शिव के अलावा और किसको आशीर्वाद दे जनता?
03-Aug-2013 05:29 AM 1234798

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चिरकाल तक अपनी सरकार के जीवन के लिए महाकाल की नगरी में पूजा अर्चना कर जन आशीर्वाद यात्रा प्रारंभ की है। शिवराज जनता की आकांक्षाओं के नायक हैं। यह बात सच है कि मध्यप्रदेश में तात्कालिक इतिहास में जितनी लोकप्रियता प्रदेश की जनता के बीच शिवराज ने अर्जित की उतनी किसी अन्य नेता के हिस्से में नहीं आई। उमा भारती को दिग्विजय सिंह की एंटी इनकमबेन्सी का लाभ मिला था, लेकिन शिवराज ऐसे किसी भी एडवांटेज से वंचित हैं और इसीलिए शिवराज जब तीसरी बार विजय के लिए संकल्प लेकर निकलें हैं तो कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
शिवराज मध्यप्रदेश में निर्विवाद रूप से कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच एकछत्र लोकप्रिय राजनेता हैं। हर वर्ग के बीच उन्होंने अपनी पकड़ बनाई है। जनता से उनका सीधा संवाद है। पिछले पांच वर्षों से लगातार वे जनता के बीच जाते रहे हैं। भाजपा संगठन ने भी अपना जनसंपर्क कभी भी अनियमित नहीं किया। वे लगातार जनता के संपर्क में रहे। जीवंत दिखते रहे। केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन भी खड़े करते रहे और जनता के बीच कांग्रेस की मुखालफत भी मुखर होकर करते रहे। शिवराज ने जनता के नेतृत्व का सही उदाहरण प्रस्तुत किया है। राज प्रासादों में बैठकर जनता की सेवा नहीं होती। यह शिवराज भलीभांति जानते हैं। इसी कारण वे अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी शांत नहीं बैठे लगातार चलते रहे। बिना रुके, बिना किसी थकान का प्रदर्शन किए हुए। उनकी यही कार्यशैली उन्हें विरोधियों पर ज्यादा वजनी बना देती है। हालांकि उनका कार्यकाल निर्विघ्न नहीं था। पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह कुछ-कुछ बाधाएं भी आईं, कई आरोप भी लगे, लेकिन आलाकमान सधा हुआ था। शिवराज पर केंद्रीय नेतृत्व को अटूट विश्वास था जिसका नतीजा यह है कि वे आज एकदम सटीक समय पर जनता के बीच आशीर्वाद मांगने पहुंचे हैं।
किंतु इस जनआशीर्वाद यात्रा के समक्ष भी कई यक्ष प्रश्न खड़े हुए हैं। जिस विजय रथ पर शिवराज सवार हैं उसके सामने कंटकों की कमी नहीं है। भले ही बिखरी हुई, बंटी हुई, उत्साहहीन, गुटबाजी के घुन से घुनी हुई, मृत प्राय: कांग्रेस एक चुनौती न हो लेकिन शिवराज के अपने मंत्रियों और विधायकों का पिछले दो कार्यकालों के दौरान प्रदर्शन एक बड़ी चुनौती है। खास बात यह है कि इस दौरान काम हुआ है। काम दिखाई दे रहा है। हालात 2003 जैसे नहीं हैं जब खजाना खाली था और सड़क, बिजली, पानी हर शहर में, हर गांव में एक बड़ी चुनौती थी। इस बार विकास पहले की तुलना में तो कम से कम दिखाई दे ही रहा है। लेकिन शिवराज के साथ-साथ इस सत्ता में भागीदार उन तमाम जनप्रतिनिधियों से जनता खफा है जिन्होंने दो-दो कार्यकाल तक राज करने के बावजूद जनआकांक्षाओं को पूरा नहीं किया। शिवराज इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ हैं और  बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं ने उन्हें जो फीडबैक दिया है वह उनकी मेहनत पर पानी फेरने के लिए पर्याप्त है।
इस बार टिकिट वितरण में भारी कांट-छांट करनी पड़ेगी, लेकिन अकेले कांट-छांट से जनआक्रोश थम जाएगा यह कहना जल्दबाजी ही होगी। इसीलिए भले ही तमाम सर्वेक्षण शिवराज के पक्ष में जनता की लहर की भविष्यवाणी कर रहे हों, लेकिन जनता के बीच जाने वाले शिवराज यह अच्छी तरह जानते हैं कि जनता की मंशा क्या है। कई जगह उन्हें जनता की इस नाराजगी से रूबरू भी होना पड़ा है। अकेले शिवराज प्रदेश की सभी सीटों से चुनाव नहीं लड़ सकते। यदि ऐसा हो सकता तो शायद वे हर जगह से जीत भी जाते। लेकिन चुनाव उन्हें उन्हीं लोगों के भरोसे लडऩा है जिनमें से कुछ को जनता भरोसे के लायक ही नहीं मानती। इसलिए चुनौती उलझी हुई है। प्रतिपक्ष की दुर्दशा के बावजूद यह कहना तत्काल संभव नहीं है कि भाजपा को शिवराज के नेतृत्व में वाकओवर मिल गया है। सत्ता की तरफ वाक करने के लिए शिवराज को और कठिन यात्राएं करनी पड़ेंगी। उनके साथ के मंत्री और विधायक उन्हीं की तरह जनता के बीच जाकर संवाद बनाएं तभी बात बनती दिखाई देगी।
श्यामसिंह सिकरवार

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