यह तो छलावा है
22-Dec-2018 06:58 AM 1234828
केंद्र सरकार की मातृत्व कल्याण योजना का लाभ अधिकांश महिलाओं को नहीं मिल रहा है। इनमें से एक है मातृ वंदना योजना। हालांकि मप्र में इस योजना के तहत अभी तक 5,16,289 लाभार्थियों को लाभ पहुंचा है, लेकिन आज भी 56.7 प्रतिशत बच्चे इस योजना का लाभ पाने से वंचित रह गए हैं। दरअसल योजना में कई तरह के विवादित परिवर्तन होने के कारण यह स्थिति बनी है। गौरतलब है कि जनवरी 2017 से प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के लागू होने के बाद 2.5 करोड़ महिलाएं गर्भवती हुईं हैं लेकिन योजना का लाभ केवल 32 लाख गर्भवती महिलाओं को ही मिला है। गौरतलब है कि यह केंद्र सरकार की मातृ कल्याण योजना है जो गर्भवती महिलाओं और बच्चों का पोषण सुनिश्चित करने के लिए लाई गई है। योजना के अनुसार, 1,000 रुपए की पहली किस्त पांच महीने की गर्भावस्था पूरी होने से पहले खाते में पहुंच जानी चाहिए। दूसरी किस्त के रूप में 2,000 रुपए जन्म पूर्व की पहली जांच के बाद मिल जाने चाहिए और 2,000 रुपए की तीसरी किस्त जन्म पंजीकृत होने और पहले टीकाकरण के वक्त मिल जानी चाहिए। मध्य प्रदेश में विकास संवाद से संबद्ध सचिन जैन बताते हैं, राज्य में जन्म लेने वाले अधिकांश शिशुओं को योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित ऑनलाइन पोर्टल हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम के अनुसार, मंत्रीमंडल ने मई 2017 को योजना को मंजूरी दी थी और योजना जनवरी 2017 से लागू हो गई थी। तबसे देश में 2.5 करोड़ से ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ है। दिल्ली में कार्यरत पत्रकार सोमरित डूड को सूचना के अधिकार से पता चला है कि 26 अगस्त 2018 तक महज 32 लाख महिलाओं को ही योजना के तहत धनराशि प्राप्त हुई। प्रधानमंत्री ने 31 दिसंबर 2016 को इस योजना की घोषणा की थी। तब उन्होंने कहा था कि देश में सभी गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपए की मदद मिलेगी। यह योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) 2013 के अनुसार लाई गई थी। यह कानून सरकार को बाध्य करता है कि वह हर गर्भवती महिला को 6,000 रुपए की मदद दे ताकि मां और शिशु की पोषण की जरूरतें पूरी हो सकें। लेकिन जब योजना को मंत्रीमंडल ने मंजूर किया, तब इसमें बदलाव कर दिया गया। पहला, यह योजना केवल पहले जीवित बच्चे तक सीमित कर दी गई। दूसरा, 19 साल से अधिक उम्र की महिला ही इस योजना का लाभ ले सकती है। तीसरा, यह संस्थागत प्रसव पर ही लागू होगी। और चौथा, 6,000 के बजाय नगदी के रूप में आर्थिक मदद 5,000 रुपए ही मिलेगी। मंत्रीमंडल की घोषणा में कहा गया कि 1,000 रुपए जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) के तहत संस्थागत प्रसव पर पहले से दिए जाते हैं और इस प्रकार कुल राशि 6,000 हो जाती है। इन तमाम प्रावधानों का नतीजा यह निकला कि बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं योजना के दायरे से बाहर हो गईं। महाराजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा संचालित सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के अनुसार, भारत में पैदा होने वाले कुल बच्चों में 43 प्रतिशत पहली संतान होती है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि शेष 57 प्रतिशत बच्चे योजना के दायरे से बाहर हो जाएंगे। महिला किसानों के मुद्दों पर काम करने वाले तेलंगाना के अनौपचारिक फोरम महिला किसान अधिकार मंच से जुड़ीं सेजल दांड बताती हैं, यह विचित्र है कि सरकार दूसरे या तीसरे बच्चे की पोषण की जरूरतों को सुनिश्चित करना जरूरी नहीं समझती। इसके अलावा योजना को पहले जीवित बच्चे को सीमित करना एनएफएसए के भी खिलाफ है जो सभी गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 6,000 रुपए की मदद की गारंटी देता है। वह बताती हैं, सरकार की कोई भी योजना संसद द्वारा बनाए गए कानून के खिलाफ नहीं हो सकती। केवल संसद को ही कानून में संशोधन का अधिकार है। पहले बच्चे के प्रावधान का मतलब यह भी है कि उच्च शिशु मृत्युदर वाले राज्य इस योजना के लाभ से वंचित होंगे। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर यह योजना किस काम की। - नवीन रघुवंशी
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