19-Nov-2018 09:18 AM
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कांग्रेस ने अंतिम क्षणों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के मुकाबले में अरुण यादव को उतारकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस शिवराज सिंह को उनके घर में घेरकर रखना चाहती है, ताकि वह दूसरे इलाकों में प्रचार न कर पाएं। साथ ही कांग्रेस यह भी बताना चाहती है कि वह शिवराज को पिछले चुनाव की तरह वॉकओवर नहीं दे रही है।
बता दें कि अरुण यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा वह मनमोहन सरकार में मंत्री भी रहे हैं। उनके पिता सुभाष यादव मध्य प्रदेश के कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में एक थे। खुद अरुण की युवा नेताओं में एक अच्छी पहचान है लेकिन वह करिश्माई नेता नहीं हैं। शायद यही वजह थी कि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी ने उन्हें हटाकर कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी थी। इस फेरबदल की वजह से अरुण काफी नाखुश थे। उन्होंने अपनी नाखुशी का इजहार भी सार्वजनिक रूप से किया था।
अरुण की नाखुशी को देखते हुए पार्टी नेतृत्व ने उन्हें शिवराज के खिलाफ उतारकर यह संदेश दिया है कि वह अरुण यादव को लेकर गंभीर है। कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व में अरुण के जरिए दोहरा दांव खेला है। इस वजह से एक तो अरुण यादव बुधनी में बंधे रहेंगे तथा पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे, साथ ही यह संदेश भी जाएगा कि पार्टी शिवराज को वॉकओवर नहीं दे रही है। वहीं दूसरी ओर शिवराज के खिलाफ प्रत्याशी बनाए जाने के बाद अरुण यादव ने पार्टी नेतृत्व का धन्यवाद देते हुए दावा किया है कि वह बुधनी की जनता का विश्वास हासिल करेंगे। अपना नामांकन करने से पहले अरुण यादव ने कहा कि शिवराज सिंह और उनके परिवार ने बुधनी को लूटा है, नर्मदा को छलनी किया है।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि किसी बड़े नेता को बड़े नेता के सामने उतारा गया है। 2003 में बीजेपी ने भी यही प्रयोग किया था। तब बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को राघोगढ़ में दिग्विजय सिंह के खिलाफ उतारा था। तब प्रदेश में कांग्रेस बुरी तरह हारी थी लेकिन शिवराज दिग्विजय को नहीं हरा पाए थे। गौरतलब है कि बुधनी से शिवराज पांचवी बार चुनावी मैदान में हैं। स्थानीय लोगों का मूड देखकर लग रहा है कि इस सीट पर रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा।
गौरतलब है कि अरूण यादव कद्दावर नेता हैं और प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री रहे सुभाष यादव के बेटे हैं। यादव पिछली यूपीए सरकार में राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। वहीं शिवराज अपने गृह क्षेत्र से पांचवी बार चुनावी मैदान में हैं। शिवराज का पैतृक निवास जैत गांव में है और लगभग हर तीज त्योहार मनाने वे गांव आते हैं। शिवराज का बचपन यहां बीता है और हर बार शिवराज मतदान के ठीक एक दिन पहले अपने क्षेत्र में घर-घर प्रचार करते हैं और इतने में ही जनता उन्हें भारी बहुमत से जिताती आई है, लेकिन इस बार अरूण यादव ने ये बयान देकर हुंकार भरी है कि पार्टी ने उन्हें बली का बकरा नहीं बनाया है बल्कि वे शिवराज को हरा देंगे।
ये यादव के लिए भी करो या मरो का सवाल है क्योंकि यदि वे जीते तो कांग्रेस की सूची में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में उनका नाम काफी आगे पहुंच जायेगा। अरूण यादव ने पार्टी अध्यक्ष रहते हुए प्रदेश में पहचान तो बना ली है
लेकिन कमलनाथ और सिंधिया के बीच जगह बनाने के लिए इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं था। अब अरूण यादव गली-गली और घर-घर घूम रहे हैं।
बहरहाल आपको याद दिला दें कि ठीक इसी तरह शिवराज सिंह को बीजेपी ने 2003 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गृह क्षेत्र राघौगढ़ से उतारा था। उस समय शिवराज युवा और तेज तर्रार नेता थे। हालांकि उस चुनाव में दस साल की एंटी इनकमबेंसी के बावजूद दिग्विजय सिंह करीब 21000 वोटों से जीत गए लेकिन प्रदेश हार गए। शिवराज भले ही हार गए लेकिन उनकी किस्मत दो साल में चमक गई और नवम्बर 2005 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। समय-समय पर उन्होंने अपने सभी विरोधियों को धूल चटा कर ये संदेश भी दिया कि उनसे टकराने में सामने वाले का ही नुकसान होता है।
- अजय धीर