रियासतों की ठाट
19-Nov-2018 09:40 AM 1235655
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में कई राजघरानों से संबंधित नेता भी चुनाव लड़ रहे हैं। खासकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में रियासतों की ठाट देखने को मिल रही है। पहले बात करते हैं मध्यप्रदेश की। यहां की राजनीति में मुख्य रूप से ग्वालियर, राघोगढ़, चुरहट, रीवा, देवास, मैहर, पन्ना, नरसिहगढ़, खिलचीपुर, दतिया और छतरपुर राजघरानों के लोग सक्रिय हैं। ग्वालियर का सिंधिया और राघोगढ़ राजघराना सबसे ज्यादा असर रखता है। राघोगढ़ रियासत के कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह दस साल सीएम रहे। उनके पुत्र जयवर्धन विधायक हैं। दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह अभी कांग्रेस में हैं। पूर्व में लक्ष्मण भाजपा में भी रह चुके हैं। रियासत का रसूख ऐसा है कि 2013 में टिकट घोषित होने से पहले दिग्विजय ने अपने पुत्र का नामांकन दाखिल करा दिया था। राघोगढ़ और सिंधिया घराने में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा रही है, लेकिन बीते दिनों ज्योतिरादित्य ने राघोगढ़ किले जाकर दूरी कुछ कम की है। चुरहट रियासत के अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष हैं। उनके पिता अर्जुन सिंह दो बार मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पंजाब के राज्यपाल रह चुके हैं। अजय की बहन वीणा सिंह लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। देवास राजवंश के पूर्व मंत्री स्व. तुकोजीराव पंवार की पत्नी गायत्रीराजे पंवार वर्तमान में भाजपा से विधायक हैं। इस घराने को सबसे अमीर राजघरानों में से एक माना जाता है। मकड़ाई रियासत से विजय शाह प्रदेश में मंत्री हैं। संजय राजनीतिक वजूद रखते हैं। एक भाई अजय शाह कांग्रेस में हैं। रीवा राजघराने से राजा मार्तण्ड सिंह राजघराने के पुष्पराज सिंह अभी कांग्रेस में हैं, जबकि उनके बेटे दिव्यराज सिंह भाजपा से विधायक हैं। पुष्पराज भाजपा और सपा दोनों में रह चुके हैं। मैहर राजघराने से राजमाता कवितेश्वरी व उनके पुत्र अक्षयराज सिंह जूदेव कांग्रेस में हैं। छतरपुर रियासत के विक्रम सिंह नातीराजा व खिलचीपुर राजघराने के प्रियव्रत सिंह का भी राजनीति में रसूख है। राजस्थान की मिट्टी में रियासतों का जलवा सदियों से देखा गया है। आजादी से पहले जहां इन रियासतों के राजा-महाराजा मैदान-ए-जंग में दुश्मन से लोहा लेने के लिए तैयार रहते थे तो वहीं अपनी शाही शान लिए आजादी के बाद चुनावी जंग में भी इन राजाओं के राजघराने अपनी पहचान छोडऩे लगे। राजस्थान की राजनीति में राजघरानों ने भी अपनी छाप छोड़ी है। राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में अगर कोई राजघराना किसी खास राजनीतिक पार्टी या नेता को अपना समर्थन देता है तो उसकी जीत काफी हद तक पक्की मान ली जाती है। राजस्थान की राजनीति के इस रण में रियासतों से भी कई बड़े चेहरे सामने आए हैं जो सियासत में भी अपनी पहचान बना चुके हैं। वहीं अगर कोई राजघराना किसी पार्टी से मुंह फेर लेता है तो उसके वोट कटने भी तय मान लिए जाते हैं। हालांकि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि राजस्थान के राजघरानों ने लहर के हिसाब से अपनी चाल भी बदली है। जिससे किसी को नफा तो किसी को नुकसान भी हुआ है। ऐसे में राजस्थान के चुनावी रण में इन राजघरानों पर भी गौर फरमाना जायज लगता है। जोधपुर राजघराने के पूर्व नरेश गज सिंह के भारतीय जनता पार्टी के साथ काफी अच्छे संबंध थे। हालांकि उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। वो हमेशा बीजेपी का समर्थन करते और उनके नेताओं के लिए वोट जुटाते। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, बीजेपी के लिए वोट जुटाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन मामला तब गड़बड़ा गया जब साल 2009 के लोकसभा चुनाव में गज सिंह की बहन चन्द्रेश कुमारी को कांग्रेस ने टिकट दे दिया। अपनी बहन की जीत के लिए नरेश सिंह ने जमकर प्रचार किया और वोट मांगे। उनका प्रचार रंग भी लाया और उनकी बहन ने चुनाव में जीत हासिल की। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री पद भी सौंपा। जयपुर के राजघराने ने हर बार अपनी हवा बदली है। इस राजघराने ने कभी कांग्रेस के लिए वोट मांगे तो कभी बीजेपी के लिए वोट बैंक बनाने की कवायद की। अगर इतिहास पर गौर किया जाए तो ऐसा कहा जा सकता है कि किसी एक पार्टी के लिए जयपुर राजघराने की आस्था बिल्कुल भी नहीं रही है। जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से सांसद रह चुकी हैं। वहीं उनके बेटे और जयपुर राजघराने के पूर्व महाराजा कर्नल भवानी सिंह ने 1989 में कांग्रेस का टिकट हासिल किया और चुनाव लड़ा। हालांकि कर्नल भवानी सिंह इस चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट नहीं ले पाए और चुनाव में उनको शिकस्त का सामना करना पड़ा था। वहीं उनकी बेटी दिया कुमारी ने बीजेपी के लिए वोट मांगे और सवाई माधोपुर सीट से बीजेपी की विधायक बनीं। राजस्थान में चुनाव हो और भरतपुर राजघराने को नजरअंदाज किया जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता है। जाट वोट जुटाने के लिए भरतपुर राजघराना काफी अहम माना जाता है। एक वक्त था जब बीजेपी के लिए इस राजघराने के जरिए वोट मांगे जाते थे। तब इस राजघराने से ताल्लुक रखने वाले विश्वेंद्र सिंह जनता दल के टिकट पर 1989 और साल 1999 और 2004 में बीजेपी के टिकट पर भरतपुर से सांसद रह चुके हैं। लेकिन अब विश्वेंद्र सिंह कांग्रेस विधायक हैं। वे डीग-कुम्हेर विधानसभा सीट से कांग्रेस पार्टी से विधायक के तौर पर चुने गए थे। वहीं उनके चाचा मानसिंह भी विधायक रह चुके हैं। भरतपुर राजघराने से ही मानसिंह की बेटी कृष्णेन्द्र कौर दीपा वर्तमान में राज्य में बीजेपी विधायक हैं और वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री हैं। राजस्थान के राजघरानों में अलवर राजघराना भी राजनीति में अपना रंग दिखा चुका है। हालांकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए इस राजघराने के काफी मायने रहे हैं। इस राजघराने से समय-समय पर दोनों पार्टियों के लिए वोट बटोरे हैं। लेकिन अब कांग्रेस के लिए अलवर राजघराना काफी अहम बन चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खास माने जाने वाले भंवर जितेन्द्र सिंह अलवर राजघराने से ही आते हैं। भंवर जितेन्द्र सिंह कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिव का पद रखते हैं। अलवर राजघराने के भंवर जितेन्द्र सिंह का पूरे अलवर जिले में खासा प्रभाव माना जाता है। वहीं मनमोहन सिंह सरकार में भंवर जितेन्द्र सिंह मंत्री पद भी संभाल चुके हैं। पिछले कुछ राजस्थान विधानसभा चुनाव पर गौर किया जाए तो मालूम होगा कि अलवर जिले में चुनावी जीत-हार तय करने में भंवर जितेन्द्र सिंह का काफी महत्व देखा गया है। वहीं उनकी मां महेन्द्र कुमारी साल 1991 में बीजेपी के टिकट पर चुनावी रण में उतर चुकी हैं। इसके बाद 1998 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 1999 में कांग्रेस का हाथ थाम कर उन्होंने चुनाव लड़ा। लेकिन दोनों बार उनको हार का मुंह देखना पड़ा था। राजस्थान में सियासी पारा ऊफान पर है। हर बार सत्ता परिवर्तन के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्थान में रियासतों की सियासत इस बार क्या करवट लेती है, इस पर निगाहें टिकना लाजमी है। ग्वालियर घराना मध्यप्रदेश में सबसे रसूखदार ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का रसूख भाजपा और कांग्रेस दोनों में है। इसका ग्वालियर-गुना लोकसभा सीट और इनकी विधानसभा सीटों पर ज्यादा प्रभाव है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया के समय भाजपा की पूरी सियासत उनके ईद-गिर्द घूमती थी। उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस ज्वॉइन की तो उसकी राजनीति माधवराव पर केंद्रित हो गई। प्रदेश में भाजपा से यशोधरा राजे सिंधिया और माया सिंह मंत्री और कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद हैं। इस राजघराने की खासियत है कि चुनाव में परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार तक नहीं करते हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया जहां कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकार बने हुए हैं वहीं भाजपा ने इस बार इस घराने की नेत्री माया सिंह का टिकट काट दिया है। जबकि यशोधरा राजे सिंधिया चुनावी मैदान में हैं। संभावना जताई जा रही है कि इस बार अगर कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री के सबसे प्रबल दावेदार होंगे। यानी प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर राज घराने की ताकत और बढऩे की संभावना है। वसुंधरा धौलपुर राजघराने से राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया धौलपुर राजघराने की बहू हैं। ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि धौलपुर राजघराने का भारतीय जनता पार्टी को किस कदर समर्थन हासिल है। वसुंधरा राजे बीजेपी की तरफ से दो बार मुख्यमंत्री पद हासिल कर चुकी हैं। झालरापाटन से मौजूदा विधायक वसुंधरा राजे झालावाड़ से पांच बार सांसद भी रह चुकी हैं। साल 1984 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजे को शामिल किया गया था। इसके साथ ही धौलपुर राजघराने की वसुंधरा का राजस्थान की राजनीति में कद इतना बड़ा है कि उनके इशारे के बिना राजस्थान में पत्ता तक नहीं हिलता है। वहीं धौलपुर राजघराने से ही वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह भी लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए धौलपुर राजघराना वोटबैंक के लिहाज से काफी अहम माना जाता है। -इन्द्र कुमार
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