि सबसे पहले मीसाबंदियों को मिलने वाले पेंशन के प्रावधान को खत्म किया जाएगा। प्रदेश में फिलहाल दो हजार से ज्यादा मीसाबंदी हैं। इन्हें वर्तमान में 25 हजार रुपए मासिक राशि मिल रही है। इस पर करीब 70 करोड़ रुपए सालाना खर्च होते हैं। सरकार के इस कदम से प्रदेश में नया सियासी बवाल खड़ा हो सकता है। मीसाबंदियों के संगठन लोकतंत्र सेनानी संघ ने कांग्रेस सरकार को चेतावनी दी है कि पेंशन बंद हुई तो संगठन प्रदेश सरकार के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में जाएगा। लोकतंत्र सेनानी के अध्यक्ष तपन भौमिक कहते हैं कि सरकार ने पेंशन बंद की तो कोर्ट जाएंगे। उत्तर प्रदेश और राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश हमारे पास हैं। मीसाबंदी पेंशन बंद करने पर मायावती सरकार चली गई थी। राजस्थान में भी ऐसा ही हुआ। प्रदेश में मीसाबंदी पेंशन का फायदा लेने वालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पृष्ठभूमि के बड़े नेताओं के नाम भी हैं। प्रदेश में फिलहाल दो हजार से अधिक मीसाबंदी इस योजना का लाभ ले रहे हैं। इनमें कुछ नेता मुख्यमंत्री जैसे ओहदे तक भी पहुंच चुके हैं। पेंशन का फायदा लेने वाले प्रमुख लोगों में केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बाबूलाल गौर, पूर्व मंत्री अजय विश्नोई, शरद जैन, नागेन्द्र नागौद, रामकृष्ण कुसमरिया, राज्यसभा सदस्य कैलाश सोनी, उप लोकायुक्त यूसी माहेश्वरी और पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी भी हैं। भाजपा सरकार को अंदेशा था कि कांग्रेस सरकार आने पर यह सम्मान निधि बंद की जा सकती है। ऐसे में मीसाबंदियों को पेंशन देने के लिए 20 जून 2008 को बनाए गए लोक नायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि नियम को चुनाव से पहले जून 2018 में लोकतंत्र सेनानी सम्मान अधिनियम के रूप में विधानसभा से विधेयक मंजूर करवा लिया। इसे खत्म करने के लिए नई सरकार को भाजपा की आलोचना सहन करनी होगी। सरकार जैसे ही विधानसभा में कानून निरस्त का विधेयक लाएगी, भाजपा इसका पुरजोर विरोध करेगी। उधर कांग्रेस मीडिया प्रभारी शोभा ओझा कहती हैं कि भाजपा सरकारों ने अपनों को रेवड़ी बांटने के लिए ऐसी फिजूलखर्ची की है। सरकार मीसाबंदी पेंशन बंद करेगी। उन संस्थाओं पर भी ताला लगेगा, जो संघ का एजेंडा लागू करने के लिए बनाई गई थीं। मीसाबंदियों की पेंशन के नाम पर अब पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं। कांग्रेस संगठन ने मीसाबंदी पेंशन बंद करने के साथ मामले की जांच करने की मांग रख दी है। कांग्रेस के प्रदेश सचिव ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि 10 साल में सरकारी खजाने से करीब एक हजार करोड़ मीसाबंदियों में बांट दिए गए। पेंशन हासिल करने वालों में ऐसे लोग भी हैं जो आपातकाल के वक्त किशोरावस्था में भी नहीं होंगे। कई मृतकों के नाम से भी पेंशन जारी की जा रही है। कांग्रेस सचिव यादव के मुताबिक मीसाबंदियों की पेंशन पूरी तरह सरकारी और आम करदाताओं के जेब से आए धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का मामला है। पहली बात है कि इस तरह की पेंशन का कोई आधार नहीं बनता। संगठन ने मुख्यमंत्री को अवगत कराया है कि राजनीतिक आंदोलन में जेल जाने पर पेंशन की पात्रता कैसे हो सकती है। सरकार ने पहले ऐसे लोगों को 16 हजार रुपए प्रति माह पेंशन दी। बाद में उसे बढ़ाकर 25 हजार रुपए महीना कर दिया गया। जबकि देश के लिए लडऩे वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सिर्फ 500 रुपए महीना पेंशन दी जा रही है। उनका आरोप है कि भाजपा ने अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया है। अत: मीसाबंदी पेंशन बंद हो। - सुनील सिंह
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