श्रद्धा या राजनीति?
19-Nov-2018 09:20 AM 1234940
गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत अभियान चलता है। देश को झाड़ू सेवा में लगा देते हैं ताकि बापू को याद न कर सकें। सरकार का पूरा फोकस स्वच्छ भारत पर होता है। प्रधानमंत्री की पूरी कोशिश होती है कि अटेंशन उनकी तरफ हो। गांधी की तरफ नहीं। देश भर के अखबारों में छपने वाले पीएसयू और सरकारी मंत्रालयों और विभागों के गांधी जयंती के विज्ञापन बंद हो चुके हैं। इक्का दुक्का विज्ञापन आते भी हैं तो उनमें गांधी की नहीं मोदी की फोटो होती है। गांधी की तरह ही इंदिरा गांधी की शहादत के दिन को रन फॉर यूनिटी के उत्सव में बदल दिया गया है। उस इंदिरा गांधी की शहादत को भुलाने की कोशिश हो रही है जिसने देश में दुनिया के सबसे भयावह खालिस्तान वाले आतंकवाद को खत्म करने की कोशिश की थी। खालिस्तानी आतंकवादी फौज या पुलिस पर हमला नहीं करते थे। वो आम लोगों को निशाना बनाते थे। बसों में ट्रांजिस्टर बम रखना, सिनेमा हॉल में ब्लास्ट कर देना जैसी हरकतें आम थीं। इंदिरा गांधी ने उस आतंक से लोहा लिया और आखिर उनके प्राण चले गए। कोई नेता बॉर्डर पर जाकर तो गोली खाता नहीं है लेकिन ये छोटा साहस नहीं था। इंदिरा गांधी के पास सारे खतरों की जानकारी भी रही होगी। उसके बावजूद उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाया, पॉलिटिकल गेम में नहीं पड़ीं। ये बात सही हो सकती है कि भिंडरावाला की राजनीति उनकी ही देन थी। लेकिन इसके बावजूद वो उन्हें खत्म किए बगैर चैन से रह सकती थीं। लेकिन आज उनकी शहादत के दिन को उत्सवों में गुमा दिया गया है। कुछ लोग कह सकते हैं कि सरदार पटेल की कीमत पर इंदिरा गांधी को याद क्यों करें। लेकिन बलिदान से सर्वोच्च कुछ नहीं होता। सरदार पटेल की मूर्ति वैसे भी राजघाट की तरह का स्मारक नहीं होगा जहां जो जाए श्रद्धा सुमन अर्पित करके चला आए। सरदार पटेल गुजराती कारोबारी मिजाज की एक प्रतिकृति हैं। इस मूर्ति में कारोबारी तड़का है। जो मूर्ति श्रद्धा का केन्द्र होनी चाहिए वो टूरिज्म के जरिए नोट छापने का काम करेगी। पटेल अक्षरधाम मंदिर के भगवान की तरह ग्राहकों को आकर्षित करेंगे। मूर्ति के दर्शन का टिकट लगेगा और टिकट खरीदने वाले लाइट एंड साउंड शो भी देखेंगे। इसके लिए मूर्ति के 3 किलोमीटर की दूरी पर एक टेंट सिटी भी बनाई गई है। जो 52 कमरों का 3 स्टार होटल है। जहां आप रात भर रुक भी सकते हैं। वहीं स्टैच्यू के नीचे एक म्यूजियम भी तैयार किया गया है, जहां पर सरदार पटेल की स्मृति से जुड़ी कई चीजें रखी जाएंगी। लेकिन पैसे हर जगह खर्च करने होंगे। 5700 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18,500 मीट्रिक टन रिइनफोर्समेंट बार्स से बनी इस मूर्ति में लेजर लाइटिंग लगेगी, जो इसकी रौनक हमेशा बनाए रखेगी। इस मूर्ति में ऊपर जाने का भी इंतजाम है बाकायदा एक लिफ्ट लगाई गई है। इस मूर्ति तक आपको नाव के जरिए पहुंचना होगा। जाहिर है हर चीज की कीमत है। पैसा जनता ने खर्च किया है। जानते हैं कितना पैसा। हर चीज में पैसा, सरदार पटेल की मूर्ति के ऊपर ब्रॉन्ज की क्लियरिंग है। इस प्रोजेक्ट में एक लाख 70 हजार क्यूबिक मीटर कांक्रीट लगा है। साथ ही दो हजार मीट्रिक टन ब्रॉन्ज लगाया गया है। ब्रान्ज मतलब कांसा। इसके अलावा 5700 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18500 मीट्रिक टन रिइनफोर्समेंट बार्स भी इसमें लगाए गए हैं। यह मूर्ति 22500 मीट्रिक टन सीमेंट से बनी है। इस विशाल प्रतिमा की ऊंचाई 182 मीटर है। इस मूर्ति को बनाने में करीब 44 महीनों का वक्त लगा है। यहां अगर ये बताएंगे कि इतने सीमेंट से एक शहर बस सकता था तो गुस्ताखी होगी। इस लौह पुरुष की मूर्ति के निर्माण में लाखों टन लोहा और तांबा लगा है और कुछ लोहा लोगों से मांगकर लगाया है। यानी जनता का पैसा। किसान की जमीन और करोड़ों का कोराबार। सरदार पटेल अब नुमाइश की चीज होंगे। नुमाइश की राजनीति का दौर जो है। जो दिखता है वही तो बिकता है। इसलिए पटेल भी दिखाऊ और बिकाऊ बनाए गए हैं। श्रद्धा नहीं होगी, प्रेम नहीं होगा, टूरिज्म होगा। चमत्कार होंगे। लेजर शो होगा। नाव की सवारी होगी, होटल होंगे कमाई होगी। देश भक्ति आप ढूंढ सकते हैं तो ढूंढ लें। आखिर मोदी को सरदार पटेल से इतना लगाव क्यों? दोनों का ताल्लुक गुजरात से होना ज्यादा मायने नहीं रखता। वजह कुछ और है। देश का ओरिजनल लौह-पुरुष सरदार पटेल को ही माना जाता है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद बीजेपी की ओर से लालकृष्ण आडवाणी के नाम से पहले भी लौह-पुरुष जोड़ा जाने लगा। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। शुरुआती एक-दो वर्ष गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगों के बाद बनी स्थिति की वजह से काफी उथल-पुथल वाले रहे। 2003 तक राजनीतिक स्थिरता और प्रशासन पर पकड़ मजबूत होने के बाद मोदी ने जोर-शोर से पटेल का नाम लेना शुरू किया। दरअसल मोदी खुद की छवि ऐसे मजबूत नेता के तौर पर पेश करना चाहते थे जो कि कुशल प्रशासक होने के साथ कठोर फैसले लेना जानता है। इसके लिए उन्होंने सरदार पटेल को अपने आदर्श के तौर पर पेश करना शुरू किया। मोदी जानते थे कि पटेल का नाम गुजरात के जन-जन के मन में बसा हुआ है। 2004 में इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को आम चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। 2005 के बाद मोदी ने केंद्र की यूपीए सरकार पर गुजरात के साथ सौतेला बर्ताव करने का आरोप लगाना शुरू किया। साथ ही ये कहना भी शुरू किया कि सरदार पटेल के साथ भी नेहरू परिवार की ओर से हमेशा अन्याय किया गया। -रजनीकांत पारे
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