सधे कदम
19-Nov-2018 09:30 AM 1234908
चुनावी मौसम में चलने वाली लहर ही तय करती है कि सत्ता का रुख किस तरफ होगा। यही कारण है कि हार या जीत के लिए प्रत्याशियों या दलों के पक्ष में बहने वाली लहर भी एक चुनावी फैक्टर होता है। राजस्थान में भी ये फैक्टर देखने को मिलता है। मगर वहां का चुनावी गणित कुछ ऐसा है कि सवा फीसदी से पांच फीसदी वोट स्विंग पर ही सरकार बदल जाती है। इतना ही नहीं, पिछले 14 विधानसभा चुनावों में सिर्फ दो बार ही राजनीतिक दल प्रदेश की 50 फीसदी से अधिक जनता का दिल जीतने में कामयाब हो पाए हैं। इस बार क्या स्थिति होगी यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट भाजपा पर भारी पड़ रहे हैं। राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट का उभरना एक बार फिर खरगोश और कछुए की कहानी के सिद्धांत को साबित करता है। चार साल तक उन्होंने चुपचाप, आराम से, लगातार जमीनी स्तर पर काम किया। उसके बाद अचानक राज्य के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनकर खड़े हुए। राजस्थान चुनाव के लिए आ रहा हर सर्वे पायलट को मतदाताओं की पहली पसंद बता रहा है। माना जा रहा है कि उनकी लोकप्रियता मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और अपने ही साथी, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से ज्यादा है। ये दोनों ही राजस्थान राजनीति के स्तंभ माने जाते हैं। चार साल पहले, जब वो अजमेर से लोक सभा चुनाव हारे थे, तो किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि राजनीति में पायलट का ऐसा उभार आएगा। उन्हें कुल मिलाकर दिल्ली के नेता के तौर पर देखा गया, जिसका जमीनी स्तर पर ज्यादा असर नहीं था। जाति के गणित पर राजनीति को देखने पर भी उन्हें नुकसान ही दिख रहा था। उनका गुर्जर जाति का आधार ज्यादा वोट में तब्दील नहीं हो रहा था, क्योंकि इस समुदाय का मतदाता के तौर पर असर कम है। पार्टी के भीतर सचिन पायलट को गहलोत और पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी से मुकाबला करना था, जो राहुल गांधी के भरोसेमंद सिपहसालार और रणनीतिज्ञ माने जाते थे। बाहरी दुनिया में उन्हें अपने ऊपर लगे लेबल से मुकाबला करना था, जिसमें उन्हें पैराट्रूपर यानी आसमान से सीधे उतरने वाला हवाई नेता और वंशवादी राजनीति से फायदा लेने वाला माना गया। लेकिन ओपिनियन पोल और मैदान पर चर्चाओं से ऐसा लगता है कि सारी बाधाएं उन्होंने पार कर ली हैं। बल्कि अपनी कुछ कमियां मानी जाने वाली चीजों को ही उन्होंने अपनी ताकत बना लिया है। कांग्रेस के पूर्व विधायक संयम लोढ़ा कहते हैं कि पायलट के राजस्थान में उभार की कई वजह हैं। पहली, उन्हें राज्य कांग्रेस प्रमुख के तौर पर लंबा वक्त मिला, लगभग पांच साल। इससे उन्हें अपना नेटवर्क विकसित करने और कांग्रेस के चेहरे के तौर पर लोगों से जुडऩे में आसानी हुई। दूसरा, अपने इस कार्यकाल में उन्होंने जमकर यात्रा की और पार्टी को खड़ा करने की कोशिश की। तीसरा, उन्हें सौम्य, संयमित और करिश्माई व्यक्तित्व वाला शख्स माना गया। लोढ़ा कहते हैं, उनके जैसे युवा वोटर उन्हें आधुनिक और प्रगतिशील सोच वाला मानते हैं।Ó पायलट की जाति भी उनके लिए फायदेमंद साबित हुई। वो गुर्जर हैं। राजस्थान में ताकतवर जातियां, जैसे जाट, राजपूत और ब्राह्मण उन्हें तटस्थ मानते हैं। गहलोत की तरह नहीं, जहां जाट उन्हें स्वीकार नहीं करते। पायलट उन जातियों और समुदायों में भी मान्य हैं, जो पावर का बड़ा हिस्सा लेने के लिए आपस में लड़ती हैं। कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रताप सिंह खाचरियावास कहते हैं कि पायलट का लगातार उभार और स्वीकार्यता दिखाती है कि वोर्टस अब जाति और समुदाय की राजनीति से ऊपर उठ रहे हैं। खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में। खाचरियावास के अंकल भैरों सिंह शेखावत राजस्थान राजनीति के दिग्गजों में गिने जाते हैं। खाचरियावास कहते हैं, राजे के ढलान ने राज्य में खालीपन ला दिया था। पायलट ने राजे को मैदान पर लगातार चुनौती देते हुए खुद को विल्क के रूप में स्थापित किया है। वोटर उनके संघर्ष को याद करते हैं।Ó लगातार बढ़ते इन कयासों के साथ कि वो राजस्थान के सीएम बन सकते हैं, पायलट को दो मामलों को डील करना है। पहला, बीजेपी का एंटी इनकमबेंसी से पार पाना और दूसरा कम होने के बावजूद गहलोत की लोकप्रियता और महत्वाकांक्षा। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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