महंगी हुई खेती
19-Nov-2018 09:08 AM 1234821
देश में मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर ज्यादातर राज्यों में गेहूं की बुवाई नवंबर के दूसरे पखवाड़े से शुरू होती है। इसके लिए किसानों ने खेत तैयार कर लिए है। लेकिन डीजल, उर्वरक, बीज और फसल सुरक्षा उत्पाद की कीमतों में हुई बढ़ोतरी ने उन्हें चिंता में डाल दिया है। वर्ष 2017 में अक्टूबर के महीने में डीजल की औसत कीमत करीब 57 रुपए लीटर थी, जो साल 2018 के अक्टूबर महीने में 75 रुपए लीटर तक पहुंच गई। डीजल एक साल में करीब 17-18 रुपए प्रति लीटर महंगा हुआ, जबकि डीएपी 380 रुपए, पोटाश 350-400 रुपए प्रति बोरी और कीटनाशकों की कीमतों में 30-40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। जिसके चलते गेहूं किसानों पर प्रति एकड़ करीब 3000 रुपए अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। रायसेन के किसान अंबुज पटेल के पास चार एकड़ के खेत है, जिसमें वो गेहूं बोएंगे। अंबुज बताते हैं, डीजल महंगा होने से सब कुछ काफी महंगा हो गया है। पिछले साल जुताई के लिए ट्रैक्टर वाला 400 रुपए प्रति घंटे ले रहा था जो अब 500 हो गया है। सिंचाई भी 100 से बढ़ कर 150 रुपए प्रति घंटा हो गई है। डीएपी भी 400 रुपए महंगी हो गई। यानि पिछले साल की अपेक्षा इस बार एक एकड़ में गेहूं में कम से कम 3000 रुपए की ज्यादा लागत आएगी। धान काटकर गेहूं बोने में पलेवा से लेकर बुवाई तक 5 जुताई और फसल कटाई तक कम से कम पांच सिंचाई होती हैं, इस तरह जोड़े तो जुताई 600-1000 रुपए, सिंचाई 1500 रुपए, डीएपी, 400 रुपए महंगी हो गयी और सरकार ने गेहूं की एमएसपी में 105 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है, इस तरह हिसाब लगाइए तो किसान की आमदनी बढ़ेगी नहीं, बल्कि लागत निकालना मुश्किल हो जाएगा। भारत सरकार ने रबी सीजन के लिए 21 फसलों का न्यूनतम सरकारी खरीद मूल्य बढ़ाया था। विपणन वर्ष 2018-19 के लिए गेहूं का प्रति क्विंटल मूल्य 1,840 रुपए किया जो कि 2017-18 के 1,735 मुकाबले 105 रुपए ज्यादा है, ये पिछले वर्ष के मुकाबले 6 फीसदी ज्यादा है। पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में डीजल 57.28 पैसे प्रति लीटर था। जो अक्टूबर 2018 के तीसरे हफ्ते में 75 (औसतन) और 25 अक्टूबर को 73 रुपए लीटर था। ये कीमतें पिछले साल के मुकाबले 28 फीसदी ज्यादा हैं। वहीं गेहूं के लिए जरूरी उर्वरकों डीएपी, एमओपी, यूरिया और जिंक आदि की कीमतों में 25 से लेकर 40 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है। डीजल महंगा होने से सब कुछ काफी महंगा हो गया है। बीज और कीटनाशकों के बड़े व्यापारी बताते हैं, डीएपी 1050 रुपए से बढ़कर 1400 रुपए प्रति बैग, (50 किलो), पोटाश 550 रुपए से बढ़कर 800 रुपए किलो हो गई है। कीटनाशकों में 18 फीसदी जीएसटी लगने के बाद करीब 20-35 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है। यूरिया के रेट में ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन 50 किलो वाली बोरी 45 किलो की हो गई है। गेहूं का बीज पिछले वर्ष 22 से 24 रुपए किलो था, जो कि अब 26 से 35 रुपए किलो तक पहुंच गया है। हालांकि सरकारी स्टोर पर गेहूं के बीच के रेट में कोई अंतर नहीं है। जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में कृषि लागत और बढ़ सकती है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत गिरने से उर्वरकों के लिए कच्चा माल महंगा हो रहा है। बिना यूरिया वाले उर्वरकों जैसे डीएपी (डी-अमोनिया फॉस्फेट), पोटाश (म्यूरिएट ऑफ पोटाश) और एनपीके (नोइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम) की कीमतें 2018-19 के चालू रबी सीजन में और बढ़ सकती हैं। उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार कंपनियों को क्षतिपूर्ति करती है। लेकिन इन नॉन यूरिया उर्वरकों को दी जाने वाली सब्सिडी को 2018-19 के लिए नहीं बढ़ाया है। अब रबी की बुआई कर रहे किसानों की समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें? हालांकि कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि किसान मिट्टी का परीक्षण कराकर ही बुआई करें। ताकि उन्हें सही वैज्ञानिक सलाह मिल सके। उर्वरकों पर गिरते रुपए का असर किसान का ज्यादा खर्च सिंचाई और उर्वरक पर आता है। डीएपी में प्रयोग आने वाले फास्फोरिक एसिड की कीमत इस साल जुलाई से सितंबर के बीच 34 फीसदी प्रति टन बढ़ी है। जबकि रबी सीजन में ये बढ़कर 800 डॉलर (58540) तक पहुंच सकती है। वहीं अमोनिया की कीमत भी पर मीट्रिक टन पर 721 रुपए बढ़ चुकी है। इन दोनों की कीमतों को ही जोड़कर देख जाए तो डीएपी की कीमत 12 से 13 फीसदी और बढ़ जाएगी। जून 2019 से सिंतबर 2019 तक पोटाश की कीमत 290 डॉलर (21220 रुपए) प्रति टन तय की गयी हैं। जो कि पिछले साल की अपेक्षा 50 डॉलर (3658 रुपए) ज्यादा है। - विकास दुबे
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