नदियां हुई जहरीली
01-Jan-2019 10:25 AM 1234773
बुंदेलखंड से होकर गुजरने वाली चार नदियों यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी का पानी अब इंसानों के पीने लायक नहीं रहा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की आई एक रिपोर्ट में इन नदियों का पानी जहरीला पाया गया है। इन नदियों का पानी पीने से इंसानों को कई बीमारियां घेर सकती हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नवंबर माह में की गई जांच में पाया गया है कि बुंदेलखंड की धरती पर बह रहीं नदियों यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी के पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 700 से 900 पॉइंट प्रति लीटर और टोटल हार्डनेस (टीएच) 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गया है। बुंदेलखंड के चित्रकूटधाम मंडल में कुछ छोटी नदियों बागै, रंज और बाणगंगा के अलावा बड़ी नदिया यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी बह रही हैं, जिनके पानी का उपयोग इंसान करते आए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने रिपोर्ट के हवाले से बताया, इन नदियों के पानी में टीडीएस की मात्रा काफी बढ़ गई है, जिससे इनका पानी पीने लायक नहीं रह गया है। प्रदूषित पानी पीने से पथरी, किडनी और पेट संबंधी कई बीमारियां इंसानों को अपने आगोश में ले सकती हैं।Ó अधिकारी ने बताया, हमीरपुर जिले में यमुना नदी के पानी में टीडीएस 792 पॉइंट, बेतवा नदी में 964 पॉइंट, बांदा की केन नदी में 327 और चित्रकूट जिले की मंदाकिनी नदी के पानी में 364 पॉइंट टीडीएस पाया गया है। 300 पॉइंट से ऊपर टीडीएस की मात्रा बेहद नुकसानदायक होती है।Ó उन्होंने कहा, इसके अलावा इन नदियों के पानी में टोटल हार्डनेस (टीएच) की मात्रा भी बढ़ गई है। यमुना में 236.68, केन में 176.54, बेतवा में 159.08 और मंदाकिनी में 192.6 मिलीग्राम प्रति लीटर टीएच पाया गया है।Ó अधिकारी ने बताया कि आरओ लगाकर शुद्ध किए गए पानी में भी 100 से 200 टीडीएस रह जाता है। 300 के भीतर टीडीएस की मात्रा आमतौर पर नुकसानदायक नहीं होती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बांदा स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में तैनात सहायक वैज्ञानिक आरके वर्मा ने कहा, पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) और टोटल हार्डनेस (टीएच) बढ़ जाने से नदियों का पानी सीधे पीने योग्य नहीं रह जाता। फिलहाल बुंदेलखंड में उद्योग और बड़े नाले न होने से नदियों का पानी ज्यादा प्रदूषित नहीं है, लेकिन पीने लायक भी नहीं कहा जा सकता। बारिश में नदियों का जलस्तर बढऩे और बालू खनन से पानी गंदा हो जाता है।Ó जिला सरकारी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. किशोरीलाल ने बताया कि प्रदूषित और खारा पानी पीने से शरीर में वे तत्व भी पहुंच जाते हैं, जिनकी आवश्यकता नहीं होती। ऐसे में पेट संबंधी बीमारी की शिकायतें ज्यादा होती हैं। इससे लोग गैस्ट्रोएंजाइटिस, डिहाईड्रेशन, उल्टी और बुखार के शिकार ज्यादा होते हैं। इसके अलावा अधिक दिनों तक दूषित पानी पीने से पथरी की बीमारी और किडनी में संक्रमण का खतरा भी रहता है। बता दें कि बुंदेलखंड में पीने के साफ पानी की कमी एक बड़ी समस्या है। उत्तर प्रदेश के सात और एमपी के छह जिलों में फैले बुंदेलखंड का कोई भी ऐसा इलाका नहीं है जहां पीने के लिए साफ पानी की कमी न हो। बुंदेलखंड पैकेज के रूप में साढ़े सात हजार करोड़ रुपये आए, मगर एक भी जल संरचना ऐसी नहीं है, जो यह बताती हो कि इस राशि से जल संरक्षण या लोगों के जीवन में बदलाव लाने का काम किया गया है। खजुराहो में दुष्काल मुक्ति हेतु राष्ट्रीय जल सम्मेलनÓ का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन में देशभर के 200 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ता, विशेषज्ञ और जल संरक्षण के जानकार हिस्सा लेने वाले हैं। इस दो दिन के सम्मेलन में बुंदेलखंड की जल समस्या पर खास चर्चा होगी, इसका निदान कैसे संभव है, इस पर विस्तार से विचार-विमर्श किया जाएगा। इससे बदहाल बुंदेलखण्ड की स्थिति सुधरने की संभावना व्यक्त की जा रही है। -सिद्धार्थ पाण्डे
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