जाति न पूछो हनुमान की?
22-Dec-2018 10:07 AM 1235038
देश की सियासत में इन दिनों मुद्दों की कमी है। तभी तो राजनेता जनता की समस्याओं और दुखों पर चर्चा करने के बजाए भगवान पर चर्चा कर रहे हैं। इन दिनों देश की राजनीति का सबसे बड़ा ज्वलंत मुद्दा है हनुमानजी कौन थे। राजस्थान में विधानसभा चुनाव में वोटों की राजनीति में हनुमानजी जी का नाम उछाला गया। भाजपा के स्टार प्रचारक और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान की एक चुनावी रैली में हनुमानजी को दलित बताया। जिसके बाद सियासत में सारे मुद्दे खत्म हो गए और हनुमानजी पर चर्चा शुरू हो गई है। मध्यप्रदेश में भी हनुमान जी को लेकर बयानबाजी शुरू हो गई। जैन आचार्य निर्भय सागर ने अब अलग बयान दिया है। आचार्य का एक वीडियो वायरल हो रहा है उसमें वो कहते दिख रहे हैं कि जैन दर्शन के कई ऐसे ग्रंथ हैं जिनमें हनुमानजी के जैन धर्म से होने की बात लिखी है। जैन धर्म में 24 कामदेव होते हैं। इनमें एक हनुमानजी हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर हनुमानजी हैं कौन? दरअसल, योगी आदित्यनाथ के बयान को सुना जाए तो समझ में आएगा कि वे हनुमानजी की जाति नहीं बता रहे थे, बल्कि उनकी प्रतीकात्मकता की बात कर रहे थे, लेकिन लोगों ने उनके बयान को जाति से जोड़ दिया जिसके चलते राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के अध्यक्ष नंद कुमार साय ने दावा किया है कि वह अनुसूचित जनजाति के आदिवासी थे। साय ने लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, मैं स्पष्ट करना चाहता हूं...लोग सोचते हैं कि भगवान राम की सेना में वानर, भालू, गिद्ध थे। ओरांव आदिवासी से संबद्ध लोगों द्वारा बोली जाने वाली कुरुख भाषा में टिग्गा (एक गोत्र है यह) का अर्थ वानर होता है। कंवार आदिवासियों में, जिनसे मेरा संबंध है, एक गोत्र है जिसे हनुमान कहा जाता है। इसी प्रकार, गिद्ध कई अनुसूचित जनजातियों में एक गोत्र है। अतएव मेरा मानना है कि वे आदिवासी समुदाय से थे और उन्होंने इस बड़ी लड़ाई में भगवान राम का साथ दिया। इसके बाद केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने दावा किया कि न दलित, न एसटी, हनुमान जी आर्य थे। इसके पीछे उनका तर्क है कि उस समय आर्य जाति थी और हनुमान जी उसी आर्य जाति के महापुरुष थे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भगवान राम और हनुमान जी के युग में इस देश में कोई जाति व्यवस्था नहीं थी। कोई दलित, वंचित, शोषित नहीं था। वाल्मीकी रामायण और रामचरितमानस को आप अगर पढ़ेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि उस समय कोई जाति व्यवस्था नहीं थी। प्राचीनकाल में दलित, आदिवासी, अनुसूचित जनजाति जैसे शब्द नहीं थे। प्राचीनकाल में चार वर्ण जातियों की संज्ञा से नहीं जाने जाते थे। उन वर्णों का चयन कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता से करता था। जैसे कि वर्तमान में किसी को डॉक्टर बनना है, सेना में जाना है या व्यापार करना है तो वह स्वतंत्र हैं। उसी तरह उस काल में भी कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य या शूद्र होने के लिए स्वतंत्र था। भगवान राम को 14 वर्ष का जब वनवास हुआ तो वनवास के दौरान उन्होंने देश के सभी वन में रहने वाले लोगों को संगठित करने और शिक्षित करने का कार्य किया। आज के संदर्भ में उन लोगों को आदिवासी, पिछड़ा, दलित या वंचित कहा जाता है। इस दौरान राम खुद भी उन्हीं लोगों की वेशभूषा में रहते थे। हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि क्या हनुमानजी बंदर थे? इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। लेकिन देश की राजनीति में यह मुद्दा उठने के बाद हर कोई यह जानने का इच्छुक है कि आखिर हनुमानजी किसी जाति के थे? भारत रहस्यों से भरा देश रहा है। शोधानुसार लगभग 35 से 40 हजार वर्ष पहले से भारत में एक समृद्ध सामाजिक परंपरा रही है। इन वर्षों में भारत ने कई उतार-चढ़ाव देखे। प्राचीनकाल में सुर, असुर, देव, दानव, दैत्य, रक्ष, यक्ष, दक्ष, किन्नर, निषाद, वानर, गंधर्व, नाग, वानर और मानव आदि जातियां होती थीं। प्राचीन भारत में कुछ इस तरह के मानव और जीव हुए हैं जिनके बारे में आज भी शोध जारी है। हालांकि इनमें से कुछ के रहस्यों पर से अब पर्दा उठ गया है। इस बात का सबूत है कि प्राचीनकाल में दो भिन्न-भिन्न प्रजातियों के मेल से विचित्र किस्म के जीव-जंतुओं और मानवों का जन्म हुआ होगा। रामायणकाल और महाभारत काल में जहां विचित्र तरह के मानव और पशु-पक्षी होते थे, वहीं उस काल में तरह-तरह के सुर और असुरों का साम्राज्य और आतंक था। लेकिन कौन किस जाति का था उसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। लेकिन हमारे देश की राजनीति मनुष्यों के साथ ही अब भगवान की भी जाति को भुनाने में जुट गई है। हद तो यह है कि जाति के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं की तरह साधु-संत भी भगवान को जाति बंधन में बांधने लगे हैं - दिल्ली से रेणु आगाल
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^