स्वाइन फ्लू का कहर
22-Dec-2018 08:32 AM 1234887
देश में मध्यप्रदेश इकलौता ऐसा राज्य है जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे अधिक जोर दिया जाता है, लेकिन यहां कि स्वास्थ्य सेवाएं सबसे अधिक बदहाल हैं। प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार का गढ़ माना जाता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश में स्वाइन फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया आदि बीमारियां हर साल मौत का कारण बन रही हैं। स्थिति यह है कि मप्र से अधिक अन्य प्रदेशों में इन बीमारियों के मामले आ रहे हैं, लेकिन वहां पर मौत के मामले कम हो रहे हैं। इसकी वजह यह है कि मप्र में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह बदहाल हैं। इस साल स्वाइन फ्लू तो कहर बनकर टूटा है। वैसे इस साल स्वाइन फ्लू के मरीजों का आंकड़ा पूरे देश में बढ़ा है। गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना में सबसे अधिक मरीज मिले हैं लेकिन मौत के मामले में मध्यप्रदेश सबसे आगे है। यहां अब तक 64 मरीज मिले जिनमें से 24 की मौत हो चुकी है। यानी 37.5 फीसदी मौतें हो चुकी हैं। यह आंकड़ा देशभर के बीते आठ साल के औसत से 10 गुना से भी ज्यादा है। अधिकारी स्वीकारते हैं कि मप्र में ज्यादातर केस सी कैटेगरी (क्रिटिकल) में पहुंच रहे हैं, जिससे मौतें हो रही हैं। समय पर सैंपल नहीं भेजने और रिपोर्ट में देरी से आंकड़ा बढ़ रहा है। यह खुलासा नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) दिल्ली से जारी रिपोर्ट में हुआ है। इसके मुताबिक 11 नवंबर 2018 तक पूरे देश में स्वाइन फ्लू पॉजिटिव 10853 केस दर्ज हुए हैं। इनमें से 817 मरीजों की मौत हो चुकी है। मेघालय में एक केस दर्ज हुआ और एक की मौत हो गई। इस हिसाब से मौत का आंकड़ा 100 फीसदी है। दूसरे स्थान पर मध्यप्रदेश है। चूंकि मेघालय में एक ही केस हुआ, इस लिहाज से मध्यप्रदेश की स्थिति ज्यादा गंभीर मानी जा रही है। झारखंड में मिले पॉजिटिव मरीजों में से 33 प्रतिशत, पंजाब में 30 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ व हिमाचल प्रदेश में मिले पॉजिटिव मरीजों में से 25 प्रतिशत की मौत हुई है। मध्यप्रदेश में स्वाइन फ्लू 2011 के बाद सक्रिय हुआ है। 2015 में अब तक के सबसे ज्यादा 2445 केस दर्ज हुए। इसमें पहले साल सबसे ज्यादा मौतें हुईं लेकिन उसके बाद मृत्यु दर 18 फीसदी तक ही रही। देश में पिछले साल के मुकाबले इस बार स्वाइन फ्लू और उससे होने वाली मौत के मामलों में गिरावट दर्ज हुई है। पिछले साल देशभर में जहां स्वाइन फ्लू से 2,270 लोगों ने जान गंवाई थी वहीं इस बार 14 अक्टूबर तक 542 लोगों की मौत हुई है। इसके साथ ही पिछले साल 38,811 मामले सामने आए थे, वहीं इस बार 6,803 की ही अब तक पुष्टि हुई है। प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के पास भोपाल व जबलपुर में दो वायरोलॉजी लैब है। यहां सभी 52 जिलों से सैंपल भेजे जाते हैं। इनकी जांच रिपोर्ट आने में छह से सात दिन लगते हैं। जिला अस्पतालों में स्वाइन फ्लू की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। सिर्फ लक्षण देखकर और गंभीर स्थिति होने पर सैंपल भेजे जाते हैं। जब तक रिपोर्ट आती, कई मरीज स्वाइन फ्लू से लडऩे की शक्ति तक खो देते हैं। इसी कारण प्रदेश में इस साल मरीजों की मौत का आंकड़ा बढ़ा। इस साल अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में सबसे अधिक स्वाइन फ्लू के मरीज मिले हैं लेकिन मौत का आंकड़ा 15 फीसदी है। वहीं तमिलनाडु ने इस बीमारी को रोकने का सबसे बेहतर प्रबंधन किया। यहां .937 फीसदी मौतें हुईं। इस साल महाराष्ट्र में 2474 मामले सामने आए जिनमें से 15 फीसदी यानी 377 पीडि़तों की मौत हुई है। वहीं राजस्थान में 2025 मामले सामने आए जिनमें से 201 की मौत हुई। गुजरात में 1935 में से 80, तमिलनाडु में 1386 में से 13 की मौत हुई है। उत्तरप्रदेश में 37 जबकि छत्तीसगढ़ में सबसे कम आठ मरीज मिले हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं किस कदर बदहाल हैं। प्रदेश में स्वाइन फ्लू, डेंगू और चिकनगुनिया के मामले अन्य प्रदेशों से भले ही कम सामने आए हैं, लेकिन मौत के आंकड़े सबसे अधिक हैं। गौरतलब है कि मप्र सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर हर साल बड़ा बजट खर्च करती है। लेकिन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण फंड का उचित इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। अस्पतालों में इलाज की पूरी सुविधा नहीं पिछले कई साल से डेंगू, स्वाइन फ्लू या चिकनगुनिया सैकड़ों लोगों की जान ले रहा हैं। लेकिन सालों बाद भी प्रदेश के किसी भी सरकारी अस्पताल में डेंगू, स्वाइन फ्लू या चिकनगुनिया के इलाज की पूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। विभाग शहरों की आबादी के अनुसार अपडेट नहीं हो पाया। आईडीएसपी विभाग सिर्फ कागजी कार्रवाई व रिपोर्ट का डाटा रखने तक ही सीमित दिखाई दे रहा है। स्वास्थ्य विभाग का अभियान चलाने व नियंत्रण का काम नाकाफी साबित हो रहा है। इस साल डेंगू प्रभावित लोगों की संख्या पिछले साल की तुलना में तीन गुना तक हो चुकी है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में नवंबर तक डेंगू के 128 केस सामने आए थे। इस साल जनवरी 2018 से 21 नवंबर तक 343 डेंगू के मरीज मिले हैं। तमाम उपायों के बाद भी डेंगू फैलाने वाले एडिज मच्छर के लार्वा को पूरी तरह से नष्ट करने में विभाग सफल नहीं हो पाया। जबकि लाखों रुपए इसकी रोकथाम पर हर साल खर्च किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अलावा भी सैकड़ों की संख्या में मरीज प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती हुए हैं। जिनकी जानकारी तक विभाग के पास नहीं है। - रजनीकांत पारे
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