19-Nov-2018 09:33 AM
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मप्र के चुनाव में साधु-संतों ने टिकट वितरण से पहले ऐसा दम दिखाया जैसे वे इस बार हर हाल में चुनाव लड़ेंगे। दरअसल साधु-संतों पर सियासी रंग प्रदेश में छह बाबाओं को मंत्री और राज्यमंत्री का दर्जा दिए जाने से चढ़ा था। पांच साल तक संतों को साधने में लगी रही भाजपा और प्रदेश सरकार ने किसी को राजनीतिक योगी और साध्वी बनने का मौका नहीं दिया। इस बार कंप्यूटर बाबा के अलावा रायसेन जिले के संत रविनाथ महीवाले, उज्जैन जिले के बाबा अवधेशपुरी और सिवनी जिले के संत मदन मोहन खड़ेश्वरी महाराज ने बीजेपी से टिकट की मांग की थी। यह सभी संत बीजेपी से टिकट न मिलने पर कांग्रेस या निर्दलीय चुनाव लडऩे की धमकी भी दे रहे थे। सरकार से नाराजगी के कारण नजदीकी दिखाने में लगी रही कांग्रेस ने भी संतों को टिकट देने से किनारा कर लिया।
कंप्यूटर बाबा के अलावा कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर और पंडोखर सरकार के नाम से मशहूर गुरुशरण महाराज ने भी प्रदेश से बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने का खूब दम भरा। पंडोखर सरकार ने भी नए राजनीतिक दल सांझी विरासत पार्टीÓ का ऐलान किया है। इस दौरान गुरुशरण महाराज ने बताया कि ये पार्टी प्रदेश की 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। वहीं, बाकी सीटों पर समान सोच वाले राजनैतिक दलों का समर्थन करेगी। बता दें कि पंडोखर सरकार भी शिवराज सरकार में संतों की उपेक्षा और एससी-एसटी एक्ट पर सरकार के कदम के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे हैं। चुनाव से ऐन पहले सांझी विरासत पार्टी का ऐलान करने वाले पंडोखर सरकार ने 18 प्रत्याशी उतारे, लेकिन किसी संत को उम्मीदवार नहीं बनाया है। आश्रम और राजधानी एक करने वाले दूसरे बाबाओं ने भी किसी समर्थक तक को नहीं उतारा है। उधर, सियासी तीर चलाने वाले बाबाओं के सुर भी नरम पड़ गए हैं। दरअसल, संतों के तीखे तेवर से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल के रणनीतिकार चौकन्ने हो गए थे। सत्ताधारी दल के नाते भाजपा ने बाबाओं की नाराजगी को भांपकर डैमेज कंट्रोल के लिए बड़े संतों का सहारा लिया। लिहाजा कुछ खुद ही मान गए और बाकी मना लिए गए। नामांकन के ऐन पहले संतों से धीमे पड़े सुरों से उनकी ओर से उठाए गए मंदिरों की दुर्दशा, पुजारियों की दयनीय दशा और नर्मदा नदी की बर्बादी के मुद्दे भी नेपथ्य में चले गए। आरक्षण में भेदभाव और एट्रोसिटी एक्ट को लेकर मुखर हुए पंडोखर सरकार और कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर चुनाव लडऩे को लेकर पहले से ही दुविधा में रहे। पंडोखर सरकार ने सेवढ़ा से चुनाव लडऩे का मन बनाया था, लेकिन निर्णय भक्तों पर छोड़ दिया। ठाकुर ने दतिया में मुकदमा दर्ज होने के बाद तीखे तेवर दिखाए थे। पहले चुनाव लडऩे की फिर लड़ाने की बात कहने लगे। बाद में दोनों ने हाथ मिला लिया। खुद चुनाव मैदान में नहीं उतरे हैं। दोनों सांझी विरासत और सर्व समाज पार्टी के स्टार कंैपेनर बन गए।
सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले दर्जा प्राप्त पूर्व राज्यमंत्री कंप्यूटर बाबा संतों के चुनाव लडऩे की वकालत करते रहे। कुछ संतों को तैयार भी किया था। सरकार से रिश्ता तोडऩे के बाद संतों को एकजुट करने का अभियान छेड़ दिया। अपने ऐलान से पलटते हुए किसी संत को चुनाव मैदान में नहीं उतारा है। संतों के मन की बात के नाम पर संत समागम आयोजित कर रहे हैं। प्रदेश के कई बड़े शहरों में संत सम्मेलन कर चुके कंप्यूटर बाबा कहते हैं, उनका लक्ष्य चुनाव लडऩा नहीं बल्कि सरकार को हटाना है।
बाबाओं ने सियासी पार्टियों के कार्यालयों के भी चक्कर लगाए। भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में संतों की टोलियां पहुंचीं और जी-भरकर आशीर्वाद दिए। भाजपा ने भोपाल में एक बड़ा संत सम्मेलन भी किया, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शामिल हुए थे। संतों ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, लेकिन आखिरकार बात नहीं बनी। 2013 के चुनाव में 56 उम्मीदवार उतारने वाली भारतीय शक्ति चेतना पार्टी इस बार फिर मैदान में है। पार्टी का संचालन शहडोल के संत शक्तिपुत्र महाराज
करते हैं। उनकी भतीजी इसकी अध्यक्ष हैं। पार्टी ने इस बार 100 प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन संतों की बजाय पार्टी ने अपने उन समर्थकों को
मौका दिया है, जो नशामुक्ति आंदोलन का हिस्सा रहे हैं।
-राजेश बोरकर