18-Jan-2020 07:42 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस उद्देश्य के साथ सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की थी, वह अपने उद्देश्य से भटक गई है। सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारंभ 11 अक्टूबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य एक आदर्श भारतीय गांव के बारे में महात्मा गांधी की व्यापक कल्पना को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ध्यान में रखते हुए एक यथार्थ रूप देना था। योजना के अंतर्गत, प्रत्येक सांसद एक ग्राम पंचायत को गोद लेता है और सामाजिक विकास को महत्व देते हुए इसकी समग्र प्रगति की राह दिखाता है जो इंफ्रास्ट्रक्चर के बराबर हो। सांसद आदर्श ग्राम योजना के लिए अलग से कोई आवंटन नहीं किया जाता है और सांसदों को सांसद निधि के कोष से ही इसका विकास करना होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने के कुछ महीनों के भीतर ही सांसद आदर्श ग्राम योजना का ऐलान किया था। इसके तहत करीब 2500 गांवों की कायापलट करने का लक्ष्य रखा गया था। योजना के तहत 2014 से 2019 के बीच चरणबद्ध तरीके से सांसदों को तीन गांव गोद लेने थे और 2019 से 2024 के बीच पांच गांव गोद लेने की बात कही गई है। सांसदों ने इस पर किस तरह रुचि ली। सांसद कितने फ्रिकमंद हैं। यह सामने आया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से। आंकड़े बता रहे हैं कि पहले चरण में सांसदों ने अच्छी रूचि दिखाई इसके बाद चौथे चरण तक आते-आते हालात इस तरह दिख रहे हैं जिससे साबित होता है कि सांसदों को अपने गांवों की चिंता नहीं है।
मप्र में लोकसभा के 29 और राज्यसभा के 11 सांसद हैं। इनमें से लोकसभा के 28 और राज्यसभा के 8 सांसद भाजपा के हैं। यानी 40 में से 36 सांसद भाजपा के हैं, लेकिन इनमें से मात्र 7 सांसदों ने ही आदर्श ग्राम योजना के चौथे चरण में गांवों को गोद लिया है। इस कारण मप्र बड़े राज्यों में फिसड्डी साबित हुआ है। मप्र के सांसदों ने चार चरणों में कुल 80 गांवों को गोद लिया है। इनमें सबसे कम चौथे चरण में अब तक मात्र 7 गांवों को गोद लिया है। जबकि चौथे चरण में उत्तर प्रदेश के 52, तमिलनाडु के 36, महाराष्ट्र के 32, गुजरात के 28, राजस्थान के 20, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के सांसदों ने 9-9 गांवों को गोद लिया है।
केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना के पहले चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से 500 सांसदों ने अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को गोद लिया। वहीं राज्य सभा के कुल 254 सदस्यों में से 203 सदस्यों ने योजना के मुताबिक अपने लिए एक-एक गांव का चयन किया है। लोकसभा और राज्य सभा मिलाकर जहां देश में कुल 796 सांसद थे, वहीं 93 सांसदों ने अपने लिए गांव का चयन नहीं किया। यानी पहले चरण में देशभर में महज 703 गांवों को विकास के टॉप गेयर पर डालने के लिए चयन किया गया। जिसमें मप्र के 40 सांसदों में से 37 सांसदों द्वारा गोद लिए गांव भी थे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के दूसरे चरण में स्थिति और भी खराब है। लोकसभा के 545 सांसदों में महज 364 सांसदों ने अपने लिए एक गांव का चयन किया। वहीं 259 सांसदों ने गांव का चयन नहीं किया। वहीं राज्यसभा के 243 सांसदों में से महज 133 सांसदों ने गोद लेने वाले गांवों का चयन किया। 110 सांसद गांव गोद नहीं ले सके। लिहाजा, आंकड़ों के मुताबिक दूसरे चरण के लिए कुल 788 सांसदों में महज 497 सांसदों ने अपने लिए एक गांव का चयन किया। वहीं 291 सांसदों ने योजना के इस चरण में गांव का चयन नहीं किया। दूसरे चरण में मप्र के महज 20 सांसदों में ही गांव गोद लिए।
आदर्श ग्राम योजना का तीसरा चरण पूरे आदर्श ग्राम योजना पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा के 545 सांसदों में महज 239 सांसदों ने इस चरण में अपने लिए एक गांव को गोद लिया। वहीं राज्यसभा के 243 सांसदों में महज 62 सांसदों ने जरूरी प्रक्रिया को पूरा किया। लिहाजा, आंकड़ों के मुताबिक कुल 788 सांसदों में से 487 सांसदों ने तीसरे चरण के लिए एक भी गांव का चयन नहीं किया। मप्र के 15 सांसदों ने इस चरण में रुचि दिखाई और गांव गोद लिए। चौथा चरण की हालत बहुत खराब रही। सांसद आधे रह गए। केवल 252 सांसदों ने रुचि दिखाई और गांव गोद लिए इनमें 208 लोकसभा से और 44 राज्यसभा से हैं। मप्र के सांसदों की रुचि भी कम होती गई। गोद लेने वाले सांसदों का आंकड़ा 7 पर अटक गया है।
इस योजना में 2016 तक प्रत्येक सांसद को एक-एक गांव को गोद लेकर उसे विकसित करना था। 2019 तक दो और गांवों और 2024 तक आठ गांवों का विकास किया जाना था। प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से भी अपील की थी कि वे विधायकों को इस योजना के लिए प्रोत्साहित करें, तो हर निर्वाचन क्षेत्र में 5 से 6 और गांव विकसित हो सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक सांसदों और कैबिनेट मंत्रियों के इस योजना से मुंह मोडऩे की वजह योजना के लिए बजट में किसी प्रकार के फंडिंग के इंतजामों को न होना माना गया। सांसदों को बताया गया था कि देश में चल रही मौजूदा योजनाओं- इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मनरेगा, बैकवर्ड रीजंस ग्रांट फंड, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सांसद निधि, ग्राम पंचायत की कमाई, केंद्र और राज्य वित्त आयोग निधि और कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के ही पैसे का इस्तेमाल किया जाए।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यह योजना काफी सफल रही है। नवंबर 2017 को केंद्र सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत 19,732 प्रोजेक्ट पूरे कर लिए गए हैं और 7,204 पर काम चल रहा है। वैसे, सरकार चाहे जो भी दावे करे, देश की अन्य योजनाओं की तरह पीएम मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना भी धरातल तक नहीं पहुंच सकी। इसके पर्याप्त कारण भी हैं। इस योजना को जिस तरह से प्रचारित किया गया, उसके स्तर पर इसकी फंडिंग के इंतजाम नहीं किए गए। इसके लिए कोई नया फंड निर्धारित नहीं हुआ। सांसदों को बताया गया था कि देश में चल रही मौजूदा योजनाओं- इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मनरेगा, बैकवर्ड रीजंस ग्रांट फंड, सांसद निधि, ग्राम पंचायत की कमाई, केंद्र और राज्य वित्त आयोग निधि और कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के ही पैसे का इस्तेमाल किया जाए। इस योजना के तीन चरण थे। पहले चरण के तहत 2014 से 2016 के बीच एक गांव को गोद लेकर उसे विकसित करना था। इस दौरान 543 लोकसभा सांसदों में से 500 सांसदों ने और 245 राज्यसभा सांसदों में से 203 सांसदों ने गांवों को गोद लिया। दूसरे चरण यानी 2016 से 2018 के बीच केवल 340 लोकसभा सांसदों और 126 राज्यसभा सांसदों ने गांवों को गोद लिया। तीसरे चरण यानी 2017 से 2019 के बीच गांवों को गोद लेने वाले सांसद और कम हो गए। अब तक केवल 141 लोकसभा सांसदों और 32 राज्यसभा सांसदों ने ही गांवों को गोद लिया है।
सांसदों के गोद लिए कई गांवों को आदर्श गांव घोषित तो कर दिया गया, लेकिन कुछ ही दिनों में उन गांवों की हालत पहले जैसी हो गई। इन गांवों में सोशल कॉरपोरेट रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत कई काम कराए गए थे, जिनकी गुणवत्ता कुछ महीनों बाद ही सामने आने लगी। इन गांवों में से अधिकांश में सड़क, सफाई, बिजली, पानी, रोजगार और स्वास्थ्य की स्थिति खराब है। हाल ही में शहरी विकास पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि फंडिंग और उचित कार्ययोजना के अभाव में भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं कागजों में ही सफल होंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी मोदी सरकार की छह शीर्ष योजनाओं में केवल 21 फीसदी फंड का ही इस्तेमाल हो सका। ये हाल स्मार्ट सिटी समेत उन योजनाओं का है जिनके लिए अतिरिक्त फंड की घोषणा की गई थी। आदर्श ग्राम योजना के लिए तो सरकार की ओर से किसी अतिरिक्त फंड का इंतजाम नहीं है। ऐसे में आदर्श गांव बनाने का पीएम का सपना सच होता नहीं दिख रहा है।
सात माह में महज सात ने चुना गांव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में शामिल सांसद आदर्श ग्राम योजना में मध्य प्रदेश के सांसदों की रुचि नहीं दिखाई दे रही है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तक अभी सात सांसदों का प्रस्ताव पहुंचा है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने जबलपुर के ग्राम घाना को आदर्श ग्राम बनाने के लिए चुना है। इनके अलावा सागर के सांसद राज बहादुर सिंह ने नरयावली विधानसभा क्षेत्र व सागर जनपद के तहत आने वाली पंचायत बदौना को, इंदौर सांसद शंकर लालवानी में तिल्लौर खुर्द, राज्यसभा सांसद व पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सीहोर जिले के बुदनी विकासखंड के ग्राम पंचायत डोबी का चयन किया है। वहीं राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह ने सिंगरौली के पोड़ी नौगाई गांव को गोद लिया है।
सिर्फ 1,753 गांव चयनित
साल 2014 में लॉन्च सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत अब तक सिर्फ 1,753 ग्राम पंचायत ही आदर्श ग्राम के लिए चयनित हुए हैं। 2019 के बाद अब सभी सांसदों को 5 गांवों को गोद लेकर उन्हें आदर्श ग्राम बनाना है। सांसद ग्राम योजना भारत की पहली ऐसी योजना है जिसमें सांसदों को एक साल के लिए अपने लोकसभा क्षेत्र के किसी एक गांव को गोद लेकर वहां की बुनियादी सुविधाओं समेत खेती, रोजगार, पशुपालन आदि क्षेत्रों के विकास कार्य में जोर देना है। साल 2014 से 2019 के बीच चार पड़ावों में सांसदों द्वारा अपने लोकसभा क्षेत्र में किसी भी एक गांव को गोद लेने की संख्या तेजी से घटी है। आदर्श ग्राम योजना के तहत साल 2016 तक सभी सांसदों को अपने लोकसभा क्षेत्र के किसी एक गांव पर विकास कार्य कर उसे आदर्श गांव का मॉडल बनाना था। साल 2016 के बाद सांसदों को किसी दो गांव को गोद लेकर उसे आदर्श गांव के रूप में तब्दील करना था। वहीं 2019 के बाद यानी वर्तमान में अब से पांच गांव सांसदों के झोली में हैं, जिन्हें उन्हें आदर्श ग्राम बनाना है। आदर्श सांसद ग्राम योजना के तहत विकास कार्य पूरा करने के लिए कई तरह से फंड मिलते हैं। इनमें इंदिरा आवास, पीएमजीएसवाय और मनरेगा शामिल है। इसके अलावा सांसदों को मिलने वाला विकास फंड भी कार्यक्रम पूरा करने में मददगार है।
- अरूण दीक्षित