22-Dec-2018 10:04 AM
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पिछले साल हुए ब्रिक्स सम्मेलन में चीन ने भारत के जोर देने पर वैश्विक आतंकवाद के उन्मूलन के लिए ब्रिक्स मंच से आधिकारिक समर्थन भले ही दे दिया था, लेकिन वह इस संदर्भ में भारत की चिंताओं को निष्ठा और नैतिकता के साथ आत्मसात करने की स्थिति में नहीं था। भारत ही नहीं, विश्व स्तर पर अब तक जितनी भी आतंकी घटनाएं हुईं या हो रही हैं, उनके बारे में पीडि़त देशों को चीन का ठोस समर्थन कभी नहीं मिला। न ही चीन ने किसी पीडि़त देश की आतंकवाद से निपटने में मदद की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल होने के बाद भी वैश्विक आतंकवाद के संबंध में चीन का रुख कभी भी संतुलित नहीं रहा। सार्वभौमिक सुख-शांति को लेकर एक शक्तिशाली देश के रूप में चीन जो कुछ सोच-विचार कर सकता था और निश्चित कार्यनीति बना उस पर कार्य कर सकता था, उस दिशा में भी उसने कुछ नहीं किया।
आज इसका दुष्परिणाम चीन भी भुगत रहा है। जिस पाकिस्तान सरकार और उसकी फौज को भरोसे में लेकर चीन, पाकिस्तान में अपनी व्यापारिक योजनाओं को विस्तार दे रहा है और वहां ढांचागत निर्माण करवा रहा है और पाक को मिलने वाली सालाना अमेरिकी मदद बंद होने के बाद उसे अरबों डॉलर की सहायता दे रहा है, आज वही पाक सरकार और उसकी सेना चीनी दूतावास पर हुए आतंकी हमले को रोक नहीं पाई। पिछले दिनों कराची स्थित चीनी दूतावास पर हुए आतंकी हमले में दो पुलिसकर्मियों सहित चार लोग मारे गए। चीन को चुनौती देने वाली यह आतंकी घटना साधारण नहीं थी।
वैश्विक आतंकवाद के जनक पाकिस्तान में चीन ने चीन-पाक आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) बनाने की जो व्यापारिक नीति अंगीकृत की, उसमें उसने भारत, अफगानिस्तान और विश्व की आतंक संबंधी चिंताओं पर तनिक भी विचार नहीं किया। आतंक का कारखाना पाकिस्तान यदि चीन के लिए व्यापारिक कार्यनीति और धन निवेश का क्षेत्र बना तो इसमें चीन की यह इच्छा कहीं नहीं है कि वह पाकिस्तान और मध्य एशिया के विकास के लिए यह सब कुछ कर रहा है। वह एशिया में अपने सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी भारत को पाक के भीतर व्याप्त राजनीतिक, सैनिक, सामाजिक बिखराव और इनके समानांतर चलने वाले आतंकी तंत्र के बूते अस्थिर करने की मंशा पर काम करता आ रहा है। इसके लिए उसने एक पंथ दो काज की नीति पर कार्य किया। सीपीईसी में निवेश करने और पाकिस्तान को आर्थिक मदद देकर उसने पाकिस्तान से होते हुए पूरे मध्य एशिया में अपने व्यापार को समृद्ध करने और पाकिस्तानी सैनिकों व आतंकवादियों के गठजोड़ को भारत के विरुद्ध अपरोक्ष युद्ध में लगाए रखने की नीति पर भी काम किया।
वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के प्रति अब जो घेराबंदी हुई या हो रही है, उसमें संयुक्त राष्ट्र का अहम देश होने के चलते चीन भी आधिकारिक और राजनयिक स्तर पर आतंकवाद उन्मूलन की दिशा में कार्य करने को विवश हुआ है। लेकिन अब तक चीन की आतंकरोधी योजनाएं और नीतियां विश्व बिरादरी के साथ भागीदारी करते हुए नहीं बनीं और न ही इस दिशा में उसने कुछ ठोस कदम उठाए। लेकिन अब कराची में उसके दूतावास पर हुए फिदायीनी हमले ने अवश्य ही चीन को भी आतंक के प्रति सतर्क किया होगा। इस घटना के बाद उसे अब यह अवश्य लगना चाहिए कि चाहे वह पाक में कितना ही निवेश क्यों न करे या उसे कितनी ही आर्थिक मदद ही क्यों न दे, परंतु वहां के आतंकी समूहों और उनके आतंकवादियों का विश्वास जीत कर उन्हें अपने हिसाब से हांकना या उन पर नियंत्रण करना उसके बूते की बात भी नहीं। अमेरिका इस कड़वे अनुभव का सबसे बड़ा भुगतभोगी रह चुका है। विगत दो-तीन दशकों से वह पाकिस्तान को आर्थिक सहायता प्रदान करता रहा।
- संजय शुक्ला