19-Nov-2018 09:24 AM
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मप्र की सियासत में डकैतों की दखल हमेशा रही है। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में पूर्व डकैत प्रेम सिंह कांग्रेस की टिकट पर मध्य प्रदेश के सतना जिले की चित्रकूट सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे और उन्होंने बीजेपी के सुरेंद्र सिंह गहरवार को करीब 10 हजार मतों से पराजित किया था। दस्यु जीवन से राजनीति का सफर करने वाले प्रेम सिंह इस सीट से तीन बार विधायक रहे। वो 1998 और 2003 में भी कांग्रेस की टिकट पर ही जीत कर विधायक बने थे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं दिवंगत दिग्गज कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के कट्टर समर्थक रहे प्रेम सिंह का लंबी बीमार के बाद पिछले साल मई में निधन हो गया था।
प्रेम सिंह से पहले पूर्व खूंखार डकैत शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में चुनावों को प्रभावित करते थे। ठीक ऐसे ही अन्य डकैत अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया भी चुनावों को प्रभावित किया करता था। ददुआ का भाई बाल कुमार पटेल सपा से सांसद, बेटा वीर सिंह विधायक, भतीजा राम सिंह विधायक रह चुके हैं। ददुआ के भाई और बेटे मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र की सीटों पर सपा उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं।
2013 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र की करीब 39 सीटें ऐसी थी, जहां पर डकैत या तो चुनावी मैदान में उतरे थे या फिर किसी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया था, लेकिन इस बार पूरी चुनावी सरगर्मी के बीच नदारद हैं। ग्वालियर के समाजसेवी डॉक्टर केशव पांडे ने बताया कि चंबल के बीहड़ों में खौफ से दहलाने वाले पूर्व डाकू मलखान सिंह एवं डाकू मनोहर सिंह गुर्जर ने 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पक्ष में चुनाव प्रचार किया था। 25 साल से अधिक समय तक चंबल घाटी में आतंक मचाने के बाद मलखान सिंह ने करीब साढ़े तीन दशक पहले अर्जुन सिंह सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था और अब वे बंदूक छोड़ आध्यात्मिक मार्ग अपना चुके हैं। हालांकि बड़ी-बड़ी मूंछ रखने वाले मलखान सिंह ने एक दौर में पंचायत चुनाव लड़ा था और इसमें जीत भी हासिल की थी। वह विभिन्न राजनीतिक दलों से भी जुड़े रहे हैं। 1996 में भिंड से सपा की टिकट पर विधानसभा का उपचुनाव भी लड़े थे, लेकिन हार गया।
मलखान ने एमपी में कांग्रेस के और सपा के लिए उत्तरप्रदेश में चुनाव प्रचार भी किया। पिछले दो विधानसभा चुनाव में उसने बीजेपी के प्रत्याशियों का समर्थन किया और उनके लिए वोट भी मांगे। वहीं, डाकू मनोहर सिंह गुर्जर 90 के दशक में बीजेपी में शामिल हुए और वर्ष 1995 में भिंड जिले की मेहगांव नगरपालिका के अध्यक्ष बने। हालांकि, अब वह अपना छोटा-मोटा निजी कारोबार करते हैं। वहीं, पूर्व डकैत बलवंत सिंह ने बताया कि वह इस साल एससी/एसटी एक्ट में हुए संशोधन से नाराज हैं, लेकिन इसके बाद भी मैं किसी राजनीतिक दल को इस चुनाव में समर्थन नहीं कर रहा हूं। बलवंत जाने माने डकैत पान सिंह तोमर का रिश्तेदार है।
प्रेम सिंह के निधन के बाद डकैतों द्वारा चुनाव को प्रभावित करने और उनके द्वारा किसी भी सीट से चुनाव जीतने का युग मध्य प्रदेश में अब खत्म हो गया है। मौजूदा समय में प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के बीहड़ में डकैतों के दो गैंग मौजूद हैं, जिनमें बबली कौल और लवलेश कौल शामिल हैं। हालांकि इन दोनों गैंगों की राजनीतिक अखाड़े में कोई गिनती नहीं है। कुछ पार्टियों ने सीमावर्ती जिलों में कोल वोट में सेंधमारी के लिए बबली और लवलेश से संपर्क किया था। लेकिन इनमें कोई भी डकैत चुनाव नहीं लड़ रहा है। साथ ही यह भी कहना मुश्किल है इनका कितना प्रभाव पड़ेगा।
राजनेताओं का कहना है कि यह समय का खेल है। भिंड के कांग्रेस नेता नवल किशोर शिवहरे ने बताया कि डकैतों का प्रभाव 1990 के उत्तरार्ध से घटना शुरू हुआ और अब यह पूरी तरह से खत्म हो चुका है। साथ ही युवा पीढ़ी में डकैतों को लेकर कोई रूचि नहीं है। ग्वालियर के भाजपा नेता लोकेंद्र पराशर भी इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं कि जब डकैतों ने आत्मसमर्पण किया तो वे भी भयभीत हुए थे, लेकिन अब सब कुछ बदल गया है।
पंचायत चुनाव में ज्यादा सक्रियता
रीवा रेंज के पुलिस महानिरीक्षक उमेश जोगा कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में बबली और लवलेश गैंग का प्रभाव सीमित है। लेकिन यह गैंग पंचायत चुनाव में काफी सक्रिय रहता है। वहीं, ग्वालियर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक अंशुमन यादव कहते हैं कि यहां पर प्रभाव का कोई सवाल ही नहीं है। क्योंकि इस क्षेत्र में कोई डकैत है ही नहीं। चंबल जैसा परिदृश्य विंध्य क्षेत्र में भी है। हालांकि उत्तर प्रदेश किनारे सतना-रीवा बेल्ट में कुछ डकैत अभी भी सक्रिय हैं। लेकिन इनका खासा प्रभाव नहीं है। इस क्षेत्र के कांग्रेस नेता ने बताया कि यहां पर प्रेम सिंह के बाद कोई भी बड़ा डकैत नहीं रहा है। प्रेम सिंह 1980 के बाद से लगातार तीन बार विधायक बना था।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया