19-Nov-2018 09:00 AM
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इस बार के चुनावी परिदृश्य को देखकर मध्यप्रदेश को बागी प्रदेश कहा जाने लगा है। जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उनमें सबसे अधिक बगावत यहीं देखी जा रही है। आलम यह है कि प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने की कोशिश में लगी भाजपा और 15 साल बाद सत्ता में वापसी की आस लगाए कांग्रेस को अपनी ही पार्टी के बागियों और भितरघातियों से सबसे अधिक खतरा है। चुनावी मैदान में भाजपा के 53 बागी डटे हुए हैं वहीं कांग्रेस की तरफ से 14 चुनाव लड़ रहे हैं। जिन सीटों पर बागी चुनाव लड़ रहे हैं उन पर उन्हीं की पार्टी के प्रत्याशी के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों की सारी रणनीति फेल हो रही है।
दलबदलुओंÓ का सहारा
मध्य प्रदेश का यह विधानसभा चुनाव दलबदलुओं की पौबारह के लिए भी याद किए जाएंगे। देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा व शताब्दी से ज्यादा पुरानी कांग्रेस को दलबदलू बेहद भाए और दोनों पार्टियां दूसरे दलों से आए नेताओं पर दांव लगा रही हैं। अब दोनों दलों को पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध और उनके चुनाव प्रचार में घर बैठने की चिंता सताने लगी है। मध्य प्रदेश में मान मनौव्वल में असफल रहने के बाद भाजपा ने दो पूर्व मंत्रियों समेत 64 बागी नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है। वहीं दो माह पूर्व राजस्थान विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐलान किया था कि चुनाव में दूसरे दलों से आने वाले लोगों और विधायकों को टिकट नहीं दिया जाएगा। पर चुनावों के करीब आते ही दूसरे दलों से नेताओं, विधायकों और सांसदों का आना शुरू हो गया है।
भाजपा से आए सरताज सिंह, पद्मा शुक्ला, संजय शर्मा, अभय मिश्रा व बसपा से आई विद्यावती पटेल, बाबूलाल जंडेल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा संगठन को सबसे मजबूत माना जाता है। इसके बावजूद उसने जीत के समीकरण बनाने के लिए कार्यकर्ताओं के बजाए दूसरे दलों से आए नेताओं को उम्मीदवार बनाने में रुचि दिखाई।
हार-जीत पर पड़ेगा असर
मध्यप्रदेश में बीजेपी के शासन को 15 साल हो गए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चौथे कार्यकाल के लिए एड़ी-चोटी को जोर लगा रहे हैं क्योंकि 15 साल बाद अब मुकाबला कड़ा होने जा रहा है। लेकिन बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल उन बागियों की वजह से भी खड़ी हो सकती है, जिनका इस बार टिकट काट दिया गया।
टिकट काटने की चोट गहरी होती है और ये दूर तक मार करती है। यही वजह रही कि बीजेपी से बागी हुए उम्मीदवारों को मनाने में नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख तक बीजेपी जुटी रही। बीजेपी को रूठों को मनाने में कामयाबी भी मिली और जो नहीं मानें तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बागियों को मनाने में बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गज भी जुटे रहे। किसी ने फोन पर तो किसी ने निजी तौर पर मुलाकात कर मनाने का काम किया। जिसके बाद राघव जी भाई जैसे पूर्व मंत्री ने विदिशा के शमशाबाद से तो कई बागियों ने अपना नामांकन वापस ले लिया। राघव जी भाई ने सपॉक्स की तरफ से पर्चा भरा था। वहीं बीजेपी ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 64 बागियों को पार्टी से बाहर कर दिया। निष्कासित किए हुए लोगों में 3 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। इन सभी को 6 साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया गया है।
सरताज सिंह, केएल अग्रवाल और रामकृष्ण कुसमारिया जैसे पूर्व मंत्री अपने-अपने इलाकों के धाकड़ नेता हैं। सरताज सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। वहीं ग्वालियर से महापौर समीक्षा गुप्ता और दमोह से रामकृष्ण कुसुमारिया ने निर्दलीय खड़े होकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ऐसे ही कई सीटों पर उन उम्मीदवारों के लिए हालात बेहद मुश्किल हो जाते हैं जिनके सामने एक तरफ मजबूत विरोधी होता है तो दूसरी तरफ अपनी ही पार्टी का बागी उम्मीदवार भी। गुना में बमौरी विधानसभा सीट से बीजेपी के पूर्व मंत्री कन्हैया अग्रवाल ने निर्दलीय उतर कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। कन्हैया अग्रवाल ने बीजेपी और कांग्रेस के समीकरण ही बिगाड़ दिए हैं।
रामलाल-तोमर ने राघवजी को मनाया
भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री राघवजी ने आखिरी दिन अपना नामांकन वापस ले लिया। उन्होंने विदिशा जिले की शमशाबाद सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया था। पांच साल पूर्व भाजपा से निष्कासित राघवजी अपनी बेटी ज्योति शाह के लिए शमशाबाद सीट से टिकट की मांग कर रहे थे। पार्टी ने उनकी बेटी के स्थान पर यहां से राजश्री सिंह को प्रत्याशी बनाया। लिहाजा राघवजी ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल कर दिया था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पहल के बाद राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राघवजी से बात की। साथ ही भरोसा दिलाया कि उनक बेटी के लिए पार्टी जल्द नई भूमिका पर विचार करेगी। साथ ही उन्हें भी सक्रिय करेगी। इसके बाद वे मान गए।
कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर के भरोसे
इधर कांग्रेस में दो दर्जन बागियों में से 14 मैदान में रह गए हैं, जो कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाएंगे। कांग्रेस के बड़े नेता भोपाल और इंदौर शहर में बागियों को मनाने में कामयाब रहे। इनमें भोपाल उत्तर से सऊद और मध्य से नासिर इस्लाम पार्टी ने पार्टी उम्मीदवारों के समर्थन में नाम वापस ले लिया है। इंदौर शहर में इंदौर सीट क्रमांक-1 से प्रीति अग्निहोत्री और कमलेश खंडेलवाल, इंदौर-5 से छोटे यादव ने पार्टी उम्मीदवारों के समर्थन में नाम वापस ले लिया है। पार्टी से बगावत कर मैदान में जमे कांग्रेस ने ऐसे बागियों से सख्ती से निपटने का फैसला लेते हुए झाबुआ से पूर्व विधायक जेवियर मेडा द्वारा बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरने से उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इस बार कांग्रेस सत्ता में वापसी को लेकर सारे तिकड़म भिड़ा रही है। कांग्रेस अब पंद्रह साल से इक_े किए हुए मुद्दों को भुनाने में जोर-शोर से जुटी हुई है, क्योंकि उसे सत्ता विरोधी लहर दिखाई दे रही है तो दूसरी तरफ अचानक अवतरित हुई
पार्टियां भी समीकरण बिगाडऩे के लिए तैयार दिख रही हैं।
उधर कांग्रेस के बागी नेता तो उसके लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं ही, बाहरी नेताओं का मुद्दा भी परेशानी में डाले हुए हैं। खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले को जिस तरह पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है उससे कांग्रेस के कार्यकर्ता नाखुश हैं। दरअसल टिकट पाने के लिए पार्टी छोडऩा एक बेहतरीन शॉर्टकट है। लेकिन इस रिस्क में आसान लोन देने वाली कंपनियों का कंडिशन्स अप्लाई भी साथ में चस्पा होता है। अगर पार्टी छोडऩे वाले नेता का बैकग्राउन्ड और बायोडाटा बड़ा है तो टिकट मिलने की गारंटी भी है। संजय सिंह के कांग्रेस में शामिल होने से दो रणनीतिक चालें भी दिखाई देती हैं। पहली ये कि पार्टी के बाकी असंतुष्टों में ये संदेश जाए कि टिकट बंटवारे में भाई-भतीजावाद नहीं हुआ और पूरी निष्पक्षता के साथ उम्मीदवार की काबिलियत, लोकप्रियता, जातिगत समीकरण देखने और कसौटी पर कसने के बाद ही टिकट दिया गया। ऐसे में मुख्यमंत्री के साले को मिसाल रखते हुए बाकी असंतुष्ट नेताओं में संदेश दिया गया कि मध्यप्रदेश की महाभारत में संजय का भी टिकट काट दिया गया।
वहीं कांग्रेस में शामिल होने वाले संजय की दूरदृष्टी को देखकर तस्वीर का दूसरा रुख भी समझने की जरूरत है। दरअसल, मध्यप्रदेश की राजनीति में जब किसी एक परिवार का सत्ता में एकाधिकार हो जाता है तो वो दूसरी पार्टी में भी एक सुरक्षित सीट जरूर रखता है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्वजिय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह भी एक बार बीजेपी में शामिल हुए थे तो इसी तरह ग्वालियर में सिंधिया घराने की महारानी विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधव राव सिंधिया आखिर तक कांग्रेस की नुमाइंदगी करते रहे। अब ऐसी ही मिसालों को आगे बढ़ाते हुए शिवराज परिवार से उनके साले ने कांग्रेस में न सिर्फ अपनी सियासी छांव टटोली बल्कि भविष्य का सेफ एरिया भी तलाश लिया।
भले ही ये अंदरूनी रणनीति का हिस्सा रहा हो लेकिन इससे एक दूसरा संदेश कांग्रेस ने भी लपका। कांग्रेस ने इस घटनाक्रम पर कहा कि खुद शिवराज के परिवार में उनके साले ही बीजेपी सरकार के दोबारा सत्ता में आने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं और तभी उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। निश्चित तौर पर कांग्रेस में संजय सिंह की एन्ट्री कांग्रेस का राज्य में मनोबल बढ़ाने वाली मानी जा सकती है तो बीजेपी के वो असंतुष्ट जिन्हें टिकट नहीं मिला और जो किसी दूसरी पार्टी में जा भी नहीं सकते वो खुद को ये दिलासा दे सकते हैं कि शिवराज ने अपने साले को भी टिकट नहीं दिया।
तैयारी पर फिर सकता है पानी
प्रदेश में इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को बागियों का सामना करना पड़ रहा है।
सत्ता प्राप्ति के लिए पार्टियों ने जो मेहनत और तैयारी की है उस पर पानी फिर सकता है। खासकर बगावत का सबसे अधिक प्रभाव भाजपा पर पड़ेगा। क्योंकि कभी पार्टी के कर्णधार रहे नेता भी आज बगावत पर उतर चुके हैं। यही नहीं टिकट वितरण से नाखुश कई नेताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। बरघाट विधायक कमल मर्सकोले का टिकट काटे जाने के विरोध में भाजपा समर्थित जनपद पंचायत अध्यक्ष बरघाट सुनील टेकाम, उपाध्यक्ष तोमेश रहांगडाले, जनपद पंचायत कुरई के अध्यक्ष देवेंद्र रहांगडाले, पूर्व जिला महामंत्री दिग्विजय सिंह राजपूत ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। सतना जिले में सांसद गणेश सिंह से प्रदेश कार्यसमिति सदस्य और अनूपपुर जिले के संगठन प्रभारी अरुण द्विवेदी ने पार्टी की सदस्यता छोड़ दी। वहीं, सतना जिला पंचायत की उपाध्यक्ष डॉ. रश्मि पटेल ने भी पार्टी छोड़कर सतना से निर्दलीय फॉर्म भर दिया। जिला पंचायत सतना के अध्यक्ष गगनेंद्र प्रताप सिंह भी पार्टी से नाराज हैं। इन नेताओं की प्रत्यक्ष बगावत से अधिक पार्टी को भितरघातियों से डर है।
बुजुर्गों ने बिगाड़ा खेल
पार्टी विथ डिफरेंस का दम भरती रहने वाली भाजपा के अनुशासन के बम जो दिवाली के दूसरे दिन फूटे तो भोपाल से दिल्ली और नागपुर तक में उनकी गूंज सुनाई दी। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर, पूर्व केंद्रीय मंत्री सरताज सिंह, मंत्री कुसुम मेहदले, पूर्व मंत्री राघवजी भाई, रामकृष्ण कुसमारिया, केएल अग्रवाल, जितेंद्र डागा विधानसभा चुनाव लडऩे अड़ गए थे। संगठन की मंशा यह थी कि ये उम्रदराज नेता थक कर चुप हो जाएंगे या फिर मनाने पर मान जाएंगे। लेकिन इन बुजुर्ग नेताओं ने पार्टी की नाक में ही दम कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि गौर के आगे पार्टी को झुकना पड़ा जबकि मेहदेले सहित अन्य ने तो नामांकन भी कर दिया। हालांकि बाद में जितेन्द्र डागा और राघवजी को मना लिया गया, लेकिन सरताज सिंह, कुसमारिया, केएल अग्रवाल चुनावी मैदान में भाजपा के खिलाफ डटे हुए हैं।