22-Dec-2018 10:02 AM
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देश भर में नक्सलियों की आर्थिक हैसियत पर हुए प्रहार का असर दिखने लगा है। एक तरफ प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की स्थापना की 18वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तो दूसरी तरफ संगठन में युवाओं की भर्ती भी चल रही है। लेकिन इससे भी हैरानी की बात यह है कि नक्सली अब अपराधियों के साथ सांठ-गांठ करने लगे हैं। अभी हाल ही में केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने इस संदर्भ में केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है। इस रिपोर्ट के आने के बाद सुरक्षा एजेंसियों को इस इलाके में ज्यादा चौकसी बरतने और इस तरीके की ट्रेनिंग
करने वाले इलाकों पर नजर रखने की हिदायत दी गई है।
खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बालाघाट और राजनादगांव के इलाकों में ऐसे अनेकों ट्रेनिंग कैंप चलाने की जानकारी मिली है जिसमें नक्सली भोले भाले लोगों को बरगला कर उनको नक्सल ट्रेनिंग और हथियारों की ट्रेनिंग देने की कोशिश में जुटे हुए हैं। रिपोर्ट से इस बात की भी जानकारी मिल रही है कि नक्सली बालाघाट और राजनांदगांव के बॉर्डर के आस-पास मौजूद 100 गांव से जन मिलिशिया बनाने की फिराक में हैं। दरअसल, जन मिलिशिया का इस्तेमाल नक्सली सुरक्षा बलों के खिलाफ इंटेलिजेंस यानी खुफिया जानकारी एकत्र करने और नक्सलियों के लिए बेसिक सपोर्ट मुहैया कराने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
लगातार सुरक्षाबलों के ऑपरेशन के चलते बॉर्डर के कई इलाकों में जन मिलिशिया या तो अपना काम छोड़ चुके थे या फिर अंडर ग्राउंड हो गए थे पर एक बार फिर नक्सली अपनी पैठ और अपने आप को मजबूत करने के लिए इस तरीके के जन मिलिशिया को खड़ा कर रहे हैं।
जन मिलिशिया नक्सलियों का वह एक हिस्सा है जो कि इनकी रीढ़ के तौर पर जाना जाता है। जन मिलिशिया को समाप्ति से यह समझा जाए कि नक्सलियों की रीढ़ खत्म हो गई है। सरकार इसको खत्म करने के लिए कई तरीके के कदम भी उठा रही है पर नक्सली कमांडर यह नहीं चाहते कि जन मिलिशिया खत्म हो। जन मिलिशिया नक्सलियों का एक ऐसा हथियार है जो नक्सली कमांडरों के लिए ओवर ग्राउंड वर्कर के तौर पर काम करते हैं। यह नक्सलियों के समर्थक तो होते ही हैं साथ ही सुरक्षा बलों के खिलाफ नक्सलियों को गुप्त सूचनाएं भी देते हैं। इसके अलावा नक्सलियों को हथियार पहुंचाने और उनकी हर तरीके से मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
जन मिलिशिया की कमर तोडऩे के लिए केंद्र सरकार ने जो कदम उठाए हैं उससे इनकी कमर तो टूटी है जिसका परिणाम यह है कि अब नक्सली कमांडर और अधिक जन मिलिशिया को अपने गुट में शामिल करने की कोशिश में लगे हुए हैं। इस साल सितंबर की शुरुआत तक 400 जन मिलिशिया और नक्सलियों ने सरेंडर किया। हालांकि नक्सली इस समय काफी बैकफुट में हैं जिनके पास अब वैसे लड़ाके भी नहीं बचे हैं जो वेल ट्रेंड हो। सुरक्षा बल लगातार घने जंगलों में नक्सलियों को ढूंढने की कोशिश में लगे हुए हैं और उनके खिलाफ ऑपरेशन कर रहे हैं।
- सुनील सिंह